कोंडापल्ली कोटेश्वरम्मा: एक सदी का संघर्ष

19 सितंबर 2018 को का0 कोंडापल्ली कोटेश्वरम्मा का निधन हो गया - उन्होंने 5 अगस्त 2018 को अपने जीवन के सौ वर्ष पूरे किए थे. वे स्वतंत्रता सेनानी थीं, कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थीं, एक नारीवादी थीं, लेखिका और कवयित्री थीं.

विजयवाड़ा के निकट पमारू गांव के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 5 अगस्त 1918 को उनका जन्म हुआ था. का0 चंद्र राजेश्वर राव से प्रेरणा पाकर 18 वर्ष की उम्र में कोटेश्वरम्मा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी. उन्होंने पार्टी के नेता कोंडापल्ली सीतारमैया के साथ शादी कर ली. तेलंगाना सशस्त्र किसान आंदोलन के दौरान वे अपने बच्चों को छोड़कर दो वर्ष के लिए भूमिगत हो गई थीं.

37 वर्ष की उम्र में वे कोंडापल्ली सीतारमैया से अलग हो गईं. उस उम्र में उन्होंने अपने जीवन का पुनर्निमाण किया, अपनी पढ़ाई फिर शुरू की, मैट्रिक की परीक्षा पास की और काकीनाडा के एक सरकारी पॉलिटेकनिक में हास्टल वार्डन के बतौर काम करते हुए अपने बच्चों का लालन-पालन किया.

पढ़ाई करते वक्त वे नाटक लिखकर पैसे कमाती थीं और चरम आर्थिक दिक्कतों की इस घड़ी में भी वे पार्टी को 10 रुपये प्रति माह लेवी दिया करती थीं.

वे ‘प्रजा नाट्य मंडली’ में एक सक्रिय संगठक थीं और गीत, कविताएं तथा लघु कथाएं लिखा करती थीं. उनकी लिखी पुस्तकें हैं - अम्मा चेप्पिना आयडू कथालू (1972), अश्रु समीक्षनम (1991), संघमित्रा कथालू (1991) और उनकी आत्मकथा निर्जन वारथी (2012) जो उन्होंने 92 वर्ष की उम्र में लिखी थी और इसके लिए उन्हें ‘तेलुगु साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिला था.

कोटेश्वरम्मा का बेटा रिजनल इंजीनियरिंग कालेज, वारंगल के छात्र थे. वे एक सक्रिय क्रांतिकारी थे और पुलिस ने उनका अपहरण कर उनकी हत्या कर दी.

उनके सौवें जन्म दिन के अवसर पर परिवार और शुभचिंतकों द्वारा हवा महल, विशाखापत्तनम में आयोजित एक समारोह में उन्होंने बोलते हुए मौजूदा समय में अधिकारों पर हो रहे हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए नागरिक स्वतंत्रता आंदोलनों को और अधिक शक्तिशाली बनाने का आहृान किया था. ु