झारखंड में श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने मनाया राज्यव्यापी विरोध् दिवस

झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में राज्य की रघुवर सरकार द्वारा विपक्ष के विरोध के बावजूद बिना चर्चा कराये 20 जुलाई 2018 को तीन मजदूर विरोधी विधेयक पारित कर दिये गये, जिसके खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने 26 जुलाई को राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया और विधेयक की प्रतियां जलाईं. इस कार्यक्रम के तहत रांची में मार्च आयोजित की गयी जिसका नेतृत्व ऐक्टू की ओर से राज्य महासचिव शुभेंदु सेन ने किया. इस विरोध दिवस का आहृान चार केंद्रीय ट्रेड यूनियनों - ऐक्टू, सीटू, एटक और इंटक - द्वारा किया गया.  ट्रेड यूनियनों ने सरकार की इस कार्रवाई के खिलाफ आने वाले दिनों में एक बड़ा जन आंदोलन चलाने की घोषणा की.

राज्य सरकार द्वारा तीन श्रमिक विरोधी बिल पारित कराये गये हैं - औद्योगिक विवाद अधिनियम (झारखंड संशोधन) विधेयक 2018, ठेका मजदूर (विनियमन एवं उन्मूलन) (झारखंड संशोधन) विधेयक 2018 और झारखंड श्रम विधियां (संशोधन) प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम विधेयक 2018. इन संशोधनों के चलते 50 से कम श्रमिक वाले निजी संस्थानों/कारखानों में श्रम कानून लागू नहीं होंगे. छंटनी के शिकार मजदूरों को 3 माह के अंदर ही अपील करनी होगी तथा पीएफ व ईएसआई जैसी स्कीमें भी एच्छिक हो जायेंगी. रघुवर सरकार ने पिछले साल ही श्रम कानूनों के दायरे में आने वाले कारखानों में कार्यरत मजदूरों की संख्या को 10 से बढ़ाकर 20 कर दिया था और अब इसे 50 कर दिया गया है. इससे राज्य के अधिकतर छोटे उद्योग व कारखाने जहां लाखों श्रमिक कार्यरत हैं श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जायेंगे.

जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार ने तमाम श्रम कानूनों को मालिकों के पक्ष में दंतहीन बनाने की मुहिम छेड़ी हुई है वहीं उसने तमाम राज्य सरकारों को श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन लाने की खुली छूट दे दी है, और खासकर भाजपा शासित राज्य सरकारें इन संशोधनों को लाने में सबसे आगे खड़ी हैं.       
- सुखदेव प्रसाद