‘सड़क पर स्कूल’ शिक्षा अधिकार आंदोलन

सड़क पर स्कूल’ शिक्षा अधिकार आंदोलन

भोजपुर जिले (बिहार) के सेवथा, नाढ़ी और बरुना के सैकड़ों छात्र-नौजवानों व उनके अभिभावकों ने इनौस (इंकलाबी नौजवान सभा), आइसा व भगत सिंह युवा ब्रिगेड के नेतृत्व में  ‘जब स्कूल की शिक्षा लड़खड़ाई, तो सड़क पर होगी पढ़ाई’ बैनर के तहत सड़क पर स्कूल शिक्षा अधिकार आंदोलन का 8वां चरण लगाया.

स्कूल का संचालन प्रार्थना से शुरू हुआ और वर्ग आधारित शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाया. सभी विषयों के साथ-साथ सांस्कृतिक विषय का भी क्लास चला. संगीत का कार्यक्रम हुआ जिसमें सेवथा की खुशबू, पिंकी, चांदनी ने आंदोलन से उत्साहित हो कर इस आंदोलन की तैयारी के क्रम में गायन टीम का गठन कर तैयार किया हुआ बल्ली सिंह चीमा द्वारा रचित ‘ले मसाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के’ गीत के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया. इसके आलावा कलाकार राजू रंजन की टीम ने भी जनगीत गाया.

उसके बाद उपस्थित छात्र-छात्राओं ने शपथ ली: ‘हम सभी छात्र-छात्राएं बाबा साहेब डा. अंबेडकर, शहीद-ए-आजम भगत सिंह और भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले के नाम से शपथ लेते हैं कि हम अपने स्कूल में बेहतर पढ़ाई, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अपने भविष्य और अपने सपनों के लिए छात्र-छात्राओं की एकता बनाकर लड़ेंगे और जीतेंगे. हम सरकार को अपने शिक्षा के मौलिक अधिकार, अपने भविष्य, अपनी जिंदगी, अपने सपनों से खेलने नहीं देंगे. हम इस देश की नई पीढ़ी हैं, नया खून हैं, भविष्य हैं; पर हमारे भविष्य को हुकूमत मार रही हैं.’

बच्चों ने मध्यावकाश में अपने घर से लाया खाना भी खाया. स्कूल में बच्चों के हाथ में किताब के साथ-साथ लाल झण्डा और अपनी मांगों के समर्थन में लिखे नारों के प्लेकार्डस भी थे.

सेवथा में वर्ष 2010 में ही दलित-ग़रीब मुहल्ले में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल बनाने का फैसला हुआ था, लेकिन 3 साल तक एक सार्वजनिक पुस्तकालय में यह स्कूल चला. यह पुस्तकालय जनता ने अपनी जमीन और गाढ़ी कमाई से बनाया था. यहां की गरीब जनता ने इस स्कूल को बनाने के लिए अपनी जमीन भी दी थी, फिर भी सरकार ने स्कूल बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और इस स्कूल को दूसरे स्कूल में ‘मिला दिया जो भूस्वामियों के मुहल्ले में अवस्थित है और गरीब मुहल्ले से एक किमी. से भी ज्यादा दूरी पर है.

प्राथमिक विद्यालय, बरुना, मुसहरटोली के स्कूल में कुल 64 बच्चे नामांकित हैं. टीचर तीन हैं जिनमें एक टीचर महीने में कभी-कभी ही आते हैं. क्लास रूम एक ही है वह भी पूरी तरह जर्जर. इसकी छत टूट-टूट कर गिरती है जिससे बच्चे और शिक्षक घायल होते रहते हैं, प्रधानाध्यापक ने बताया कि कई बार ब्लॉक के बीडीओ और प्रखंड शिक्षा अधिकारी को लिखित आवेदन देने पर  भी  कोई कार्रवाई नहीं की गई. क्लास रूम के अभाव के चलते एक ही कमरे में चौथी और 5वीं क्लास के बच्चे पढ़ते हैं और पहले से तीसरी क्लास के बच्चे बरामदे में पढ़ते हैं.

