कुलदीप नैय्यर - लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सच्चे प्रहरी थे. इमरजेंसी का दौर हो या 59 संविधान संशोधन के जरिये पंजाब में पुलिस और सेना को बेलगाम छूट, कुलदीप नैय्यर हमेशा दमनकारी सत्ता के खिलाफ न सिर्फ लिखते रहे बल्कि सड़क पर भी आंदोलनकारी जनता के साथ खड़े दिखे. बिहार के बथानी टोला जनसंहार में पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए 22 अगस्त 1996 को दिल्ली में बनी एक कमेटी में मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता वीएम तारकुंडे और राजेन्द्र सच्चर के साथ कुलदीप नैय्यर भी थे. इंदिरा निरंकुशता विरोधी लड़ाई के दौर में आइपीएफ के साथ कई संयुक्त आंदोलनों में उनकी भागीदारी रही.

आज जब हमारा देश फासीवादी हमलों के सम्मुख खड़ा है ऐसे में फासीवाद के खिलाफ और लोकतंत्र की रक्षा के लिए ‘आल इंडिया पीपुल्स फोरम’ के गठन का न सिर्फ उन्होंने स्वागत किया था बल्कि जंतर-मंतर पर आयोजित उसकी रैली को भी संबोधित किया था. अभी हाल में 5 अगस्त 2018 को अलवर में हुई रक़बर की भीड़-हत्या पर उन्होंने लिखा कि आज देश में मुस्लिमों और दलितों पर भीड़ हत्या के हमले बढ़ गए हैं. ‘क्या भारत में फिर इमरजेंसी लग सकती है?’ बहस में हस्तक्षेप करते हुए उन्होंने हाल में लिखा कि आज प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खुद ही सरकार का भोंपू बन गया है और नरम हिंदुत्व का शिकार है. ऐसे में सत्ता पर बैठे लोगों को इमरजेंसी लगाने की जरूरत ही नहीं है.
वे भारत पाकिस्तान की दोस्ती के सच्चे पैरोकार थे. देश के विभाजन के समय उन्होंने और उनके परिवार ने विभाजन की जो पीड़ा भोगी, उसके बाद उन्होंने हमेशा साम्प्रदायिकता के खिलाफ मोर्चा लिया. उनके जाने से भारत की जनता ने लोकतंत्र का अपना एक सच्चा प्रहरी खो दिया है.