अखिल भारतीय मजदूर हड़ताल से पूरा देश थम गया - ऐक्टू हड़ताल को ऐतिहासिक बनाने के लिए मजदूर वर्ग को बधाई देता है

ऐक्टू समेत दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई अखिल भारतीय आम हड़ताल जिसका विभिन्न क्षेत्रों के कई अन्य कर्मचारी फेडरेशनों ने समर्थन किया था, ने 8-9 जनवरी 2019 को पूरे देश के आर्थिक और सामाजिक जीवन को पूरी तरह से रोक सा दिया.

ये हड़ताल लगातार गिरती हुई अर्थव्यवस्था के संकट के बीच मोदी सरकार के कुछ विशेष कॉरपोरेट घरानों को लूट की खुली छूट देने और मजदूरों के अधिकारों और आजीविका पर बढ़ते हमलों के खिलाफ थी. हड़ताल के प्रति मजदूरों में एक सहज प्रतिक्रिया देखने को मिली. हड़ताल के आहृान पर देश भर के विभिन्न उद्योगों और सेक्टरों, वित्तीय क्षेत्र समेत के 20 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी-मजदूरों, जिनमें राज्य और केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के अलावा असंगठित मजदूर भी शामिल थे, ने हड़ताल में भागीदारी करके इसे एक ऐतिहासिक हड़ताल बना दिया. जहां एक ओर औद्योगिक क्षेत्रों और वित्तीय संस्थाओं पर इस हड़ताल से भारी असर पड़ा, वहीं इसे किसानों, छात्रों, शिक्षकों, संस्कृतिकर्मियों और समाज के विविध हिस्सों का भरपूर सक्रिय समर्थन भी हासिल हुआ जिनकी भागीदारी ने इसे संपूर्ण भारत बंद बना दिया. विभिन्न विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने हड़ताल के समर्थन में काम बंद किया. जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों ने दो दिन की हड़ताल में हिस्सा लिया. साथ ही मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स’ ने भी इस हड़ताल के प्रति अपनी सक्रिय एकजुटता और समर्थन जाहिर किया.

करोड़ों मजदूर का राज्य और कम्पनी प्रशासन, सत्ताधारी पार्टियों और कई भाजपा शासित राज्यों, और तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल में गुंडों के दमनकारी कदमों को चुनौती देते हुए हड़ताल करना और सड़कों पर उतरना सत्ता के खिलाफ मजदूरों के संघर्ष का अभूतपूर्व उदाहरण था. ये हड़ताल असल में विनाशकारी मोदी शासन के बहिष्कार का बहुत ही साफ और जोरदार नारा था. हड़ताली मजदूरों की मांगों जैसे सबको रोजगार, न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा आदि की तरफ से जनता का ध्यान भटकाने की मोदी सरकार की आखिरी कोशिश, यानी ”आर्थिक रूप से कमजोर हिस्सों” के नाम पर 10 प्रतिशत आरक्षण कोटा की घोषणा ने असल में मोदी सरकार की हताशा और बेईमानी का ही पर्दाफाश किया है. ये हड़ताल भाजपा और आरएसएस की साम्प्रदायिक और फूट डालने वाली नीतियों के खिलाफ भी एक मजबूत इनकार है. भारत की जनता एकजुट होकर, सामाजिक न्याय, आर्थिक अधिकारों और सामाजिक कल्याण के लिए, अपने संवैधानिक अधिकारों, लोकतंत्र और कानून के शासन के प्रति मोदी सरकार के हमले के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार है.