बिहार में स्कीम कर्मियों का ऐक्टू के नेतृत्व में निरंतर संघर्ष

विद्यालय रसोईया

10 अप्रैल को चम्पारन सत्याग्रह शताब्दी समापन समारोह में शामिल होने आ रहे प्रधानमंत्री को अपनी मांगों से सम्बंधित ज्ञापन सौंपने के लिए ऐक्टू से संबद्ध ‘‘बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ’’ के आहृान पर हजारों की तादाद में, पुलिस प्रशासनिक आतंक को धता बताते हुए, विद्यालय रसोईया (मिड-डे मील योजना के तहत नियोजित कर्मी) मोतीहारी की सड़कों पर उतर आये. विदित हो कि रसोईया संघ ने अपने आंदोलनों के माध्यम से चम्पारन सत्याग्रह शताब्दी वर्ष का समापन किया.

स्थायी प्रकृति के सरकारी कार्यों के लिए ठेका-मानदेय की नीति के आधार पर अस्थायी बहालियां की जा रही हैं. बेरोजगार नौजवानों, महिलाओं के श्रम की भयंकर लूट मची हुई है. रोजगार भी अनिश्चित है. इसलिए चारों ओर नौजवानों एवं महिलाओं के अंदर सरकार के प्रति भरी गुस्सा फैला हुआ है. लेकिन राज्य की नीतीश और केंद्र की मोदी सरकार इसका तार्किक समाधान निकालने के बजाए दामन का सहारा ले रही है.

इसीलिए 8 अप्रैल को बड़हरवा-लाखनसेन (ढाका) गांधी स्मारक जहाँ गांधी जी ने अपने चम्पारन प्रवास के दौरान बुनियादी विद्यालय की स्थापना की थी से शुरू होकर मोतीहारी पहुंचने वाली सत्याग्रह पदयात्रा को भी बाधित करने के लिए स्मारक पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत करने पहुंचे रसोईया संघ के जिला सचिव दिनेश कुशवाहा को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. उस समय स्थानीय भाजपा समर्थक मुखिया और अन्य भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस की मौजूदगी में झगड़ा झंझट करने का प्रयास किया गया. उन्हें तीन दिनों तक चिरैया से पकड़ीदयाल थाना तक घुमाते रहा गया. 10 अप्रैल को मोतीहारी से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के जाने के बाद ही 5 बजे शाम में बेल देकर उन्हें रिहा किया गया.

जो हो, लेकिन सत्याग्रह पदयात्रा वहीं से निकली और पदयात्रियों ने ढाका पहुँच कर अन्य नेताओं के नेतृत्व में थाने का घेराव कर दिया और वहीं पर रोड जाम कर गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किया. तत्पश्चात, सभी रसोइया पदयात्रा को आगे बढ़ाते हुए पकड़ीदयाल की तरफ कूच कर गए और रात में वहीं पर मध्य विद्यालय में डटे रहे. पदयात्रियों के रात के खाने का इंतजाम पकड़ीदयाल अनुमंडल के महिला-पुरुष रसोइयों ने किया. रात्रि के करीब 11बजे जब सभी लोग खाना खाकर सोने जा रहे थे तब स्थानीय पुलिस प्रशासन ने भाजपा नेताओं के दबाव में स्कूल खाली करवाना शुरू कर दिया. लेकिन रसोइयों के साथ मोहल्ले के लोगों के कड़े प्रतिरोध के बाद वे पीछे हटने को बाध्य हो गए. सुबह होते होते फिर से टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई और पुलिस पहुँच गयी. बाद में पदयात्रा मोतीहारी शहर की तरफ बढ़ गयी जिसका नेतृत्व ऐक्टू के जिला संयोजक विष्णुदेव यादव, समेत संजीव कुमार, रसोइया संघ के जिला नेता शंभुशरण कुशवाह, छबिलाल महतो, कुमन्ति देवी, शाहाना खातून, शांति देवी, प्रमिला देवी, शारदा देवी आदि ने किया. करीब 15 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद यह सत्याग्रह मार्च 10 अप्रैल को ठीक 8 बजे मोतीहारी गांधी मैदान के लिए प्रस्थान कर गया.
कुछ की समय बाद पुलिस द्वारा पदयात्रियों को प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर आगे बढ़ने से रोक दिया गया और यह आश्वासन दिया गया कि मजिस्ट्रेट के साथ प्रतिनिधिमंडल को भेजकर प्रधानमंत्री से मिलवाया जायेगा. लेकिन जब पुलिस ने अपना यह आश्वासन नहीं लागू किया तो पदयात्री उग्र हो गए और पुलिस का घेरा तोड़ते हुए आगे बढ़ गए और छतौनी एनएच 42 चैक पर रोड जामकर धरने पर बैठ गए. वही रोड पर सभा शुरू हो गई और जब तक प्रधानमंत्री मोतीहारी में रहे तब तक नारेबाजी के बीच सभा चलती रही. बाद में मजिस्ट्रेट ज्ञापन लेकर गया, लेकिन प्रधानमंत्री प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिले. उन्होंने सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं और उनके द्वारा एकत्रित मानदेय पर कार्यरत स्वच्छग्रहियों को संबोधित किया. ये स्वच्छग्रही भी काफी नाराज थे जो अपने बकाया पैसे भुगतान के लिए नारेबाजी करते रहे जिसके चलते उनका भाषण आधे घंटे तक नहीं हो सका.

