बोकारो में स्टील प्रबंधन के खिलाफ प्रदर्शन

बोकारो में स्टील प्रबंधन के नगर प्रशासन के समक्ष सेंटर ऑफ स्टील वर्कर्स (सीएसडब्ल्यू-संबद्ध ऐक्टू) के नेतृत्व में 2 जुलाई 2019 को स्टील मजदूरो का प्रदर्शन आयोजित हुआ. बोकारो स्टील मजदूर व कर्मचारियों की यूनियन सीएसडब्ल्यू के नेता देवदीप सिंह दिवाकर, जेएन सिंह, केएन प्रसाद एवं जनवादी मजदूर मोर्चा के एसएन प्रसाद, सीपी सिंह, ब्रजेश कुमार आदि के नेतृत्व में संगठित-असंगठित स्टील मजदूरों ने इस प्रदर्शन के जरिए बोकारो स्टील प्रबंधन के अधिकारियों को मांगपत्र दिया और उन्हें मजदूरों की समस्याओं से अवगत कराया. 

स्टील मजदूरों की प्रमुख मांगों में स्टील मजदूरों का अविलंब वेतन पुनरीक्षण करने, स्टील उद्योग में काम करने वाले सभी ठेका मजदूरों को भी मौजूदा हालात के अनुरूप स्थायी मजदूरों के बराबर ग्रेड एस-1 का वेतन निर्धारण व भुगतान करने, अवकाशप्राप्त स्टील कर्मचारियों को स्टील अस्पताल (बीजीएच) से आवश्यक इलाज व दवा की सुविधा देने तथा लाइसेंसी आवास पर प्रति 11 माह के अंतराल पर दस प्रतिशत किराया बढ़ाने के फैसला को वापस लेने की मांगें शामिल थीं.

स्टील उद्योग में मौजूदा परिस्थिति में ठेका मजदूरों को उत्पादन कार्य मे लगाए बिना उत्पादन संभव नहीं है. बिडंबना यह है कि ठेका मजदूरो को न सिर्फ बहुत कम मजदूरी दी जाती है, बल्कि स्टील मजदूरों को प्राप्त होनेवाली दूसरी अन्य सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है. जब वे अधिक मजदूरी या सुविधाओं की मांग करते हैं तो ठेकेदार उनका गेटपास छीन लेता है और बकाया वेतन का भुगतान भी नहीं करता है. बकाया मजदूरी की मांग करनेवाले ठेका मजदूरों को महीनों ठेकेदार के पीछे-पीछे दौड़ना पड़ता है. ठेकेदार के ऐसे अमानवीय व्यवहार के पीछे स्टील प्रबधन की नीतिगत साजिश रहती है. इसी कारण ठेका मजदूरो की उपस्थिति की गारंटी करने के लिए उन्हें बायोमेट्रिक पद्धति के अंतर्गत लाए जाने की भी मांग की गई. 

लाइसेंस प्राप्त आवास के मामले में प्रति 11 माह के अंतराल पर 10 प्रतिशत किराया बढ़ाने का मामला भी सिर्फ बोकारो स्टील प्लांट में ही लागू किया गया है. सेल के किसी दूसरी इकाई में यह लागू नहीं है. बोकारो इस्पात नगरी की सड़क हो या मजदूर कर्मचारियों की कॉलोनी - स्ट्रीट रोड, आवास, पानी टंकी, स्ट्रीट लाईट आदि की दयनीय हालत के लिए भी स्टील प्रबंधन की लापरवाही ही जिम्मेवार है. मरम्मत व उचित देखरेख के अभाव में आये दिन आवास की छत गिरने की घटनाएं भी होती रहती हैं. 

इस तरह की सभी कुव्यवस्था और श्रमिकों को देय सुविधाओं को लंबित रखने या कटौती करने के मामले में, चाहे वह इनकैशमेन्ट हो, कटौती हो या पेंशन का मामला हो, स्टील प्रबंधन हमेशा ही घाटा होने की आड़ लेता है. पेंशन को मैनेज करने वाली स्टील प्रबन्धकीय व्यवस्था ने अभी तक पेंशन स्कीम की कोई रूपरेखा घोषित नहीं की है. इसको भी कंपनी को हुए लाभ-हानि से जोड़कर देखा जाता है.

उत्पादन कार्य मे ठेका मजदूरों को लगाने के पीछे भी यही बहाना है. जितने बड़े पैमाने पर ठेका मजदूरों को उत्पादन कार्य में लगाया जा रहा है, उसी अनुपात में मजदूरों की सभी तरह की सुविधाओं में कटौती भी की जा रही है. सबके पीछे एक ही तर्क है - घाटा! घाटे के सरकारीकरण के इसी तर्क के साथ मोदी सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने पर आमादा है.