एनटीपीसी दुर्घटना पर ऐक्टू के जांच दल की रिपोर्ट - प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही - सार्वजनिक क्षेत्र में अंधाधूंध ठेकाकरण का नतीजा

एनटीपीसी दुर्घटना पर ऐक्टू के जांच दल की रिपोर्ट - प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही - सार्वजनिक क्षेत्र में अंधाधूंध ठेकाकरण का नतीजा

नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी, ऊंचाहार, रायबरेली जिला, उत्तर प्रदेश) की यूनिट नं. 6 में गत 1 नवम्बर 2017 को शाम के 3.30 बजे एक भयानक दुर्घटना हुई जिसमें अखबारों की खबर के अनुसार 32 मजदूर मारे गए और सैकड़ों मजदूर घायल हो गए. इस दुर्घटना पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए ऐक्टू ने वहां तत्काल एक जांच टीम भेजी. ऐक्टू के 4-सदस्यीय जांच दल का नेतृत्व ऐक्टू के प्रदेश सचिव अनिल वर्मा कर रहे थे और इसमें कमल उसरी, माताप्रसाद और विजय विद्रोही शामिल थे. जांच दल ने ऊंचाहार थर्मल पावर जाकर तमाम स्थानीय लोगों, कर्मचारियों, मजदूरों, पेटी-ठेकेदारों, राख ढोने बाले ट्रक ड्राइवरों से पूछताछ की और निम्नलिखित जानकारी हासिल की.

ऊंचाहार थर्मल पावर में कुल 6 यूनिटें हैं. 5 यूनिटें 210 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता की हैं. छठवीं यूनिट 500 मेगावाट क्षमता की है, जिसमें यह भयानक दुर्घटना घटी. एनटीपीसी की यूनिट नं. 6 का सेफ्टी वाल्व दो दिन पहले से ही काम नहीं कर रहा था और टेक्नीशियनों ने अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि उसे ठीक नहीं करने से दुर्घटना हो सकती है. मगर वरिष्ठ अधिकारियों ने उनकी शिकायत पर कान नहीं दिया. वास्तव में एक टेक्नीशियन ने तो दुर्घटना से पहले वाली रात को ही प्रबंधन के अधिकारियों को बता दिया था कि सेफ्टी वाल्व जाम हो गया है और इससे कितना बड़ा खतरा हो सकता है. लेकिन प्रबंधन ने प्लांट बंद करके वाल्व को सुधारने के बजाय प्लांट चालू रखा. इसके अलावा, इस यूनिट का अलार्म सिस्टम काम नहीं कर रहा था. प्लांट में विस्फोट होने से ठीक पहले अफसर और टेक्नीशियन... किसी तरह बचकर भाग निकले. अगर अलार्म सिस्टम काम कर रहा होता तो मजदूरों को भी अपनी जान बचाकर बाहर निकलने का मौका रहता.

500 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाली इस यूनिट का निर्माण कार्य पूरा होने से छह महीने पहले ही उत्पादन शुरू हो चुका था हालांकि कई काम करने अभी बाकी थे. उदाहरणार्थ, दुर्घटना के समय बॉयलर में इनसुलेटर लगाया जा रहा था, जबकि वास्तव में इस काम को यूनिट में उत्पादन शुरू करने से पहले ही पूरा कर लिया जाना चाहिये. दुर्घटना के समय इस यूनिट में विभिन्न निर्माण कम्पनियों के मातहत 1650 मजदूर काम कर रहे थे. प्रबंधन इसके बारे में बिल्कुल खामोश है कि यूनिट में कितने मजदूर थे और निर्माण कम्पनियां या तो भाग गई हैं या फिर प्रबंधन ने उन्हें भगा दिया है. दुर्घटना के तुरंत बाद दुर्घटना-स्थल को पुलिस और पीएसी के जवानों ने सीलबंद कर दिया है. मारे गए मजदूरों की लाशों को चुपके से पिछले गेट से पांच ट्रकों तथा अन्य कुछेक छोटी गाड़ियों में भरकर बाहर ले जाया गया. पिछला गेट पास में स्थित गांव मुखरा की ओर जाता है. मुखरा गांव के एक निवासी अखिलेश शुक्ला ने बताया कि यह गेट कभी नहीं खोला जाता, मगर उस रात उस रात गेट खुला और ऊपर से ढके ट्रकों को बाहर निकाला गया. दुर्घटना स्थल पर 300 टन से ज्यादा राख पड़ी हुई है. इस राख को कब हटाया जायेगा ? राख और मलबे तले दबी संभावित मजदूरों की लाशों को निकालने की ओर प्रबंधन ने कोई प्रयास नहीं किया. अभी तक राख के ढेर की छानबीन करने के लिये किसी विशेषज्ञ टीम को नहीं भेजा गया है. सैकड़ों मजदूर गायब हैं लेकिन प्रबंधन को केवल अपने अपराधों को छिपाने की ही फिक्र पड़ी है.

सरकारी सूचना 32 लोगों के मरने की है और 70 मजदूरों को विभिन्न अस्पतालों में भरती कराया गया है. लोगों के अनुसार, मारे गए लोगों का आंकड़ा सिर्फ उनको लेकर है जिन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. जो अस्पताल नहीं पहुंचे, यानी जिनकी लाशें गायब कर दी गईं, उनका कोई हिसाब नहीं है. इनमें से अधिकांश मजदूर झारखंड, बिहार, ओड़िशा और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आये थे. स्थानीय मजदूरों की संख्या नगण्य है.

इस इकाई के निर्माण कार्य का जिम्मा भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि. (भेल) को सौंपा गया था, जिसने इस काम का ठेका एक निजी कम्पनी को सौंप दिया, और उस कम्पनी ने भी एक तीसरी कम्पनी को इसका ठेका दे दिया. यहां तक भी कहा जा रहा है कि यूनिट का निर्माण पूरा होने के पहले ही इसमें बिजली पैदा करने का काम शुरू करने के पीछे दबाव यह था कि एक मंत्री द्वारा इसका उद्घाटन किया जाना था. इस दुर्घटना की जांच का जिम्मा रायबरेली के एडीएम को सौंपा गया है, जिन्होंने अनौपचारिक बातचीत में बताया कि खुद उनको तक मालूम नहीं कि उनको क्या जांच करनी है.

इस दुर्घटना का एक कारण सप्लाई किए जा रहे कोयले में ढेर सारे पत्थरों की मौजूदगी से पैदा दबाव है. एक जानकार स्रोत ने बताया कि दुर्घटना इसलिये हुई कि राख के पाइप में एक पत्थर फंस गया जिससे गांठ बनने के चलते विस्फोट हुआ. इस दुर्घटना की उच्चस्तरीय जांच जारी है. मारे गए मजदूरों में मुरारी, लवलेश, हीरा सिंह आदि सोनभद्र से हैं और जगदीश एवं विक्की रायबरेली से हैं. मारे गए लोगों में एक उप महाप्रबंधक (एजीएम) भी है.

इस बात की प्रबल संभावना है कि इस दुर्घटना में वास्तव में सैकड़ों मजदूर मारे गए हैं. इसकी सच्चाई सिर्फ तभी सामने आ सकती है जब किसी निष्पक्ष एजेंसी से इसकी विस्तारित जांच कराई जाये. अन्यथा सैकड़ों मजदूरों के परिवारों को अंतहीन इंतजार के बावजूद न्याय नहीं मिलेगा.  विजय विद्रोही