केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 15 मार्च को अखिल भारतीय प्रतिरोध दिवस के आयोजन का फैसला

22 फरवरी को आयोजित केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की बैठक ने वर्तमान सरकार द्वारा जनता की आजीविका और अधिकारों पर हमलों को तेज़ करने और राष्ट्रीय हितों पर कुठाराघात करने की तीखी भर्त्सना की.

मजदूर वर्ग पर हमले आक्रामक स्तर पर पहुँच चुके हैं जिनके केन्द्र में श्रम कानूनों को पूरी तरह खत्म करके विभिन्न तरीकों से नौकरियों को पूरी तरह अस्थाई प्रकृति का बना देने की साजिश है, जैसे ठेका मजदूरी कानून में संशोधन, फिक्स्ड टर्म इम्प्लायमेंट ऐक्ट आदि. इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान दिया गया कि सरकार इस देश के औद्योगिक मानचित्र से सार्वजनिक क्षेत्र को पूरी तरह खत्म कर देने में लगी हुई है. इनमें रेलवे में निजीकरण के हमले, कोयला खदानों को देशी और विदेशी कंपनियों के लिए बिना किसी पाबंदी के पूरी तरह खोल देना, व्यापक आउटसोर्सिंग के ज़रिए डिफेंस प्रोडक्शन नेटवर्क का भारी पैमाने में निजीकरण और विघटन, और इस तरह लगभग आधी डिफेंस फैक्टरियों को पूरी तरह खत्म कर देना सरकार के जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी कदमों के कुछ उदाहरण हैं. कॉरपोरेट घरानों द्वारा बैंको के फंडों की भारी लूट और साथ ही इन्हीं कॉरपोरेटों द्वारा इस फंड लूट की ताजी घटनाओं के चलते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको की डूबंत परिसम्पत्तियों (एनपीए) का भारी पैमाने पर जमा होना यही दिखाता है कि ये सरकार कुछ बड़े औद्योगिक घरानों की पीठ पर हाथ रखकर राष्ट्रविरोधी कार्य कर रही है.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 2018-2019 के बजट की पुनः घोर निंदा की. यह बजट अपनी प्रकृति में ही जन-विरोधी और मजदूर-विरोधी है और इसमें बिना किसी वास्तविक कोष आवंटन के सिर्फ जनता को छलने के लिए थोथे जुमलों की भरमार है.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भारतीय श्रम सम्मेलन के 47वें सत्र को मुल्तवी करके त्रिपक्षता को एक मजाक बना देने के सरकार के चालबाजी भरे कदम की निंदा की. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने पूरे देश में संगठित और असंगठित दोनो ही क्षेत्रों में उठ रहे मजदूर संघर्षों का स्वागत किया. कोयला और परिवहन क्षेत्र के मजदूर बहुत जल्द ही अपने क्षेत्रों में संगठित कार्रवाई के लिए तैयारी कर रहे है. डिफेंस प्रोडक्शन की सभी फेडरेशनों ने संयुक्त रूप से 15 मार्च 2018 को देशव्यापी हड़ताल करने का फैसला किया है. अभी कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाइयां होने वाली हैं. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने आने वाले दिनों में अनिश्चितकालीन अखिल भारतीय हड़ताल की तैयारियों को और तेज़ करने का संकल्प लिया, और मजदूर वर्ग व कामगार जनता के तमाम हिस्सों का इसमें शामिल होने का आहृान किया.

