नवम्बर क्रांति की प्रेरणादायक विरासत

सौ साल पहले दुनिया में एक अलग किस्म का भूचाल आया था. रूस में हुए एक अभूतपूर्व उभार ने समूची धरती को हिलाकर रख दिया था. यह एक ऐसी क्रांति थी जिसमें दुनिया के इतिहास में पहली बार राजसत्ता धनाढ्यों और कुलीनों के एक छोटे से गुट के हाथों से निकलकर दबे-कुचले और मेहनतकश जनसमुदाय के हाथों चली आई थी. यह कोई सामरिक तख्तपलट अथवा षड्यंत्रमूलक प्रहार नहीं था बल्कि इसमें एक निरंकुश शासन के अवशेषों को संगठित जन-शक्ति की लहरों ने बहाकर साफ कर दिया था. यह दबे-कुचलों का त्यौहार था, अधिकारों से वंचित जनता का स्वतंत्रता के जीवन में जागरण था. यह महान अक्टूबर क्रांति - जिसे अब कलेंडर बदले जाने के बाद नवम्बर क्रांति कहा जाता है - थी जिसका नेतृत्व लेनिन और उनकी बोल्शेविक क्रांतिकारी पार्टी ने किया था.

इससे पहले कभी भी दुनिया ने इस किस्म के किसी बदलाव को और वह भी इतने बड़े पैमाने पर होते नहीं देखा था. सच है कि लगभग सत्तर साल पहले प्रकाशित कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र मानव मुक्ति के एक नये युग की ओर कूच के लिये पुरानी (पूंजीवादी) व्यवस्था को क्रांति के जरिये उखाड़ फेंके जाने की परिकल्पना पेश कर चुका था. यह भी सच है कि मार्क्स की शास्त्रीय रचना ‘पूंजी’ का सर्वप्रथम प्रकाशन पचास साल पहले हो चुका था, और इसके चंद वर्षों बाद ही पेरिस के बहादुर कम्यूनार्डों ने मजदूर वर्ग के नेतृत्व में क्रांति की अवधारणा कारगर होने की संभावना को अपनी कार्यवाही में प्रदर्शित कर दिया था. फिर भी, नवम्बर क्रांति ने ही इस दूरदृष्टि की पूर्ण संभावना को पहली बार, सुस्पष्ट और निर्णायक रूप से, समूची दुनिया के सामने दर्शाया था. दुनिया को पहली बार जनता के ऐसे विद्रोह का प्रतिमान मिला, जिसमें मजदूर और किसान एक साथ आ मिले, नागरिक और सिपाही साथ मिलकर लड़े, महिलाएं और पुरुष कदम-से-कदम मिलाकर आगे बढ़े, युवाओं और उम्रदराजों ने साथ मिलकर अपनी जीत का जश्न मनाया.

जरूर, यह सब कुछ केवल उन दस दिनों में सम्पन्न नहीं हुआ था जिन्होंने दुनिया को हिला दिया, जिनको महान समाजवादी इतिहासकार जॉन रीड ने अपने अमर रोजनामचे में दर्ज किया है. क्रांतिकारी रूसी सामाजिक-जनवादी श्रमिक पार्टी, जो विकसित होकर अंततः सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी में परिणत हो गई, के उत्थान को सुगम बनाने में वर्ग संघर्ष के कई दशक लगे थे, इसमें सिलसिलेवार ढंग से की गई हड़तालों एवं अन्य बहुतेरे संघर्षों, बड़ी मात्रा में अध्ययन और विश्लेषण, शोधकार्य और सामाजिक जांच-पड़ताल, कठोर संगठनात्मक अनुशासन और महान राजनीतिक कल्पना-दृष्टि एवं पहलकदमी की, और यकीनन 1905 की विफल क्रांति और फरवरी 1917 की क्रांति के प्रारंभिक प्रयास समेत, ढेर सारी विफलताओं और पूर्वाभ्यासों का भी योगदान था.

