संपादकीय

गणतंत्र दिवस 2021: किसानों ने इतिहास रचा

आधुनिक लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में स्वतंत्र भारत की यात्रा 26 जनवरी 1950 से शुरू होती है, जब भारत का संविधान लागू हुआ था - वह संविधान जिसे ‘हम भारत के लोग’ ने स्वीकार किया और जिसमें भारत को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में निर्मित करने और इसके तमाम नागरिकों के लिए मुकम्मल न्याय, स्वतंत्रता, समानता व भाईचारा की गारंटी करने का संकल्प लिया गया है. भारतीय गणतंत्र दिवस की 71वीं वर्षगांठ इस बात का गवाह है कि भारत के किसानों और अन्य नागरिकों ने मिलकर किस प्रकार जनता की एकता, संकल्प व शक्ति के अभूतपूर्व प्रदर्शन के साथ भारतीय संविधान की इस गणतांत्रिक भावना को पुनर्जागृत किया.

दिल्ली बार्डर से वर्ष 2021 के लिए संदेश: फासीवाद से संघर्ष करो,  कंपनी राज को खारिज करो!

बीसवीं सदी के प्रथमार्ध में विश्व युद्धों के महाविनाश के बाद वर्ष 2020 से अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण साल दुनिया ने संभवतः नहीं देखा होगा. असाधारण सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातस्थिति ने पूरी दुनिया में 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान ले ली है और सामान्य सामाजिक जीवन तथा आर्थिक क्रियाकलाप ठप हो गये, क्योंकि एक के बाद दूसरे देश ने हफ्तों और महीनों तक विभिन्न स्तरों पर लॉकडाउन लगाकर वैश्विक महामारी की रोकथाम करने का प्रयास चलाया.

भारत को विनाशकारी मोदीशाही के चुंगल से मुक्त करें!

26 नवंबर की अखिल भारतीय आम हड़ताल को सफल बनाएं!

मोदी सरकार द्वारा बिना किसी योजना के, रातों-रात थोपे गये देशव्यापी लॅाकडाउन की मार से मजदूर आज तक उबर नहीं पाये हैं. करोड़ों प्रवासी मजदूरों को अपमान और बदहाली की हालत में सड़ने, रेल की पटरियों और सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया, और सैकड़ों मारे गये. जैसा झूठ आम जनता से मोदी सरकार पिछले 6 सालों से बोल रही है- 2 करोड़ नौकरियां हर साल, अच्छे दिन, आदि- वही झूठ ‘लॉकडाउन वेतन’ देने का वादा भी निकला. कोई कारगर राहत तो दी नहीं, रोजी-रोटी भी छीन ली.

सड़कों पर लोकतंत्र का परचम बुलंद करें!  जनविरोधी, दमनकारी कानूनों के विरुद्ध एकजुट हों!!

मोदी सरकार द्वारा संसदीय लोकतंत्र को कैसे छलावे में तबदील कर दिया गया है, हाल ही में संपन्न संसद का मानसून सत्र इसकी बानगी है.

प्रश्न काल को मनमाने तरीके से रद्द कर दिया गया और इस तरह से उस औपचारिक धारणा से भी सरकार ने मुक्ति पा ली कि सरकार और कार्यपालिका, विधायिका के प्रति और प्रकारांतर से जनता के प्रति जवाबदेह हैं. 

ऐतिहासिक रही देशव्यापी आम हड़ताल

ऐक्टू 8 जनवरी की ऐतिहासिक देशव्यापी आम हड़ताल के लिये कामगारों और छात्रों समेत समस्त मेहनतकश जनता को सलाम पेश करता है. उल्लेखनीय है कि इस हड़ताल को किसानों, खेत मजदूरों, छात्रों, बुद्धिजीवियों समेत व्यापक हिस्सों का जबरदस्त समर्थन मिला और विशेष रूप से महिला श्रमिकों की हड़ताल में भागीदारी बेहद सरहानीय थी. इस व्यापक समर्थन के चलते बहुत से राज्यों में आम हड़ताल बंद में तबदील हो गई. कामगारों की रोजी-रोटी, अधिकारों और नागरिकता पर तथा देश की संपत्ति, संविधान और धर्मनिरपेक्ष तानेबाने पर मोदी सरकार द्वारा छेडे़ गए युद्ध के खिलाफ देशभर में जारी प्रतिरोध में यह हड़ताल मील का पत्थर साबित हुई है.

नये वर्ष, 2020 की शुरूआत मोदी शासन-2 की विनाशकारी, सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ एकताबद्ध प्रतिरोध् खड़ा करने के संकल्प के साथ करें!