रसोइयों की स्थिति यह है कि उन्हें पूरा दिन काम करना पड़ता है और उसके एवज में मात्र 1250 रु. मासिक मानदेय मिलता है वह भी साल में सिर्फ 10 महीने. यदि रोज का हिसाब लगाया जाये तो मात्र 34 रु. रोज मिलता है. कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती जारी है. रसोइयों को तो न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिलती. जब रसोइयों ने अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर संघर्ष करना शुरू किया, तो अब इस योजना को एनजीओ के हवाले किया जा रहा हैं. बांका, भागलपुर, कटिहार, वैशाली, नालंदा, गया, शिवहर, जमुई, बेगूसराय, औरंगाबाद, रोहतास और कैमूर जिलों के नगरपालिका क्षेत्रों में 2016 से एनजीओ के जरिए काम कराया जा रहा है. जहां एनजीओ के जरिए काम कराया जाता है वहां रसोइयों को महज 600 रुपए मिलते हैं. 60 वर्ष का बहाना बनाकर उनकी छंटनी भी की जा रही है. कुछ बोलने पर निकाल देने की धमकी भी दी जाती है. समस्यायों से ध्यान हटाने के लिए राज्य में साम्प्रदायिक माहौल पैदा किया जा रहा है. तो ऐसे में मोदी-नितीश सरकारों का महिला सशक्तिकरण का नारा क्रूर मजाक बन जाता है. सत्याग्रह आंदोलन में शामिल रसोइयों ने संघर्ष के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद की और आने वाले समय में अपने संघर्ष को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लिया.

तत्पश्चात्, 15 अप्रैल को जमुई में कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 300 महिलाओं ने भाग लिया. कार्यशाला का उद्घाटन बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ की अध्यक्ष सरोज चैबे ने किया.

कार्यशाला ने विद्यालय रसोइयों के अधिकारों की लड़ाई तेज करने के लिए भाकपा-माले द्वारा आयोजित जन अधिकार पदयात्रा (23-30 अप्रैल 2018) और महासम्मेलन (1 मई 2018 गांधी मैदान, पटना) में भाग लेने और तत्पश्चात मई माह में प्रखण्ड मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने का आहृान किया.

कार्यक्रम का संचालन ऐक्टू नेता बासुदेव राय ने किया. अन्त में 15 सदस्यीय संयोजन समिति का गठन किया गया. अनिता देवी, ललिता देवी, मंजू देवी, हेमा देवी एवं सुनीता देवी का संयोजक मंडल बनाया गया.