15 मार्च 2018 को अखिल भारतीय प्रतिरोध दिवस

राष्ट्र विरोधी निजीकरण के कदम के खिलाफ डिफेंस प्रोडक्शन कर्मियों की हड़ताल के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये 2018-2019 के जन विरोधी और धोखाधड़ी के केन्द्रीय बजट के विरोध में केंद्रीय बजट 2018-2019 पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के प्रस्ताव

(निम्नलिखित प्रस्ताव दस केंद्रीय ट्रे़ड यूनियनों ने 5 दिसंबर 2018 को बजट-पूर्व बैठक में वित मंत्री को दिये)

  • समाजिक क्षेत्रः सरकार को केंद्रीय बजट में सामाजिक क्षेत्र एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं पर बजटीय आवंटन को बढ़ाना चाहिए. जरूरी वित्तीय संसाधनों को अमीरों पर टैक्स बढ़ाने के जरिए मजबूत करना चाहिए.
  • सरकार बड़े व्यावसायिक और कॉरपोरेट घरानों द्वारा जानबूझ कर की जा रही टैक्स चोरी, जिसके चलते राजकोष को भारी हानि हो रही है, पर रोक लगाने के लिये कारगर कदम उठाए. पनामा पेपर्स और पैरेडाइस पेपर्स के खुलासों पर तेजी से जांच की जाए. और अधिक, मनमर्जी से टैक्स चोरी को आपराधिक कृत्य माना जाए और ऐसा करने वाले कॉरपोरेटों की सूची को सार्वजनिक किया जाए.
  • न्यूनतम मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ते हुये इसे हर मजदूर को सुनिश्चित किया जाय और न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिये 15वें भारतीय श्रम सम्मलेन की सिफारिशों और इस मसले में रैप्टाकॉस एंड ब्रेट मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश तय किया जाय. यहां तक कि, 7वें केंद्रीय वेतन आयोग ने भी मासिक न्यूनतम वेतन 18,000रू. तय किया है जिसे सरकार ने मान लिया है. इसलिये, किसी भी हालत में मौजूदा दौर में न्यूनतम मजदूरी 18,000 रुपये प्रति माह से कम नहीं होनी चाहिये. आवश्यकता आधारित न्यूनतम वेतन को सामाजिक सुरक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिये.
  • बुनियादी, खासकर खाने की वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं जिनके चलते मजदूरों और अन्य मेहनतकशों के लिये अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना भी असंभव हो गया है. वायदा कारोबार और जमाखोरी कीमतों की बढ़ोतरी के मुख्य कारक हैं. बुनियादी वस्तुओं के वायदा कारोबार पर सरकार प्रतिबंध लगाये; सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत और सार्वत्रिक बनाने तथा जमाखोरी की रोकथाम की गारंटी के सख्त कदम उठाये.
  • सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को मजबूत एवं विस्तारित किया जाना चाहिये. पुनर्जीवित होने लायक बीमार सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को पुनर्जीवन के लिये जरूरी बजटीय सहायता दी जानी चाहिए. लाभप्रद सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों की रणनीतिक बिक्री के जो कदम सरकार उठा रही है, उन पर रोक लगनी चाहिए. ट्रांस्पोर्ट वेहिकल ऐक्ट जो सरकार के मालिकाने वाली सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के निजीकरण का रास्ता खोलता है, को वापस लिया जाय.
  • पिछले कुछ वर्षों में रोजगार सृजन बुरी तरह से नीचे गिरा है. रोजगार सृजन के लिये अधिसंरचनात्मक ढांचे, सामाजिक क्षेत्र और कृषि में सार्वजनिक निवेश में भारी वृद्धि होनी चाहिये. केंद्रीय बजट में इसके लिये प्राथमिकता देते हुये जरूरी आवंटन होना चाहिए. सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों और स्वायत्त संस्थानों में तमाम रिक्त पदों पर नयी भर्ती की जाय. नये पदों के सृजन पर लगी रोक को हटाया जाय; पदों को खत्म करने (सरेंडर) के चलन पर रोक लगाई जाय.
  • औद्योगिक और पूंजीगत मालों व वस्तुओं के बेलगाम आयात पर लगाम लगाई जानी चाहिये जिससे कि इनकी डंपिंग को नियंत्रित किया जा सके. घरेलू उद्योगों को संरक्षा और प्रोत्साहन दिया जाय. यह रोजगार में क्षति को रोकने में मदद देगा.
