संपादकीय

मोदी शासन-2: मजदूर वर्ग पर चौतरफा हमले- बढ़ते हमलों के खिलाफ और भी बड़े संघर्षों के लिये कमर कस लें!

श्रम कानूनों एवं भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करना, और पब्लिक सेक्टर इकाइयों का निजीकरण करना मोदी शासन 2.0 के तीन प्रमुख एजेंडा हैं. इस प्रक्रिया को तेज़ करने वाली बैठक का संचालन खुद अमित शाह ने किया. बैठक से बाहर निकलते हुए श्रम मंत्री ने घोषणा की कि वे पहले वेज (वेतन) कोड संबंधित बिल और ऑक्यूपेशनल (पेशागत) सेफ्टी, हेल्थ एवं वर्किंग कंडीशन कोड संबधित बिल पास करेंगे तथा आईआर (औद्योगिक संबंध) और सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर कोड (सामाजिक सुरक्षा) बिल पर बाद में काम करेंगे.

मोदी और भाजपा ‘विकास’ के मुद्दे से हटे खुले सांप्रदायिक अभियान का सहारा लिया

2019 के संसदीय चुनावों की औपचारिक शुरूआत करते हुए वर्धा (महाराष्ट्र) में एक भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुल्लमखुल्ला विभाजनकारी सांप्रदायिक जुगाली भरी और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर हिंदू-विरोधी एजेंडा अपनाने का आरोप लगाया. भाषण की शैली और सारवस्तु में मोदी की उलझन और हताशा झलक रही थी. रोजगार और किसानों से जुड़े सवालों पर मजबूती से मतदाताओं का सामना करने में असमर्थ और बहुतेरे भ्रष्टाचार घोटालों से घिरे मोदी और भाजपा अब अपनी अंतिम संभव तिकड़म का सहारा ले रहे हैं.

पुलवामा को मोदी के सत्ता के खेल का मोहरा न बनने दें! नफरत और जंगखोरी के संघी अभियान का प्रतिरोध करें!

जम्मू से श्रीनगर जा रहे सीआरपीएफ के रक्षक-दल पर उस भयावह हमले के बाद समूचा देश पुलवामा त्रासदी और उसके बाद की घटनाओं से उबरने की कोशिश अभी भी कर रहा है. इस हमले में मृतकों की संख्या 50 के करीब पहुंच चुकी है, और कई जवान अपने गंभीर जख्मों से अभी तक जूझ रहे हैं. इस हमले का दुस्साहस - लगभग तीन सौ किलोग्राम विस्फोटकों से लदी एक कार 78 वाहनों के रक्षा दल का रास्ता काट कर सीआरपीएफ जवानों से भरी एक बस से जा टकराती है - और, इस त्रासदी का बड़ा पैमाना जिसने आज तक के इतिहास में इस घाटी में सबसे ज्यादा सुरक्षा बलों की जान ली है, सचमुच सर चकराने वाला है.

बजट 2019: छलावे और खोखले चुनावी वादों का बजट

देश के मजदूर आंदोलन द्वारा मोदी सरकार के शासन में हाल की 8-9 जनवरी की हड़ताल समेत तीन देशव्यापी हड़तालों और कई आंदोलनों के माध्यम से उठाई गई 12-सूत्री मांगों को इस सरकार ने अपने अंतिम बजट में भी नजरअंदाज कर दिया है.

अखिल भारतीय मजदूर हड़ताल से पूरा देश थम गया - ऐक्टू हड़ताल को ऐतिहासिक बनाने के लिए मजदूर वर्ग को बधाई देता है

ऐक्टू समेत दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई अखिल भारतीय आम हड़ताल जिसका विभिन्न क्षेत्रों के कई अन्य कर्मचारी फेडरेशनों ने समर्थन किया था, ने 8-9 जनवरी 2019 को पूरे देश के आर्थिक और सामाजिक जीवन को पूरी तरह से रोक सा दिया.

भगवा गिरोह द्वारा चुनावी माहौल में राम मंदिर के मुद्दे को उभारने की साजिश को ध्वस्त करो मेहनतकश अवाम का साझा प्रतिरोध तेज करो

केन्द्र की मोदी सरकार, यूपी की योगी सरकार और दूसरे राज्यों की भाजपा सरकारों को लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. इनमें वे राज्य भी शामिल हैं जिनमें अभी चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में आरएसएस, भाजपा और अन्य भगवा ताकतों ने बौखलाहट में अयोध्या में राम मंदिर बनाने का मुद्दा फिर से उठाया है. जनता के आक्रोश से बचने में राम मंदिर का मुद्दा उनका आखिरी आसरा है. साथ ही, मोदी, योगी और उनके सिपहसालार चुनावी सभाओं के माध्यम से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज करने का हर प्रयास कर रहे हैं

भाजपा ब्रिगेड की फूटपरस्त और भटकाऊ साजिश को नाकाम करें

जैसे-जैसे चुनाव का महत्वपूर्ण मौसम नजदीक आ रहा है, संघ-भाजपा की साजिश की रूपरेखाएं दिनों-दिन और भी स्पष्ट होती जा रही हैं. 2019 के महासमर से पहले प्रकट हो रहे भाजपा के एजेण्डा और प्रचार अभियान के हम चार प्रमुख संकेतकों की शिनाख्त कर सकते हैं.

भागवत उवाचः जब तक मौका है, चांदी काट लो

जैसे-जैसे वर्ष 2019 नजदीक आता जा रहा है, संघ-भाजपा संगठनों ने बड़े पैमाने पर हर किस्म के लोगों को अपने खेमे में बटोरने के लिये चौतरफा प्रयास शुरू कर दिये हैं. कुछ दिनों पहले हम रोज-ब-रोज नजारा देख रहे थे कि अमित शाह 2019 में समर्थन हासिल करने के लिये जाने-माने नागरिकों के दरवाजे खटखटा रहे हैं. हमने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी नागपुर में आरएसएस के प्रचारकों के एक समापन सत्र को सम्बोधित करने का नजारा देखा.

चार दशक पहले इन्दिरा इमरजेन्सी की तरह मोदी इमरजेन्सी को भी निर्णायक शिकस्त दो!

जैसे-जैसे 2019 के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, मोदी सरकार तमाम किस्म की असहमति जाहिर करने वाली शख्सियतों को, जिनमें भारत के सर्वाधिक विश्वसनीय और सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं सार्वजनिक ख्यातिप्राप्त बुद्धिजीवी भी शामिल हैं, बड़े पैमाने की धरपकड़ और दमन के शिकंजे में कसती जा रही है.

मोदी राज भीड़तंत्र का शासन बन चुका है भारत को मोदी के गिरोहों से बचाओ

20 जुलाई को मोदी सरकार ने पहली बार संसद में अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. यद्यपि सरकार ने मतदान में अच्छे-खासे बहुमत से विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को हरा दिया, फिर भी बहस के दौरान सरकार बुरी तरह से बेनकाब हो गई. यहां तक कि मतदान के पैटर्न ने मोदी सरकार के लिये शक्तियों के एक प्रतिकूल पुनर्संयोजन का इशारा दिया. अविश्वास प्रस्ताव तेलगू देशम पार्टी की ओर से पेश किया गया था जो हाल के अरसे तक भाजपा की एक बड़ी सहयोगी पार्टी थी.