गौरी लंकेश की शहादत नाकाम नहीं जायेगी

Gauri Lankesh
गौरी लंकेश

निर्भीक पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या 5 सितम्बर 2017 की शाम को बेंगलूरु में कर दी गई जब वे दिन भर के कार्यक्रमों को सम्पन्न करने के बाद राजराजेश्वरी नगर स्थित अपने आवास वापस जा रही थीं. बड़ी तादाद में पाठकों द्वारा पढ़ी जाने वाली ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ के सम्पादक के बतौर गौरी साम्प्रदायिक विद्वेष, जातिगत उत्पीड़न तथा तमाम किस्मों के अन्याय के खिला खड़ी होने वाली सशक्त आवाज थीं. वे सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के पक्ष में अनथक अभियान चलाने वाली कार्यकर्ता थीं.

जिस दिन उनकी हत्या हुई, उसी दिन उन्होंने एक साम्प्रदायिकता विरोधी कन्वेंशन में भाग लिया था. उनका अंतिम सम्पादकीय फेक न्यूज (झूठी खबर) की परिघटना तथा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को तीखा करने, जनता के बीच पूर्वाग्रहों को फैलाने एवं उनको गुमराह करने के मकसद से संघ ब्रिगेड द्वारा सुनियोजित ढंग से इसके इस्तेमाल के विरोध में था.

जिस ढंग से गौरी लंकेश की हत्या हुई उसका जाने-माने तर्क-विवेकवादी एवं विद्वान हस्तियों डा. नरेन्द्र डाभोलकर, का. गोविंद पानसरे और प्रो. एम.एम. कलबुर्गी की हत्याओं से घनिष्ठ रूप से सादृश्य मिलता है. इन पिछली घटनाओं में जांच-पड़ताल ने सनातन संस्था की संलिप्तता को चिन्हित किया है, जो गोवा से कामकाज का संचालन करने वाला एक हिंदू वर्चस्ववादी समूह है, और इन घटनाओं के अधिकांश संदिग्ध आरोपी अभी तक फरार हैं.

गौरी लंकेश के मामले में, जहां उनकी हत्या की खबर ने समूचे देश को सदमे में डाल दिया, वहीं संघ-भाजपा की सोशल मीडिया पर सक्रिय ट्राॅल आर्मी (पूर्वाग्रह से ग्रस्त दनादन पोस्ट करने वाले लोगों का समूह) ने सोशल मीडिया पर हत्या का कुत्सित जश्न मनाना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया में मनाये जा रहे इस जश्न की आलोचना करने पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद तक को इन तत्वों के कोप का भाजन बनना पड़ा. और अब भाजपा की कर्नाटक इकाई ने प्रख्यात इतिहासकार एवं लेखक रामचन्द्र गुहा को इस बात पर कानूनी नोटिस भेजा है कि उन्होंने गौरी की हत्या में संघ ब्रिगेड की संभावित संलिप्तता का उल्लेख क्यों किया! वहीं कर्नाटक के भाजपा विधायक जीवराज ने कहा है कि अगर गौरी आरएसएस के खिलाफ इतना बढ़चढ़ कर नहीं बोलतीं तो वे आज जरूर जीवित होतीं!

गौरी इस खतरे के बारे में पूर्णतः सजग थीं. धारवाड़ से भाजपा सांसद प्रह्लाद जोशी और उनके निजी सचिव उमेश दुशी ने गौरी की पत्रिका में 2008 में छपी कुछेक खबरों के सम्बंध में गौरी पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था और नवम्बर 2016 में उत्तर कर्नाटक में स्थित हुबली जिले के जुडीशियल मेजिस्ट्रेट ने उनको सजा भी सुनाई थी. उन्होंने इस सजा के खिलाफ उच्चतर न्यायालयों में अपील भी दायर कर रखी थी. भाजपा ने इस मुकदमे का इस्तेमाल करके उनको चुप कराने की कोशिश की थी, और यहां तक कि इस मिसाल का इस्तेमाल देश भर के पत्रकारों को धमकाने के लिये किया था. गौरी ने बिल्कुल रुके बगैर अपना काम जारी रखा. वे जानती थीं कि कलबुर्गी की हत्या उनके लिये भी एक संदेश थी. नवम्बर 2016 में एक वेबसाइट ‘न्यूजलांड्री’ में वक्तव्य रखते हुए उन्होंने कहा था कि ‘आज कर्नाटक में हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें हिंदुत्व ब्रिगेड अपनी विचारधारा, अपनी राजनीतिक पार्टी का विरोध करने वालों की हत्याओं का स्वागत करता है (जैसा कि उसने डा. एम.एम. कलबुर्गी की हत्या के मामले में किया) और मौतों पर जश्न मनाता है (जैसा कि उन्होंने डा. यू.आर. अनंतमूर्ति की मृत्यु पर किया). मैं इन लोगों के बारे में इसलिये बता रही हूं क्योंकि मैं आप लोगों को यकीन दिला रही हूं कि वे किसी तरह से मेरा मुंह बंद करने को भी उतारू हैं.’