  • मनरेगा के लिये आवंटन को बढ़ाया जाय. मनरेगा के तहत कार्यरत मजदूरों की मजदूरी की अदायगी को तत्काल सुनिश्चि किया जाय. मनरेगा के दायरे को शहरी इलाकों में विस्तारित करने के लिये इस कानून में संशोधन किया जाय. 43वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सर्वसम्मत सिफारिशों के आधार पर मनरेगा के दायरे को शहरी इलाकों में विस्तारित करने, न्यूनतम 200 दिनों का रोजगार व साथ ही सुनिश्चित वैधानिक मजदूरी मुहैया करायी जाय.
  • ठेका/कैजुअल मजदूरों को स्थाई प्रकृति के कामों में नियोजित न किया जाय. नियमित मजदूरों की तरह काम कर रहे ठेका/कैजुअल मजदूरों को समान काम के लिये समान वेतन एवं अन्य सुविधायें प्रदान की जायें, जैसा कि 2016 के सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश में दुहराया गया है.
  • केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के निरंतर विरोध के बावजूद सरकार प्रतिरक्षा उत्पादन, रेलवे, वित्तीय क्षेत्र, खुदरा व्यापार, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एफडीआई के प्रवेश को इजाजत दे रही है. विशाल मात्रा में एनपीए हड़प चुके कॉरपोरेट घरानों को डिफेंस जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश करने की इजाजत दी जा रही है. हम पुनः यह मांग दुहराते हैं कि इन रणनीतिक क्षेत्रों में एफडीआई को इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.
  • डिफेंस सेक्टर के निजीकरण पर रोक लगनी चाहिए. सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिरक्षा कारखानों द्वारा उत्पादित 273 में से 143 वस्तुओं के आउटसोर्सिंग के आदेश को वापस लिया जाय.
  • आई.सी.डी.एस., एनएचएम (आशा), मिड-डे मील योजना, विद्या स्वयंसेवक, गेस्ट टीचर, शिक्षा मित्र और अन्य योजनाओं में नियोजित कर्मचारियों की विशाल संख्या को नियमित किया जाय. इन कर्मियों के नियमितिकरण होने तक, इन्हें 45वें भारतीय श्रम सम्मलेन की सिफारिश के अनुसार कामगार का दर्जा प्रदान किया जाय, इन्हें न्यूनतम मजदूरी और पेंशन समेत सामाजिक सुरक्षा मुहैया की जाय. केंद द्वारा पोषित इन योजनाओं के किसी भी किस्म के निजीकरण पर रोक लगायी जाय और बजटीय आवंटन में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि की जाय.
  • घरेलू कामगारों के लिये आइएलओ कन्वेंशन 189 को मंजूरी दी जाय और इनके लिये केंद्रीय कानून लाया जाय और सहायता प्रणाली तैयार की जाय.
  • सभी असंगठित कामगारों - ठेका, कैजुअल, प्रवासी मजदूरों समेत- को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय कोष निर्मित किय जाय. स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका की सुरक्षा और स्ट्रीट वेंडिंग का नियमन) कानून के तहत सभी राज्य सरकारें नियमावली तैयार करें और स्ट्रीट वेंडिंग को रोजगार के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के बतौर विकसित करने के लिये राशि आवंटित की जाय. निर्माण मजदूरों के लिये कल्याण बोर्ड में जमा सेस के उचित प्रबंधन की गारंटी के लिये इसकी जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय को दी जाय.
