कोयला मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल

कोयला उद्योग में मोदी सरकार द्वारा 100 प्रतिशत एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश), कमर्शियल माइनिंग को इजाजत देने और कोल इंडिया लि. (सीआईएल) के विखंडन के विरोध में और कुछ अन्य आनुषंगिक मांगों पर 24 सितंबर 2019 की एक दिवसीय मजदूर हड़ताल वास्तव में ऐतिहासिक थी. ऐक्टू से सम्बद्ध कोल माइन्स वर्कर्स यूनियन के साथ सीटू, एटक, इंटक और एचएमएस से सम्बद्ध कोयला मजदूर यूनियनों, यानी 5 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, की संयुक्त स्ट्राइक नोटिस पर 24 सितंबर 2019 को कोयला उद्योग की सभी सब्सिडियरियों में एक दिवसीय हड़ताल आहूत की गई थी. इसी दिन ऐक्टू की दिल्ली इकाई ने हड़ताली कोयला श्रमिकों की हड़ताल के समर्थन में जंतर मंतर, दिल्ली में प्रदर्शन किया. 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच ने कोयला श्रमिकों को इस अभूतपूर्व हड़ताल के लिये बधाई दी और सरकार से कोयला सेक्टर में लिये गए मजदूर-विरोधी, राष्ट्रीयकरण-विरोधी कदमों को वापस लेने की मांग की.

भाजपा से सम्बद्ध बीएमएस को मौजूदा समय में मजदूर आंदोलन में बाधक मानकर उसे इस हड़ताल में शामिल नहीं किया गया था. लेकिन कोयला मजदूरों के बीच अपनी साख बचाने की गरज और भ्रम फैलाने के मकसद से बीएमएस ने एक बेमतलब हड़ताल का आह्वान कर दिया था. उसकी स्ट्राइक नोटिस में एक दिन पहले से ही, यानी 23 से 27 सितंबर तक की 5-दिनी हड़ताल की घोषणा कर दी गई थी. लेकिन बीएमएस की इस घोषणा का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला. उसके आह्वान पर 23 सितंबर को मात्र 10-12 प्रतिशत कोयला मजदूर ड्यूटी पर नहीं आए, जबकि 24 सितंबर को 5 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर सीआईएल की सभी सब्सिडियरियों के कोयला मजदूरों के साथ आउटसोर्सिंग और संबंधित ठेका मजदूरों ने सुबह 4 बजे से ही मुकम्मल हड़ताल की तैयारी शुरू कर दी. 

24 सितंबर को सुबह 6 बजे से ही ईसीएल के मुगमा एरिया, बीसीसीएल के सभी एरिया और सीसीएल के बेरमो अरगड्डा आदि एरिया के कोलियरी और आउटसोर्सिंग के हाजिरी घरों में सन्नाटा दिख रहा था. मजदूर हाजिरी बनाने आये ही नहीं और कहीं-कहीं तो हाजिरी बाबू भी नहीं आए. सभी वाहन, डम्पर, आदि कोयला डिपो पर खड़े रह गए; रेलवे रैक, वैगन आदि पर और ट्रैक पर कोयला लोडिंग बंद हो गयी. और इस प्रकार कोयला प्रबंधन व आउटसोर्सिंग प्रबंधन को हैरानी में डालते हुए कोयला मजदूरों की यह ऐतिहासिक हड़ताल शुरू हो गई. कहीं-कहीं कोई परियोजना/आउटसोर्सिंग में किसी तरह से उत्पादन और ढुलाई का कुछ काम अगर शुरू भी हुआ तो हड़ताली संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने छोटी-छोटी टीम बनाकर संबंधित परियोजना/आउटसोर्सिंग में पहुंचकर काम बंद करवा दिया. ऐक्टू से सम्बद्ध सीएमडब्लूयू के सभी नेता-कार्यकर्ता अपने-अपने निर्धारित स्थान पर हड़ताल को संगठित करने में डटे रहे.