नवम्बर क्रांति ने क्रांति के सम्बंध में पुराने कम्युनिस्ट विचार - कि केवल पूंजीवाद के संतृप्त बिंदु पर पहुंच जाने की स्थिति में ही क्रांति संभव होगी, जो पूंजीवाद में अंतर्निहित अंतरविरोधों के विस्फोट का बिंदु होगा - में भारी बदलाव किया. इसके बजाय क्रांति एक पिछड़े पूंजीवादी देश में सम्पन्न हुई जो सामंती अवशेषों से लदा हुआ था और जिस पर निरंकुश जारतंत्र का शासन चलता था. इसने वैश्विक पैमाने पर न भी हो तो महाद्वीप के पैमाने पर क्रांति की जो बुलंद प्रत्याशा पहले की जाती थी, उसकी जगह किसी एकल देश में क्रांति करने, साम्राज्यवादी श्रृंखला को उसकी सबसे कमजोर कड़ी पर तोड़ने की संयमित वास्तविकता को सामने ला दिया. यकीनन, इस क्रांति ने विश्वव्यापी जागरण को जन्म दिया और बीसवीं सदी के प्रथमार्ध में दुनिया के हर कोने में आजादी और लोकतंत्र की लड़ाई में सबसे मजबूत प्रेरणा-शक्ति का काम किया.

कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र के साथ, नवम्बर क्रांति ने समूची दुनिया में समाजवाद के विचारों को फैलाने तथा कम्युनिस्ट आंदोलनों को प्रेरित करने में सबसे बड़ा योगदान किया. बाद में भले ही उसमें कितनी भी सीमाबद्धताएं और समस्याएं उभर आई हों, इतना तो जरूर कहना होगा कि नवम्बर क्रांति के बाद गठित कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन को उसके प्रारंभिक वर्षों के दौरान प्रोत्साहित करने तथा शक्ति प्रदान करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी. रूस का एक पिछड़े देश से अग्रगामी राष्ट्र में परिवर्तन, जिसमें वहां के सभी तबकों की मेहनतकश जनता को जिस किस्म के बराबरी के अधिकार मिले, वैसा पहले किसी भी पूंजीवादी देश में नहीं देखा गया था और वहां मुनाफे के भूखे बाजार अर्थतंत्र की जगह जन-पक्षीय योजना-आधारित अर्थतंत्र का उदय हुआ, जिसने समाजवाद के संदेश को दूर-दूर तक फैला दिया. सचमुच, सोवियत संघ के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय असर ने उसे दुनिया भर के उन देशों के लिये गोलबंदी का केन्द्र बना दिया जो स्वतंत्र एवं समृद्ध राष्ट्रों के रूप में उभरने के लिये औपनिवेशिक एवं सामंती बाधाओं पर जीत हासिल करने का प्रयत्न कर रहे थे. बीसवीं सदी के अधिकांश भाग में सोवियत संघ पूंजीवादी दुनिया का शक्तिशाली विरोध-केन्द्र बना रहा.

सोवियत संघ का ठहराव, पटरी से उतरना और अंततः पतन, राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों के लिये उसकी प्रेरणादायक भूमिका को विस्मृत नहीं करा सकता; हिटलर के फासीवादी आक्रमण के खिलाफ प्रतिरोध की दीवार के बतौर, जिसने फासीवादी हमले को सीधे अपने सीने पर झेला और अंततः युद्ध में विजय प्राप्त की, जिससे समूची दुनिया ने भारी राहत की सांस ली और चारों ओर खुशी छा गई, और अंततः अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व-प्रभुत्व कायम करने के प्रयासों के खिलाफ प्रतिद्वंद्वी ध्रुव के बतौर उसकी भूमिका को कत्तई भुलाया नहीं जा सकता. दुनिया के रंगमंच से सोवियत संघ के अदृश्य हो जाने के फलस्वरूप हम बड़े भारी पैमाने पर वैश्विक पूंजी का नव-औपनिवेशिक हमला तथा अमरीका द्वारा विश्व पर एकध्रुवीय प्रभुत्व कायम करने का बेताबीभरा अभियान देख रहे हैं, और अब डोनाल्ड ट्रम्प तथा विभिन्न देशों में उसकी तुरही बजाने वालों के उत्थान, यहां तक कि हिटलरी ब्रांड के फासीवाद के पुनरुत्थान का खतरा बहुत वास्तविक लग रहा है. महान नवम्बर क्रांति की सौवीं वर्षगांठ का पालन करने के दौरान हमारे समारोह केवल विश्व-इतिहास की एक निर्णायक घड़ी को बुलंद करने तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि वर्तमान घड़ी का मुकाबला करने तथा संकटग्रस्त वैश्विक पूंजीवाद तथा पूंजीवादी लोकतंत्र के बुरी तरह छिन्न-विच्छिन्न एवं जर्जर हो चुके प्रतिमान द्वारा हमारे सामने पेश की गई चुनौतियों का क्रांतिकारी जवाब विकसित करने के लिये उस क्रांति की विभिन्न शिक्षाओं और प्रेरणा को ग्रहण करने के दृढ़प्रतिज्ञ संकल्प का अवसर होना होगा.