  • मजदूरों के बुनियादी और यूनियन बनाने के अधिकारों में कटौती लाने वाले, और मालिकों को बेलगाम ‘हायर एंड फायर’ की छूट देने वाले श्रम कानूनों में संशोधनों पर रोक लगाई जाय. वेज बिल पर कोड, जो अभी श्रम पर संसद की स्थाई समिति के समक्ष है और मसौदा आईडी बिल कोड पर कोड केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा सर्वसम्मिति से दिये गए सुझावों के आधार पर तय होने चाहिए. ट्रेड यूनियनों और मजदूरों, जो प्रमुख सहभगी हैं और सबसे अधिक प्रभावित हैं, की सहमति के बिना श्रम कानूनों में कोई संशोधन न किया जाएं.
  • ईपीएफ योजना के तहत कर्मचारियों की सीमा को घटाकर 10 तक लाया जाए. ईपीएस योजना को कायम रखने और 3000रू. प्रति माह न्यूनतम पेंशन प्रदान करने के लिये सरकार एवं मालिकों के अंशदान को बढ़ाया जाय. ईपीएफ राशि के स्टाॅक/इक्विटी बाजार में निवेश पर रोक लगाई जाय. सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएस-95 के तहत पेंशन की उच्चतर राशि की अदायगी का निर्देश दिया है. इस स्कीम के तहत आने वाले सभी मजदूरों के लिये इस विकल्प को मुहैया किया जाए.  
  • सभी मजदूरों को पेंशन दी जाय और इसे डेफर्ड वेज (स्थगित वेतन) समझा जाय.
  • नयी पेंशन योजना को वापस लिया जाय और केंद्र व राज्य सरकारों के 1.1.2004 से नये भर्ती कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के तहत ही शामिल किया जाय.
  • पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी ऐक्ट के तहत ग्रेच्युटी को 20 लाख रूपये किया जाय.
  • सरकार को आधार को अनिवार्य नहीं बनाना चाहिए
  • बंद और बीमार कारखानेः यह सुनिश्चित किया जाय कि बंद कारखानों के मजदूरों को एक तय अवधि सीमा में उनके देय का भुगतात हो. बीआईएफआर को अचानक खत्म कर दिये जाने से इस समस्या को बिना निवारण के छोड़ दिया गया है.
  • वेतनभोगियों एवं पेंशनरों के लिए आय कर पर छूट की सीमा को सालाना 5 लाख रूपये तक बढ़ाया जाय. आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की सुविधाओं जैसे फ्रिंज बेनेफिट्स् और रेलवे में रनिंग एलाउंस को पूर्णतः आयकर मुक्त रखा जाय.
  • राजनीतिक फंडिंग के मामले में, हाल ही मेें सरकार ने कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को सहयोग में दी जाने वाली राशि पर से सीमा को हटा दिया है और साथ सहयोग प्राप्त करने वाली पार्टी का नाम बताने की आवश्यकता को भी हटा दिया है. सार्वजनिक जीवन में जो पारदर्शिता का वादा किया गया था, यह उससे उलट है. इसलिये जो पहले से नियम था उसे बरकरार रखा जाय.
  • रेलवे के लिये जरूरी आवंटन किया जाय जिससे कि उसे आम आदमी खासकर गरीबोें के लिये कारगर, सुगम और सस्ता बनाया जा सके. रेलवे के निजीकरण को बंद किया जाय. देशभर में रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में देने के कदमों पर रोक लगाई जाय. रेलवे में 100 प्रतिशत एफडीआई के निर्णय को वापस लिया जाय. रेलवे में लंबित योजनाओं - जैसे रेलवे लाइनों का विस्तार, मरम्मत और सिग्नल प्रणाली को बेहतर बनाना - इन्हें जल्द से जल्द से पूरा किया जाय. सुरक्षा प्रणाली और सुरक्षित रेल यात्रा को सुनिश्चित करने के लिये जरूरी आवंटन किया जाय. सभी रिक्त पदों को भरा जाय. रेलवे कर्मचारियों की महत्वपूर्ण लंबित मांगों जैसे कर-छूट के लिये रनिंग एलाउंस की सीलिंग को बढ़ाया जाना, हाउसिंग स्कीम आदि पर उचित ध्यान दिया जाय.ु