बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं बरसी: न्याय के लिये लड़ाई जारी है

25 वर्ष पहले बाबरी मस्जिद के गिराये जाने से भारत की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर जो घाव लगे थे, वे आज भी ताजा हैं. और भाजपा सरकार और उसके एजेन्टों द्वारा उसी जगह पर, जहां कभी मस्जिद खड़ी थी, मंदिर के निर्माण के लिये जिस कदर जोरदार प्रयास चलाये जा रहे हैं, उससे उन घावों पर नमक ही छिड़का जा रहा है.

जस्टिस लिबरहान के जांच कमीशन के निष्कर्षों ने - हालांकि बड़ी देर से - उसी तथ्य की पुष्टि की जो पहले से ही बिल्कुल स्पष्ट था: यानी कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस की ‘बड़ी बारीकी से योजना बनाई गई थी’ और उसको अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे संघ और भाजपा नेताओं की पूर्ण सांठगांठ और सहयोगिता से अंजाम दिया गया था. राम मंदिर के नाम पर समूचे देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साम्प्रदायिक हिंसा का दौर चला था. बाबरी विध्वंस और साम्प्रदायिक आग भड़काने का इस्तेमाल भाजपा ने वोट बटोरने के लिये किया था और इसके फलस्वरूप उसने संसद में अपनी तादाद नाटकीय रूप से बढ़ा ली थी.

न सिर्फ बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया - बल्कि पिछले 25 वर्षों के दौरान इस मामले में न्याय मिलने की उम्मीदों का भी विनाश करने का लगातार प्रयास जारी रहा है. मई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि आडवाणी, जोशी और उमा भारती को बाबरी विध्वंस के मामले में षड्यंत्र रचने के आरोप के तहत मुकदमे का सामना करना होगा. लेकिन अभी वह मुकदमा पूरा होना बाकी ही पड़ा है, और उधर सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 में अयोध्या में भूमि सम्बंधी मालिकाना मुकदमे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा सुनाये गये फैसले पर अपील की सुनवाई शुरू कर दी है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने की बात कही गई है जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान को बराबर का एक-एक हिस्सा मिलेगा. अब भला सर्वोच्च न्यायालय बाबरी मस्जिद के हिंसात्मक विध्वंस के आपराधिक मामले का फैसला किये बिना ही, अयोध्या में भूमि विवाद के पहलू से दायर मुकदमे की सुनवाई करने की जल्दबाजी क्यों दिखा रहा है? बाबरी मस्जिद के विध्वंस की इजाजत देने के जरिये उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया अपना विधिबद्ध वचन भंग किया था. विध्वंस की आपराधिक कार्रवाई पर न्याय की तलाश करने की जगह अयोध्या के भूमि के मालिकाने के मुकदमे को प्राथमिकता देकर सर्वोच्च न्यायालय अपना ही कद छोटा कर रहा है.

बाबरी मस्जिद का विध्वंस - संवैधानिक दृष्टिकोण से - केवल सम्पत्ति के विवाद के इतिहास का प्रकरण नहीं है. इस विध्वंस ने धर्मनिरपेक्ष भारत के दिल पर ही चोट की थी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भीड़-गिरोहबंदी ने एक ऐतिहासिक मस्जिद को गिराकर उसकी जगह मंदिर बनाने की कोशिश के जरिये भारत को एक फासीवादी हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की थी. मस्जिद का विध्वंस मुसलमानों को भारतीय राष्ट्र के अंग के बतौर देखने के विचार को ही विनष्ट करने का प्रतीकी प्रयास था. उस भीड़-गिरोहबंदी द्वारा मस्जिद गिराये जाने के 25 वर्ष बाद आज उन्हीं फासीवादी शक्तियों की हिम्मत और बढ़ गई है, वे रोज-ब-रोज मुसलमानों के खिलाफ हत्यारे गिरोहों के हमलों को संगठित कर रहे हैं, क्योंकि वे निश्चिंत हैं कि उन्हें केन्द्र की मोदी सरकार और कई राज्यों की सरकारों की सरपरस्ती हासिल है. मुसलमानों पर अकसर ‘गौरक्षा’ के नाम पर हमले किए जा रहे हैं - और अकसर, केवल इस आधार पर कि वे टोपियां या मुस्लिम पहचान के अन्य प्रतीकों को पहने हुए हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘विकास’ लाने का दावा पेश करके सत्ता हथिया ली है - और अब वे भाजपा की केन्द्रीय साम्प्रदायिक और कॉरपोरेट-परस्त राजनीति पर पर्दा डालने के लिये ‘विकास’ के नारे का इस्तेमाल कर रहे हैं. आज मोदी के दुर्ग गुजरात तक में ‘विकास के गुजरात मॉडल’ के खोखले दावों का पर्दाफाश करने के लिये लोग आक्रोश में उठ खड़े हुए हैं. उत्तर प्रदेश के नगरीय चुनावों के परिणाम बताते हैं कि भाजपा के वोट प्रतिशत में चंद महीने पहले उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में प्राप्त 42 प्रतिशत से 10-12 प्रतिशत गिर गया है. ये परिणाम बताते हैं कि आदित्यनाथ सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा, किसानों का कल्याण और महिलाओं की सुरक्षा एवं उनके सम्मान की रक्षा समेत सभी मोर्चों पर अपनी चरम विफलता पर पर्दा डालने के लिये मंदिर मुद्दे को उछालने और यहां तक कि ताजमहल पर भी साम्प्रदायिक राजनीति का कार्ड खेलने की कोशिशें नाकाम रही हैं. इस स्थिति में मोदी गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को किसी तरह जिताने की निराशोन्मत्त कोशिश में खुलेआम साम्प्रदायिक प्रचार का सहारा ले रहे हैं.

संघी एजेंट और भाजपा के नेतागण अब जी-जान लगाकर यही कोशिश कर रहे हैं कि उस जमीन पर, जहां पहले बाबरी मस्जिद खड़ी थी, एक शानदार राम मंदिर बनाने में ‘सर्वसम्मति’ का मिथक पैदा कर दिया जाए. लेकिन अगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस किस्म के प्रहसन को साकार होने की इजाजत दे दी, तो यह उसके लिये बड़ी शर्म की बात होगी.

बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में न्याय हासिल करने के संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकता और न ही उसका परित्याग किया जा सकता है. उस विध्वंस को अंजाम देने वालों को अवश्य ही सजा मिलनी चाहिये - और आज उनके उत्तराधिकारियों को धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भारत का विध्वंस करके उसकी जगह ‘हिंदू राष्ट्र’ कहलाने वाले फासीवादी भीड़-गिरोहबंदी के शासन की स्थापना करने से अवश्य ही रोका जाना चाहिये.