बीसीसीएल

बीसीसीएल में हड़ताल पूरी तरह से सफल रही. ब्लॉक-टू की तीन कोलियरियां, नदखुरकी डंप, जमुनियां डंप और आउटसोर्सिंग पूर्ण रूप से बन्द रहा. बन्द का नेतृत्व बलदेव वर्मा, हरेराम, मनोज कुमार आदि ने किया. एरिया-तीन के अन्तर्गत सलानपुर कोलियरी, वासुदेवपुर कोलियरी, कौशलपुर कोलियरी समेत एरिया-5 की कोलियरियों तथा डिस्पैच व रेलवे रैक में लोडिंग का काम पूर्णतः ठप रहा. एरिया-10 की जयरामपुर कोलियरी, नॉर्थ तिसरा, वर्कशॉप, साउथ तिसरा, बीसीसीएल का ईस्ट झरिया, लोदना, बस्ताकोला, कुसुंडा आदि परियोजनाओं में उत्पादन, डिस्पैच, बिजली-पानी आपूर्ति आदि सब कुछ बन्द रहा. नार्थ और साउथ तिसरा, जिनागोरा आदि कोयला परियोजनाओं में सिर्फ मजदूर ही नहीं, बल्कि हाजिरी बाबू भी गैरहाजिर रहे.

एटी देव प्रभा आउटसोर्सिंग कम्पनी के दो प्रोजेक्ट जीनागोरा में हड़ताल का नेतृत्व सीएमडब्लूयू के गोपाल बाउरी, विजय कालिंदी, अरविंद राय आदि ने किया. बस्ताकोला और बरेरा क्षेत्र के आउटसोर्सिंग में हड़ताली मोर्चा ने हड़ताल में मजदूरों को शामिल कराया. यहां उत्पादन, डिस्पैच, पानी-बिजली आदि सब बन्द रहे.

कतरास के सिजुआ, लोयाबाद, कनकनी, बांसजोड़ा, बासुदेवपुर आदि क्षेत्रों में शत प्रतिशत हड़ताल रही. वहीं विश्वकर्मा आउटसोर्सिंग परियोजना में हड़ताली मोर्चा के नेताओं ने कोयला अधिकारियों के खिलाफ जुझारू प्रतिवाद किया.

ईजे एरिया-11 के सुदामडीह कोल वाशरी, भौरा साऊथ कोलियरी, भौरा नॉर्थ कोलियरी, इन्कलाइंड सीओसीपी में बन्द का नेतृत्व सीएमडब्लूयू के गोवर्धन रजवार, मनोज कुमार, भीम पासवान, संतोष यादव आदि ने किया. सीभी एरिया-12, दहीबाड़ी, ओसीपी, एनएलओसीपी और बिट्टू खन्ना ट्रांसपोर्टिंग पूरी तरह से ठप रहे. यहां हड़ताल का नेतृत्व सीएमडब्लूयू के मनोरंजन मल्लिक, एलएन दास, नगेन महतो आदि ने किया. 

कोयला भवन (बीसीसीएल मुख्यालय): कोयला नगर में ऐक्टू के जिला सचिव कार्तिक प्रसाद हाड़ी, तथा सीएमडब्लूयू के नकुलदेव सिंह, शिव नन्दन रविदास, आदि के नेतृत्व में कार्यालय का काम पूर्णतः बन्द कराया गया. वहां से जूलूस निकाल कर कोयला भवन मुख्यालय के गेट पर जोरदार प्रदर्शन किया गया. 

कोयला भवन में 60 प्रतिशत कर्मचारी हड़ताल में रहे, जबकि पहले की हड़तालों में कोयला भवन के कर्मचारी शामिल नहीं होते थे. इस बार पहली बार कोयला भवन में भी हड़ताल का अच्छा असर देखा गया. प्राप्त खबरों के मुताबिक पूरे बीसीसीएल में ऐतिहासिक हड़ताल हुई है. 

ईसीएल का मुगमा एरिया

ईसीएल सब्सिडियरी के मुगमा एरिया और बीसीसीएल के सीभी एरिया-12 में हड़ताल पूर्ण रूप से सफल रही. मुगमा एरिया के चापापुर, बैजना, हरियाजाम, खुदिया, गोपीनाथपुर, सेन्ट्रल पुल, श्यामपुर ‘बी’, लखीमाता, कापासारा, राजपुरा, कुमारधुबी, बड़मुड़ी वर्कशॉप, सभी संबंधित आउटसोर्सिंग कंपनी और एरिया-12 की दहीबारी कोलियरी पूरी तरह बन्द रहे. एरिया ऑफिस में बन्दी 80 प्रतिशत थी. इस क्षेत्र में ऐक्टू और सीएमडब्लूयू के अध्यक्ष उपेन्द्र सिंह और कृष्णा सिंह के नेतृत्व में तमाम कार्यकर्ताओं ने हड़ताल और बन्द को पूर्ण सफल बनाया. 