बिना पुस्तक और बिना पढ़ाई के ही ले ली गई छमाही परीक्षा:

अभी तक नीतीश सरकार ने नहीं दी हैं किताबें

आंदोलनरत गांवों का सामंतवाद विरोधी संघर्ष का एक इतिहास भी रहा है. एक समय जनता अपने मान-सम्मान, वोट देने के अधिकार समेत अपने राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी और सामंतवादी ताकतों को धूल चटाते हुए अपने अधिकार हासिल किये थे. लेकिन अभी तक गरीबों के बच्चों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पाया है. सरकार जानती है कि सरकारी विद्यालयों में गरीब दलित, किसान-मजदूर, शोषितों के बच्चे ही पढ़ते हैं, इसलिए इनके भविष्य की चिंता सरकार को नहीं है. ऐसी स्थिति में जनता  ने इनौस-आइसा व भगत सिंह युवा ब्रिगेड के नेतृत्व में ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन का नया  रूप निकाल लिया. यह आंदोलन गांवों के विभिन्न समुदायों और पार्टियों के बीच के फर्क को पाटते हुए गांव से लेकर गली, टोला-मुहल्ला तक लोकप्रिय होते जा रहा है.

सेवथा में इसकी तैयारी में पहली बार पचासों की संख्या में महिलाओं, लड़कियों ने भाग लिया. नाढ़ी, जहां रणवीर सेना के साथ तीखा संघर्ष रहा है, में भी आम जनता के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं व लड़कियों, जो आम तौर पर हमारी मीटिंग में नहीं आती थीं, ने भी इस आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. यहां तक कि उन भूस्वामियों के घर की स्कूली लड़कियां भी ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन में भाग लेने के लिए आपने गांव से बाहर निकल गईं. लेकिन फिर उन्हें मुखिया ने वापस कर लिया.

सड़क पर स्कूल’ को संबोधित करते हुए इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य अध्यक्ष मनोज मंजिल ने कहा कि मोदी-नीतीश सरकार स्वच्छता अभियान के नाम पर देश के बुनियादी सवालों - शिक्षा व रोजगार के मुद्दों - से लोगों का ध्यान हटा रही है, जब कि बिहार के लगभग सभी सरकारी विद्यालयों में शौचालय का अभाव है. इनके शासन में ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था और चौपट हो गई है. साल खत्म होने को है, लेकिन विद्यालयों में बच्चों को किताबें नहीं मिलीं और यह सरकार के लिए शर्म की बात है कि बिना किताब के बच्चों से छमाही परीक्षा ली गई. स्कूलों में बुनियादी सुविधा का घोर अभाव है. सरकार शिक्षा के बाजारीकरण-निजीकरण की अपनी नीति के तहत सरकारी विद्यालयों को पंगु बनाना चाहती है जिससे दलितों, गरीबों, अपसंख्यकों, शोषितों, किसानों-मजदूरों के बच्चों का मानसिक-बौद्धिक स्तर गिराये रखकर उनको अपना वोट बैंक बनाये रखें और उन्हें राजनीतिक हिसेदारी से दूर रख सकें.

सरकार बच्चों को शिक्षा के अधिकार के उनके संवैधानिक अधिकार से बेदखल कर रही है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार का यही रवैया जारी रहा तो आने वाले दिनों में छात्र-नौजवान जिले की सभी सड़कों और प्रखंड कार्यालय को ही अपना स्कूल बनाएंगे.

आइसा के राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग कर रहे छात्रों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज व आइसा अध्यक्ष मुख्तार सहित कई छात्रों की गिरफ्तारी की निंदा की.

लगातार सात घंटे तक चले इस ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन से लगभग पांच किमी. तक गाड़ियों की लम्बी लाइन लग गई. बच्चों और वहां उपस्थित उनके अभिभावकों तथा आम जनता के आक्रोश के सामने ब्लॉक प्रसाशन को झुकना पड़ा और आंदोलन स्थल पर पहुंच कर उसे वार्ता करनी पड़ी जिसमें प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी व अंचलाधिकारी मौजूद थे. शुरू में तो अधिकारियों द्वारा इन मुद्दों को रफा-दफा करने की कोशिश की गई, लेकिन वार्ता कर रहे नेताओं और आम जनता के आक्रोश ने ऐसा नहीं होने दिया. मांगपत्र के एक-एक सवाल पर वार्ता हुई. जनता ने अधिकारियों को ये कहा कि वे अभी के अभी सेवथा में स्कूल की जमीन का निरीक्षण करें तब वार्ता आगे बढ़ेगी. अधिकारियों को वहां जाना पड़ा और स्कूल बनाने के आश्वासन देने के बाद स्कूल की छुट्टी की घोषणा हुई.