लांग मार्च सत्याग्रह आंदोलन से पूर्व बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ ने 14 मार्च 2018 को अपनी लम्बित 22 सूत्री मांगों पर बिहार विधान सभा के सामने प्रदर्शन किया. प्रदर्शन गर्दनीबाग से निकलकर विधान सभा के समक्ष गया. प्रदर्शन का नेतृत्व संघ की अध्यक्ष सरोज चैबे, सचिव सोहिला गुप्ता, बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की राज्य अध्यक्ष शशि यादव, ऐक्टू के राज्य महासचिव आर.एन. ठाकुर, राज्य सचिव रणविजय कुमार, अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद, जिला पार्षद पूनम सिंह, नीलम देवी, रसोईया संघ की राज्य सहसचिव सोना देवी, पूर्वी चम्पारन की नेत्री कुमांती देवी समेत विभिन्न जिला स्तरीय नेताओं ने किया.

जुझारू प्रदर्शन के बाद सभा का आयोजन किया गया. प्रदर्शन स्थल पर तैनात मजिस्ट्रेट ने मुख्यमंत्री या शिक्षा सचिव की बजाए एमडीएम निदेशक से प्रतिनिधिमंडल की वार्ता कराने की पेशकश की, जिसे ठुकरा दिया गया. बाद में मुख्यमंत्री सचिवालय, शिक्षा सचिव एवं एमडीएम कार्यालय में 22 सूत्री मांगपत्र दिया गया.

साथ ही 8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दरभंगा में जिलाधिकारी के समक्ष प्रदर्शन किया गया.

आशा कर्मी  

9 से 11 नवंबर 2017 को दिल्ली में मजदूरों के 12-सूत्री मांगों पर लाखों मजदूरों द्वारा सम्पन्न देशव्यापी तीन दिवसीय महापड़ाव से केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त रूप से चरणबद्ध देशव्यापी आंदोलन चलाने के फैसले के तहत 17 जनवरी को स्कीम वर्करों की देशव्यापी हड़ताल का बिहार में व्यापक प्रभाव हुआ. बिहार में ऐक्टू से जुड़े स्कीम वर्करों की यूनियन ‘‘बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ’’ के आहृान पर राज्य के कुल 22 जिला के 150 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पूरी तरह कामकाज ठप रहा. अलग अलग जिलों के विभिन्न पीएचसी में आशाओं ने अपने संघ के बैनर तले अपने अपने अस्पताल के सामने धरना दिया. इन धरनों के माध्यम से आशाओं को सरकारी कर्मी घोषित करने, समान काम का समान वेतन लागू करने, स्कीम योजनाओं का निजीकरण बन्द करने, केंद्रीय स्कीमों के लिये बजट व सुविधा में वृद्धि करने आदि मांगों को बुलंद किया.

दूसरी तरफ, आशा कार्यकर्ता संघ ने राज्य की नीतीश सरकार द्वारा 21 जनवरी को आहूत मानव श्रृंखला का बहिष्कार किया जिसके चलते मानव श्रृंखला असफल हुई. साथ ही, ऐक्टू से जुड़े बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ, मध्यान भोजन योजना कर्मचारी एवं पदाधिकारी संघ, आदि संगठनों ने हड़ताल को सफल बनाने और मानव श्रृखंला का विरोध करने में जोरदार भूमिका निभायी.

