नियमितीकरण हेतु उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट बिहार के 8 लाख कर्मियों के साथ ठगी और धोखाधड़ी है

बिहार के सभी अनुबन्ध-मानदेय, प्रोत्साहन राशि व आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण हेतु श्री अशोक चौधरी की अध्यक्षता वाली गठित उच्चस्तरीय समिति द्वारा सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत 8 लाख में से मात्र 3 लाख कर्मियों को ही बिना समान वेतन सम्बन्धी अनुशंसा के नियमितीकरण की रिपोर्ट तैयार कर लेने व शीघ्र ही सरकार को यह रिपोर्ट सौंपने सम्बन्धी अखबारों में प्रकाशित खबर पर ‘बिहार राज्य अनुबन्ध-मानदेय नियोजित सेवाकर्मी संयुक्त मोर्चा’ ने 3 जून ’18 को जारी विज्ञप्ति में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सरकार पर अपनी ही सैद्धांतिक सहमति से पीछे हटने का आरोप लगाया. यह विज्ञप्ति मोर्चा के मुख्य संरक्षक रामबली प्रसाद व सम्मानित अध्यक्ष-सह-ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार ने जारी की.

इन्होंने कहा कि राज्य में नियोजित शिक्षकों के बाद लगभग 8 लाख कर्मी नियमितीकरण की प्रतीक्षा में हैं जबकि उच्च स्तरीय कमेटी ने प्रोत्साहन राशि, आउटसोर्स कर्मियों को अलग रखते हुए मात्र 3 लाख संविदा कर्मियों को ही नियमित करने की बात की है ,जो स्पष्ट तौर से बिहार के 8 लाख कर्मियों के साथ ठगी और धोखाधड़ी है. यही नहीं उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट वेतन निर्धारण वाले मामले में भी चुप है जबकि  “समान काम के बदले समान वेतन व सुविधाएं“ देने का स्पष्ट निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्तूबर ’16 को दिया है और क्लारा ऐक्ट 1970 का नियम 25 भी इस मामले में सभी सरकारों को समान काम के लिये समान वेतन देने का स्पष्ट प्रावधान देता है. इस तरह समान वेतन निर्धारण मामले में किसी तरह की कोई कानूनी बाधा या अड़चन नहीं है तब वेतन मामले को यह कमेटी पेचीदा क्यों बना रही है? इन्होंने कहा कि कहा कि मोर्चा के साथ शिष्टमंडल की वार्ता में श्री अशोक चौधरी ने स्वयं इस बात को कहा था कि बिहार की यह नियमितीकरण की रिपोर्ट देश भर में मिसाल बनेगी और ऐतिहासिक होगी. इन्होंने सवाल किया कि क्या श्री चौधरी ने 8 लाख कर्मियों से धोखाधड़ी रचने को ही तब ऐतिहासिक बताया था, इसका जवाब श्री अशोक चौधरी व नीतीश कुमार को देना होगा.

इन्होंने कहा कि 6 बार के एकतरफा अवधि विस्तार और 1131 दिनों बाद कमेटी द्वारा आधे अधूरे ढंग से नियमितीकरण की रिपोर्ट सरकार को सौंपने के पीछे 2019 के लोकसभा चुनाव की राजनीतिक चालबाजी छुपी है. 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी जमीन खिसकती देख भाजपा-नीतीश सरकार अपने ही सैद्धांतिक सहमति से पीछे हटते हुए नियमितीकरण सम्बन्धी यह आधी अधूरी व विसंगतिपूर्ण रिपोर्ट पेश करने में लगी है. इन्होंने कहा कि अनुबन्ध मानदेय मोर्चा सभी 8 लाख कर्मियों के नियमितीकरण के सवाल पर पुनः आंदोलन खड़ा करेगा. मोर्चा ने बिहार के सभी 8 लाख कर्मियों के नियमितीकरण के प्रश्न पर सरकार में शामिल भाजपा से अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुआ पूछा कि विपक्ष में रहकर सभी को नियमित करने की बात करने वाली भाजपा की बोलती अब क्यों बन्द है?

साथ ही, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ की अध्यक्ष सरोज चौबे और बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव ने भी एक बयान जारी कर कहा कि संविदा व मानदेय कर्मियों के बड़े आन्दोलन के बाद 2015 में उनकी समस्याओं को जानने व समाधान के लिए चौधरी कमेटी का गठन हुआ था जिसका कार्यकाल 3 महीने था. तीन साल में उसकी रिपोर्ट तो आ गई लेकिन यह लागू कब होगी इसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है. दूसरे, बड़ी संख्या में जो मानदेय कर्मी रसोइया, आंगनबाडी सेविका व सहायिका, इंसेंटिवकर्मी आशा कार्यकर्ता हैं, उनके बारे में कुछ नहीं कहा गया है. ये सारी वे महिलाएं हैं जिनके श्रम से अस्पताल चलते हैं और आंगनबाड़ी केंद्रों से लेकर विद्यालय में बच्चों के उपस्थिति की गारंटी होती है, अपने को ठगा महसूस कर रही हैं.  इन्होंने कहा कि नीतीश-भाजपा सरकार के इस संविदा-प्रोत्साहन कर्मी विरोधी निर्णय व आचरण के खिलाफ आगे आन्दोलन तेज किया जाएगा और 2019 में सरकार को सबक सिखाया जाएगा.