संकल्प/आह्वान

ऐक्टू का आहृान ‘‘श्रम कोड रद्द करो’’  देशव्यापी अभियान (1-15 फरवरी, 2021) 15 फरवरी - सभी राज्य राजधानियों और जिला मुख्यालयों पर एक दिवसीय धरने

किसानों की जमीन छीनकर अंबानी-अडानी सरीखे कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने वाले मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का ऐतिहासिक देशव्यापी आंदोलन जारी है. इस अभूतपूर्व आंदोलन को मजदूरों समेत आम अवाम का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है. 150 से अधिक किसानों की शहादत और ...

1968 के रेलवे शहीदों को ‘नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे’ की तरफ से 19 सितंबर को दी गई देश भर में श्रद्धांजलि

रेलवे के निजीकरण/निगमीकरण के खिलाफ जुझारू संघर्ष खड़ा करने का लिया संकल्प

इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन (आईआरईएफ) की तरफ से लगातार यह कोशिश रही है कि रेलवे को सार्वजनिक क्षेत्र में बचाए रखने के लिए जो भी संघर्ष की ताकते हैं या फिर आज के समय में संघर्ष को अपना प्रमुख उद्देश्य मानती हैं, वे एक मंच पर आएं और संयुक्त रूप से, योजनाबद्ध तरीके से संघर्ष की अगुवाई करें.

16 सितंबर को ऐक्टू ने मजदूर विरोधी श्रम कोड की प्रतियां जलाईं

‘मजदूर अधिकार बचाओ’ देशव्यापी अभियान (16-28 सितंबर)

मोदी-नीत केंद्र सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है. संसद का मानसून सत्र, जो एक लंबे अंतराल के बाद हो रहा है, उसे इस तरह सूत्रबद्ध किया गया है कि करोड़ों श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही ना हो. जिस तरह से व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी कानून बना रही है, वह साफ तौर पर सरकार के घोर मजदूर विरोधी और कॉरपोरेट परस्त रुख को दर्शाता है.

रेलवे फेडरेशन आईआरईएफ द्वारा जारी अपील

(यह अपील इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन (आईआरईएफ-संबद्ध ऐक्टू) द्वारा रेलवे में यूनियन मान्यता के लिये शीघ्र ही होने वाले चुनावों के लिये तमाम कैटिगोरिकल व अन्य यूनियनों के लिये जारी की गई थी.)

प्रिय साथी,

मजदूर-विरोधी वेज कोड बिल और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य कोड बिल संसद में लाने के खिलाफ-केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 2 अगस्त को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस का आह्वान

(मजदूर-विरोधी वेज कोड बिल और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य कोड बिल संसद में पेश करने के खिलाफ ऐक्टू समेत 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों द्वारा जारी बयान) 

सरकार ने संविधान में समवर्ती सूची के राज्य क्षेत्राधिकार की उपेक्षा करते हुए 5 जुलाई 2019 को बजट भाषण का इसे एक हिस्सा बनाने के एक असंवैधानिक तरीके के जरिये विभिन्न श्रम कानूनों के कोडीकरण का इरादा जाहिर कर दिया है.

सामने खड़ी कठिन चुनौतियों से निपटने के लिये सारी शक्ति बटोर लो

2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने जमीनी स्तर पर जनता के अंदर निर्मित हो रहे जन-असंतोष, मोहभंग, आक्रोश और बदलाव की उस आकांक्षा की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी है, जिसकी अभिव्यक्ति हाल ही में, वर्ष 2018 के अंतिम भाग में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे भाजपा के परम्परागत गढ़ों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान इतनी स्पष्टता के साथ हुई थी.

मोदी राज के पांच साल पुलवामा के नाम पर समाज में सांप्रदायिक नफरत और हिंसा फैलाने की घिनौनी चालों को नाकाम करें! ‘‘मोदी हटाओ - रोजी-रोटी, अधिकार बचाओ’’! ‘‘मोदी हटाओ - लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’’! जन संघर्षों के मुद्दों को बुलंद करो!

(ऐक्टू के ‘‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’’ अभियान (1 मार्च-31 मार्च) के माध्यम से देश के मेहनतकश अवाम के बीच ले जाया गया संदेश.)

लोकसभा चुनाव 2019 की उलटी गिनती शुरू हो गई है. मोदी सरकार के पांच साल का शासनकाल लूट, झूठ, बांटो और मेहनतकशों के जीवन में तबाही मचाने वाला राज साबित हुआ. अपने अंतिम बजट में भी मोदी सरकार ने मेहनतकशों और आम अवाम के सवालों को ठुकरा दिया, सिवाय कुछ झुनझुने पकड़ाने के.

सामान्य कोटि के आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षणः मोदी सरकार की हताशाभरी भटकाऊ चालबाजियों का पर्दाफाश और प्रतिकार करो

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान चलाये गये प्रचार अभियान में नरेन्द्र मोदी ने हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार के अवसर सृजन करने का वादा किया था. इसके बजाय सरकार ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है जहां हर साल एक करोड़ लोगों का रोजगार खत्म हो रहा है. सन् 2018 में, जो मोदी सरकार के शासनकाल का चौथा साल था, भारत में रोजगार के 1 करोड़ 10 लाख रोजगार के अवसर खत्म हो गये, और बेरोजगारी की दर बड़ी तेजी से आसमान छू रही है.

मोदी नामक तबाही से भारत को बचाओ! भारतीय लोकतंत्र का पुनर्निर्माण करो!

गणतंत्र दिवस 2019

भारत में संविधान को अस्तित्व में आये अब लगभग सत्तर वर्ष हो चले हैं. जब नरेन्द्र मोदी अपनी सरकार को इस बात का श्रेय देते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसे काम कर दिखाए हैं जिन्हें पिछले सत्तर सालों में इससे पहले की कोई भी सरकार नहीं कर सकी थी, तो वह एक मामले में बिल्कुल सही कह रहे हैं. इससे पहले कभी भी भारत के संविधान को उलटने की इतनी बेताब कोशिश कभी नहीं दिखाई पड़ी.

रिजर्व बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की रक्षा करो

देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान, भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की स्वायत्तता खतरे में है. और इसी से जुड़ा है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का अस्तित्व. कॉरपोरेट-परस्त मोदी सरकार भारतीय रिजर्व बैंक को अपने इशारे पर चलाना चाहती है. मोदी सरकार का दबाव है कि केंद्रीय बैंक अपने रिजर्व फंड की एक तिहाई राशि यानी 3 लाख 20 हजार करोड़ रुपये सरकार के खजाने (ट्रेजरी) में डाल दे. अन्यथा भारतीय रिजर्व बैंक कानून की धारा लागू करके भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर की शक्ति क्षीण कर दी जाएगी. मोदी सरकार भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अपने पक्ष में फैसला करवाना चाहती है.