ईसीएल के चित्रा कोलियरी, जो देवघर जिला में पड़ता है, में भी उत्पादन और लोडिंग कार्य पूर्णतः बन्द रहे. वहीं ईसीएल के राजमहल परियोजना में उत्पादन व डिस्पैच का काम पूरी तरह ठप करते हुए आउटसोर्सिंग और ठेका मजदूर समेत सभी कोयला मजदूर परियोजना के मुख्य चौराहा पर आकर जमे रहे.

सीसीएल 

सीसीएल के बेरमो कोयलांचल के तीनों एरिया, बेरमो ‘बी’ ऐड ‘के’ व ढोरी में सीएमडब्लूयू के बालेश्वर गोप तथा रघुवीर राय के नेतृत्व में और अरगड्डा एरिया में सीएमडब्लूयू के कार्यकारी अध्यक्ष बैजनाथ मिस्त्री के नेतृत्व में परियोजना और आउटसोर्सिंग में उत्पादन व डिस्पैच आदि सारे काम ठप रहे और हड़ताल पूरी तरह सफल रही. गिरीडीह में काम पूरी तरह बन्द रहा. सीएमपीडीआई और सीसीएल मुख्यालय भी पूर्णतः बन्द रहे.

गौरतलब है कि वर्ष 1972-73 में कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला उत्पादन 7.9 करोड़ टन से बढ़कर 60 करोड़ टन तक जा पहुंचा है. इसमें से 92 प्रतिशत कोयला उत्पादन भारत सरकार की कंपनी, यानी सीआईएल द्वारा किया जाता है, जो भारत की सबसे बड़ी कोयला कंपनी है और जिस कोयला कंपनी ने पिछले एक दशक में भारत सरकार को लाभांश और राजस्व के बतौर 1.2 लाख करोड़ रुपया दिया है! सरकार को इतना बड़ा मुनाफा देने वाली सरकारी कंपनी को बर्बाद करके यह मुनाफा निजी देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के हाथों सौंपने के मकसद से ही मोदी सरकार ने 100 प्रतिशत एफडीआई का फैसला लिया है. कोयला उद्योग में 100 प्रतिशत एफडीआई का मतलब सिर्फ लाखों स्थायी रोजगार का खत्म होना ही नहीं है, बल्कि इस कदम से सरकारी राजस्व का भी बड़ा नुकसान होगा.

सरकार ने इसी उद्देश्य से 2015 में ही ‘नीति आयोग’ की सिफारिश पर ‘प्रोविजन ऐक्ट, 2015’ के जरिये कोयला उद्योग में निजी कंपनियों को कोयला खनन और बिक्री की छूट दे दी थी. इसके साथ ही कोल इंडिया की एकीकृत कंपनी को विभाजित कर टुकड़ों में बांट देने का प्रस्ताव भी लाया गया था, ताकि निजीकरण का रास्ता साफ हो सके. ट्रेड यूनियनों के प्रबल दबाव के कारण यह लागू नहीं हो पाया था. अब विशाल बहुमत के साथ दुबारा सत्ता में आई मोदी सरकार तेज गति से निजीकरण की मुहिम में उतर पड़ी है. लिहाजा, 24 सितंबर की इस ऐतिहासिक सफल हड़ताल के जरिए कोयला श्रमिकों ने फासिस्ट मोदी सरकार की कॉरपोरेट-परस्त, लूट/निजीकरण परियोजना के खिलाफ एक दीर्घकालीन लड़ाई की शुरूआत कर दी है.

इस हड़ताल में 100 प्रतिशत एफडीआई को वापस लेने के अलावे दो प्रमुख मांगें और भी थीं - ईसीएल, बीसीसीएल आदि सभी सब्सिडियरियों को सीआईएल में विलय कर इसको एकीकृत राष्ट्रीय सरकारी कोयला कंपनी के रूप में गठित करना और सभी आउटसोर्सिंग व ठेका कोयला मजदूरों को नियमित कर सीआइएल के स्थायी कामगार के बतौर बहाल करना. इस हड़ताल में कोल इंडिया के 2.7 लाख स्थाई मजदूर और 2.25 लाख ठेका आउटसोर्सिंग समेत 5 लाख मजदूर शामिल हुए. 470 खदान सहित 600 संस्थान बन्द रहे.          

सुखदेव प्रसाद