बिहार के लगभग एक लाख आशा कर्मियों को मानदेय लागू नहीं है और ना ही इनके प्रोत्साहन राशि का भुगतान समय पर किया जाता है. राज्य की आशा बहनें लगातार प्रताड़ित की जाती हैं, इन्हें मान सम्मान भी हासिल नहीं है, न ही ढंग का पोशाक दिया जाता है और न ही बैठकों में आने जाने के लिए तय 140 रु. भत्ता का भुगतान किया जाता है. पिछले 10 से अधिक वर्षों से इनके प्रोत्साहन राशि में कोई उल्लेखनीय वृद्धि भी नहीं की गई है. 2015 जून में पोलियो कार्यक्रम के समय पूरे बिहार में आशाओं की सफल हड़ताल के बाद सरकार ने संघ से लिखित समझौता किया था जिसमें 11-सूत्री मांगें शामिल थीं. उस समझौते को भी पिछले 3 वर्ष से लागू नहीं किया जा रहा है. समझौते में ‘आशा मानदेय अध्ययन समिति’ का भी गठन किया गया था परंतु आज तक, इस समिति की रिपोर्ट आना तो दूर इसकी एक बैठक भी नहीं हुई है.

इन परिस्थितियों के मद्देनजर ’’बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ’’ ने 11-सूत्रीय मांगों को लागू करने सहित अन्य सभी मांगों को लेकर 9 मार्च 2018 को बिहार विधान सभा के चालू बजट सत्र में विधान सभा के समक्ष जोरदार प्रदर्शन का आयोजन किया. इसकी तैयारी को लेकर राज्यव्यापी अभियान चलाया गया. स्वास्थ्य केंद्रों पर पोस्टर लगाए गए, पर्चे बांटे गए और बैठकें हुईं. 9 मार्च के इस प्रदर्शन को लेकर आशाओं की बड़ी गोलबंदी हुई. गेट पब्लिक लाइब्रेरी से सजा धजा हजारों आशाओं का मार्च विधानसभा के लिए निकला. गर्दनीबाग थाने के नजदीक लगाये गए मजबूत बैरिकेड आशाओं के आक्रोश के समक्ष कमजोर साबित हुए. महिलाओं ने बैरिकेड में लगी जंजीरों को तोड़ दिया और अपने कब्जे में कर लिया. आंदोलनकारी इस बात पर अड़ी थीं कि मुख्यमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री और प्रधानसचिव को छोड़ किसी से वार्ता नहीं करेंगे. अंततः प्रशासन को झुकना पड़ा और प्रधानसचिव से वार्ता के लिए शिष्टमंडल को भेजा गया. इस मौके पर हुई सभा को कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद, आशा संघ के सम्मानित अध्यक्ष सुरेशचन्द्र प्रसाद, रसोईया संघ अध्यक्ष सरोज चैबे, ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार आदि ने संबोधित किया. 9 मार्च को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के साथ संघ के प्रतिनिधियों की हुई वार्ता के क्रम में अगली वार्ता के लिए तय तिथि 15 मार्च को प्रधान सचिव ने अपनी व्यस्तता के कारण 16 मार्च कर दिया था. तदनुसार 16 मार्च को संघ के 3 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की उनके साथ करीब 45 मिनट तक वार्ता हुई. वार्ता में संघ की ओर से अध्यक्ष शशि यादव, सुरेश चंद्र और रामबली प्रसाद थे. 2015 के आंदोलन के अवसर पर हुए लिखित समझौता के लंबित बिन्दुओं को तत्परतापूर्वक लागू करने के अनुरोध पर उन्होंने सहमति व्यक्त की. मांगपत्र में आशाओं के लिये मासिक मानदेय निर्धारित कर तत्काल भुगतान चालू करने; सेवाकाल में दुर्घटनाओं में आशाओं के असामयिक निधन की स्थिति में उनके आश्रित को अन्य स्वास्थ्य संविदा कर्मचारियों की तरह चार लाख रूपये का अनुग्रह अनुदान देने; आशाओं को सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के अधीन शामिल करने; आशाओं के प्रोत्साहन राशि के भुगतान में किये जाने वाले विलम्ब और मनमानी को रोकने; कैमूर (भभुआ) में एक जच्चा-बच्चा की हुई मृत्यु के बाद हुए हंगामा की आड़ लेकर 7 आशाओं की गयी सेवामुक्ति को निरस्त करने की मांगें शामिल थीं.