मोदी सरकार ने भारतीय अर्थतंत्र को पटरी से उतारा और उसका सत्यानाश किया

मोदी सरकार ने भारतीय अर्थतंत्र को पटरी से उतारा और उसका सत्यानाश किया

मोदी शासन ने क्या हासिल किया? भारतीय रेल में हर महीने गाड़ियों के पटरी से उतरने और दुर्घटनाग्रस्त होने की ही तरह भारत सरकार ने भारतीय अर्थतंत्र को भी पटरी से उतार कर उसका सत्यानाश कर दिया है.

आज:

  •  जीडीपी में वृद्धि पिछले तीन वर्ष में सर्वाधिक निम्न 5.7 प्रतिशत (वास्तव में 3.7 प्रतिशत)
  • ईंधन की कीमतें सबसे ऊंचे स्तर पर; जबकि 2011 की अपेक्षा कच्चे तेल के आयात की लागत आधी हो गई है
  • 8 सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि दर पिछले 8 वर्षों में निम्नतम
  • नोटबंदी और जीएसटी से अनौपचारिक क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित; आजीविका का विनाश
  • बैंकों का एनपीए, यानी वे कर्ज जिनके लौटने की गुंजाइश न के बराबर हो, आज सबसे ऊंचे स्तर पर
  • ग्रामीण मजदूरी दस वर्ष में सबसे कम; क्योंकि 47 प्रतिशत रोजगार देने वाली कृषि 2014-15 में संकुचित होकर 0.2 प्रतिशत रह गई, 2015-16 में बढ़कर 1 प्रतिशत हुई
  • कंपनियों का निर्माण गिरकर 2009 के स्तर पर आ गया; और मौजूदा कंपनियों में पिछले पांच वर्ष में निम्नतम 2 प्रतिशत की वृद्धि

हास्यास्पद ढंग से अमित शाह ने ‘तकनीकी कारणों’ का हवाला देकर इस आर्थिक सुस्ती की व्याख्या करने का प्रयास किया है. यह लोकल ट्रेन में थोड़े विलंब का या टीवी कनेक्शन में तात्कालिक समस्या का मामला नहीं है. यहां तक कि भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी भी मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिर पड़ी है. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने एक उभरते अर्थतंत्र में नोटबंदी की तुलना रेस करती कार का टायर फट पड़ने से किया है: नोटबंदी और जीएसटी से ठीक यही तो हुआ है.

2015 में मोदी ने विधान सभा चुनाव अभियान के दौरान सभाओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अगर मेरे सौभाग्य से पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम हो गईं और आम जन अधिक पैसे बचा लेता है, तो किसी बदनसीब को लाने की क्या जरूरत है?’ अगर मोदी उस वक्त कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में आई कमी का श्रेय लेते हैं; तो क्या अब, वे कम वैश्विक कीमतों के बावजूद ईंधन की बढ़ती कीमतों को रोक पाने में अपनी खुद की सरकार की विफलता का भी श्रेय लेंगे?

हमेशा से मोदी सरकार का मंत्र रहा है कि अपनी जन-विरोधी नीतियों पर समर्थन हासिल करने के लिए सांप्रदायिकता का जहर फैलाया जाए. उनकी इस घिसी-पिटी चाल का सबसे ताजा नमूना है ‘स्वराज्य मैग’, एक दक्षिणपंथी पत्रिका जो दावा करती है कि तेल पर ऊंचे कर और परिणामतः ईंधन की बढ़ी कीमतें ‘इस्लामी जेहाद का प्रतिकार हैं’!

कृषि ऋण माफी का योगी सरकार का वादा और मोदी की फसल बीमा योजना भी क्रूर मजाक ही साबित हुए हैं. उत्तर प्रदेश के किसानों को 1 पैसा, 12 रुपये और इसी किस्म की ऋण माफी मिल रही है! इसी बीच, मध्य प्रदेश के एक किसान बदामी लाल को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल नुकसान का मामला दर्ज करने पर 4.70 रुपये प्राप्त हुए हैं! म.प्र. के किसानों को फसल बीमा के रूप में अधिकतम 194.25 रुपये मिले हैं, जो कि नीला बाई नामक किसान को मिला है जिसकी सोया की लगभग पूरी फसल बर्बाद हो गई थी; जबकि उसने इस बीमा पॉलिसी के प्रीमियम के बतौर 5,220 रुपये जमा किए थे.

मोदी जी - आपका ‘अच्छे दिन’ भारतीय जनता के लिए अब तक का सबसे बड़ा दुःस्वप्न बन रहा है और भारत के लोग आपके अपने पालतू प्रचारक टीवी एंकरों के जरिये हिंदू-मुस्लिम नफरत भड़का कर एजेंडा को भटकाने और इस तरह अपनी जिम्मेदारी से बच निकलने के आपके प्रयासों को बखूबी देख रहे हैं.

हमें ‘मॉब’ (हिंसक भीड़) नहीं, ‘जॉब’ (रोजगाार) चाहिए. हमारे वाहनों को कम कीमत में इंधन चाहिए - वे मोदी के भाषणों की गर्म हवा से नहीं चल सकते हैं.

हमारे किसान अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं - अपनी मांगों के जवाब में उन्हें चंद पैसे या रुपये की ’ऋण-माफी’ या ‘बीमा-राशि’ अथवा गोलियां नहीं चाहिए.

हमारे छात्रों को शिक्षा चाहिए - कैंपसों में ‘राष्ट्रवाद’ की आड़ में नफरत और हिंसा की बौछार नहीं चाहिए.