गौरी धार्मिक कट्टरपंथ और जातिगत उत्पीड़न की शक्तियों के खिलाफ लगातार लड़ाई चला रही थीं. उन्होंने बसवन्ना और अम्बेडकर की समतावादी प्रेरक दृष्टि को भावप्रवण रूप से बुलंद किया था और संघ परिवार द्वारा इन प्रतीकों को हथियाने तथा उनकी विरासत का विध्वंस करने के लिये रची गई साजिश का दृढ़तापूर्वक प्रतिरोध किया था. प्रोपफेसर कांचा इल्लैया ने गौरी को कर्नाटक की आधुनिक अक्कामहादेवी के रूप में चित्रित किया है - जो 12वीं सदी में वीरशैव भक्ति आंदोलन की कवयित्री थीं और अपनी ‘वचन’ कविताओं के लिये प्रसिद्ध थीं. अपनी बहुमुखी सक्रियता और निर्भीक पत्रकारिता के लिये सुपरिचित गौरी लंकेश एक ऐसी महान शहीद कहलाएंगी जिन्होंने स्वतंत्रता और लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये अपनी जान कुरबान कर दी है.

गौरी लंकेश की प्रेरणादायी विरासत को सलाम करते हुए हमें इस चीज की गारंटी करनी होगी कि उनकी शहादत संघ-भाजपा प्रतिष्ठान, जो उनकी हत्या का जश्न मना रहा है, की फासीवादी साजिशों और हमले पर निर्णायक रूप से चोट साबित हो. साम्प्रदायिक दंगों और हत्यारी भीड़ द्वारा हिंसा की तरह, अपने वैचारिक विरोधियों की हत्या करने की संस्कृति संघ परिवार का अभिन्न अंग रही है. इस मोड़ पर हमें याद रखना शिक्षाप्रद होगा कि कैसे स्वतंत्र भारत में संघ की यात्रा गांधी की हत्या के साथ शुरू हुई थी. उन दिनों देश के गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस और हिंदू महासभा को ऐसा माहौल पैदा करने के लिये सीधे जिम्मेवार ठहराया था जिसमें गांधी की हत्या की घृणित त्रासदी को अंजाम दिया जा सका. इसके परिणामस्वरूप आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया गया था.

उसके सत्तर साल बाद आज एक बार फिर वही मुद्दा महत्वपूर्ण हो उठा है: जिस माहौल में सिलसिलेवार ढंग से हत्याएं हो रही हैं उसका निदान करना और उसे बदलना. अगर राजनीतिक आबोहवा भिन्न होती तो आरएसएस और उसके विविध संगठनों-संस्थाओं को प्रतिबंधित कर दिया गया होता, मगर आज जब भाजपा सत्तारूढ़ है तो आरएसएस को सात नहीं, अनगिनत खून माफ हैं. गौरी लंकेश के हत्यारों को अदालत के कठघरे में खड़ा करना और उनको जिन्होंने शह दी है उनका मुकाबला करना आज कहीं बेहद कठिन है. इसके बावजूद यह उत्साहवर्धक संकेत है कि भारतीय जनता फासीवादी शक्तियों को शिकस्त देने और लोकतंत्र की रक्षा करने के लिये कृतसंकल्प हैं - देश भर में गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ हुए सशक्त प्रतिवादों से लेकर जेएनयू समेत उच्च शिक्षा संस्थानों के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा छेड़े गये युद्ध के खिलाफ हाल ही में जेएनयू के छात्रों द्वारा हासिल जबर्दस्त जनादेश. फासीवाद के खिलाफ इस प्रतिरोध को सुदृढ़ करना तथा उसे विस्तार देना ही आज वह सबसे महत्वपूर्ण कार्य है जो भारत की समस्त प्रगतिशील शक्तियों के सामने आ खड़ा हुआ है.