8 जनवरी 2020 की देशव्यापी आम हड़ताल को पूरी ताकत के साथ कामयाब करें!! पहली बार, 2014 में सत्ता में आने के बाद, 5 वर्षों में मोदी सरकार ने कामगार जनता से जितने वादे किये थे, वे दूर-दूर तक कहीं साकार होते नजर नहीं आये (याद होगा मोदी ने खुद को मजदूर न0 एक बताया था).

स्थायी भुखमरी और लड़खड़ाते बैंक भारत मोदी-मेड तबाही से त्रस्त है

भारतीय अर्थतंत्र का गहराता संकट और शासन का चरम पतन अब रोजमर्रे की सच्चाई हो गई है - इससे अब कत्तई इनकार नहीं किया जा सकता. हर मोर्चे पर इसकी मिसालों की भरमार है, हर क्षेत्र में इसके सबूत बढ़ते जा रहे हैं. आर्थिक संकट अब किसी किताबी बहस का मामला नहीं रह गया, जिससे सरकार आंकड़ों की बाजीगरी के जरिये इनकार कर सके. विश्व मुद्रा कोष (आईएमएफ) से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक तक, हर अंतर्राष्ट्रीय अथवा भारतीय संस्थान रोज ही भारत की समग्र वृद्धि की दर में गिरावट का इशारा दे रहा है. मगर सबसे करारी चोट यह है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत का दर्जा लगातार गिरता जा रहा है.

मोदी के अर्थशास्त्र को खारिज करो! भारत को आर्थिक मंदी के दलदल से बाहर निकालो!

मोदी शासन की दूसरी पारी के शुरुआती 100 दिन गुजर चुके हैं. मोदी राज का ढोल पीटने वाले प्रचारक मोदी-शाह जोड़ी की विस्मयकारी ‘उपलब्धियों’ को गिनाने में जुटे हुए हैं - तीन तलाक, कश्मीर, चन्द्रयान मिशन. वे हर चीज पर बढ़चढ़कर बातें करते हैं, बस एक चीज को छोड़कर, जिसको लेकर सारे देश में चर्चा है - वह है आर्थिक मंदी. उन्होंने सोचा था कि वे इस मंदी को अस्थायी, चक्रीय मंदी का मामला बताकर अपना पल्लू झाड़ लेंगे, मगर अब हर तिमाही में, हर मानक के तुलनात्मक आंकड़ों से जाहिर हो रहा है कि स्पष्ट रूप से और खतरनाक ढंग से अर्थव्यवस्था ढलान पर जा रही है.

ऑर्डनेंस श्रमिकों की सफल हड़ताल ने आंदोलन की राह दिखाई

मोदी-शाह सरकार अपनी दूसरी पारी की पहली तिमाही पूरी कर रही है, और उसने पंजे मारने शुरू कर दिए हैं. यह सरकार तीन तलाक और कश्मीर मुद्दे पर अपने कदमों से लोगों को चाहे जितना भी खुश करने और उनके दिमाग से अन्य बातों को निकाल देने की कोशिश क्यों न करे, पूरे भारत के लोग अब आर्थिक मंदी के विनाशकारी असर के बारे में खुलकर चर्चा करने लगे हैं. वित्त मंत्री की देर से आई स्वीकारोक्ति और रिजर्व बैंक के अधिशेष से 1,76000 करोड़ रुपये केंद्र सरकार के कोष में डाल देने की घटना ने चरम आर्थिक संकट के बारे में आम जन की बढ़ती समझ को ही संपुष्ट किया है.

मोदी शासन-2 के हमलों का पुरजोर विरोध करें-ऐक्टू द्वारा आहूत 9 अगस्त से 15 दिनों के अभियान को मजदूरों के व्यापक हिस्सों तक ले जायें

पांच साल तक विनाशकारी बने रहे और व्यवस्थित एवं निर्मम रूप में संघ ब्रिगेड के फासीवादी एजेन्डा को थोपने वाले मोदी राज ने और भी अधिक बढ़ी हुई ताकत के साथ सत्ता में वापसी के बाद, बिना समय बर्बाद किए, अपने कॉरपोरेट-परस्त एजेंडा को जारी रखते हुए मजदूर वर्ग पर हमले तेज कर दिए हैं. मोदी शासन अपने कॉरपोरेट-परस्त एजेंडा को आगे बढ़ाने की इतनी जल्दी में है कि उसने संसद के पहले सत्र में ही श्रम कानूनों के कोडीकरण संबंधी बिलों को संसद में लाना एवं पास कराना शुरू कर दिया है.