यकीनन, अपने विध्वंस में भी बीसवीं सदी के इस महान विश्व-ऐतिहासिक प्रयोग - सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ या यूएसएसआर - ने हमारे सामने ऐसे सवाल पेश किये हैं, जिनका इक्कीसवीं सदी के समाजवाद को उत्तर देना होगा. समाजवाद को अपनी आंतरिक गतिशीलता में पूंजीवाद को पछाड़ना होगा, समाजवादी जनवाद को हर पहलू से पूंजीवादी जनवाद पर अपनी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने योग्य बनना होगा, कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले संगठित और समाजवादी राज्य की रहनुमाई करने वाले मजदूर वर्ग को समूचे वर्ग के स्थायी, निरंतर और व्यापक प्रतिनिधित्व तथा उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा और समाजवादी मॉडल को आगे बढ़ाने के लिये विज्ञान एवं टेक्नालॉजी तथा ज्ञान के अन्य क्षेत्रों और सृजनात्मक कलाओं में होने वाली प्रगति से लगातार खुद को लैस करना होगा. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात नवम्बर क्रांति की शानदार नवसृजनकारी एवं क्रांतिकारी भावना है, प्रतिकूलता को अवसर में बदलने और जनता एवं कम्युनिस्ट लक्ष्य की क्रांतिकारी अग्रगति के हित में, मौके पर मजबूती से और निर्णायक तौर पर गिरफ्त हासिल करने की भावना है, जो आज के कम्युनिस्टों को हमारे जमाने के ट्रम्प और पुतिन और एर्दोगान जैसे लोगों का मुकाबला करने में आवश्यक रूप से मार्गदर्शन करती है और प्रेरणा देती है.

पश्चलेखः यह स्मरण करना अत्यंत हर्ष की बात है कि लिबरेशन पत्रिका ने अपनी यात्रा नवम्बर 1967 में, महान नवम्बर क्रांति की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर शुरू की थी. ऐतिहासिक नक्सलबाड़ी का किसान विद्रोह अभी चंद महीने पहले ही हुआ था और उसका वज्र-निनाद समूचे भारत में दूर-दूर तक गूंजना शुरू हो चुका था. दुनिया भर के कम्युनिस्टों ने सोवियत संघ में ठहराव और विकृतियों, खासकर उसकी विदेश नीति में आई विकृतियों के प्राथमिक चिन्हों के खिलाफ, अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ प्रतियोगिता में अतिमहाशक्ति बनने के रोग-लक्षणों के खिलाफ शक्तिशाली बहस छेड़ दी थी - और लिबरेशन ने भारतीय राज्य द्वारा ढाये गये बर्बर दमन का मुकाबला करते हुए नक्सलबाड़ी के संदेश को फैलाने तथा नवम्बर क्रांति की क्रांतिकारी विरासत को बुलंद करने के अपने प्रयास में इस वाद-विवाद में हिस्सा लिया था. आज जब नवम्बर क्रांति के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं तो लिबरेशन ने भी अपने चुनौतीभरे पचास वर्षों के सफर को पूरा कर लिया है. लिबरेशन लेनिन और नवम्बर क्रांति तथा चारु मजुमदार और नक्सलबाड़ी की सदा-सर्वदा प्रेरणादायक क्रांतिकारी विरासत को सलाम करता है. हम लड़ेंगे और अवश्य जीतेंगे.