ऐक्टू के बैनर तले कोलकाता में श्रमिक अधिकार रैली

ऐक्टू के बैनर तले 9 जनवरी 2018 को प. बंगाल की राजधानी कोलकाता में आयोजित ‘श्रमिक अधिकार रैली’ में हजारों की संख्या में मजदूरों ने भागीदारी की. वे बंद पड़ी जूट मिल और कपड़ा मिल के मजदूर थे. वे खाली बर्तन लिए अपने-अपने परिवार के सदस्यों के साथ रैली में शामिल हुए ताकि वे अपनी गरीबी और भूख को दिखा सकें. शीतलहर को धता बताते हुए दार्जीलिंग के चाय मजदूर भी आए थे और वे न्यूनतम मजदूरी की अपनी मांग बुलंद कर रहे थे जिसे देने की घोषणा करके भी ममता सरकार आनाकानी कर रही है. नोटबंदी के बाद सबसे प्रभावित होने वाले निर्माण मजदूर और जूट श्रमिक न्यूनतम मजदूरी की मांग को लेकर बड़ी तादाद में रैली में शामिल थे. तृणमूल कांग्रेस की धमकियों के बावजूद ‘आशा’ और मिड-डे मील कर्मी भी जोश-खरोश के साथ आई थीं. घरेलू कामगारिन भी पीछे नहीं थीं, वे भी ‘श्रमिक’ की मान्यता और न्यूनतम मजदूरी की मांग पर रैली में शरीक थीं - सरकार यह मांग मानने को तैयार नहीं है. 18,000 रुपये की मासिक न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और ट्रेड यूनियन अधिकार रैली के केंद्रीय मुद्दे थे. कॉरपोरेट व सांप्रदायिक फासीवादी मोदी सरकार तथा ममता सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ नारे रैली में गूंज रहे थे.

बंगाल राज्य पथ परिवहन निगम के कामगार भी रैली में आए थे - इनमें ठेका मजदूर भी थे, जो स्थायी काम में नियोजित थे लेकिन जिन्हें तमाम वैध लाभों और ट्रेड यूनियन अधिकारों से वंचित रखा गया है; और फिर नियमित मजदूर भी थे, जिन्हें कानूनी बोनस और सेवा-निवृत्ति लाभ नहीं दिया जा रहा है.

सरकार द्वारा घोषित मजदूरी नहीं पाने वाले बीड़ी मजदूर, रिक्शा चालक और असंगठित क्षेत्र के विभिन्न रोजगारों में लगे श्रमिकों के साथ-साथ बिजली और रेलवे जैसे संगठित क्षेत्रों के स्थायी व ठेका मजदूर भी रैली में हिस्सा ले रहे थे. विभिन्न क्षेत्रों से आई महिला कामगार भी रैली में मौजूद थीं. इस रैली में खेग्रामस के झंडे तले खेत मजदूर और अन्य ग्रामीण मजदूर भी शामिल थे. 5 जनवरी को ऐक्टू की 6-सदस्यीय टीम ने श्रम मंत्री से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा. मंत्री ने ऐक्टू की कुछ मांगों को पूरा करने का आश्वासन भी दिया.

लाल झंडों और यूनियन के बैनरों से सुसज्जित दो बड़ी रैलियां - एक हावड़ा से और दूसरी सियालदह से - निकल कर रानी रासमणि एवेन्यू (एसप्लेनेड) में सभा में तबदील हो गईं. सबसे पहले ‘स्वच्छ भारत’ के शहीद जफर खान, 6 दिसंबर को राजस्थान में भीड़ द्वारा पकड़कर जिंदा जला दिये जाने वाले अफराजुल, सांप्रदायिक हिंसा के शिकार बने लोगों और 6 जनवरी 2018 को अचानक दिवंगत हुए ऐक्टू कार्यकर्ता प्रभात कुमार आदि को मौन श्रद्धांजलि दी गई. इसके बाद सभा शुरू हुई जिसे ऐक्टू के राज्य महासचिव बासुदेव बोस, भाकपा-माले के राज्य सचिव पार्थ घोष, तराई संग्रामी चा श्रमिक यूनियन के नेता अभिजित मजुमदार, बंगाल चटकल मजदूर फोरम के राज्य नेता ओमप्रकाश राजभर, बंगाल निर्माण मजदूर यूनियन के सचिव किशोर सरकार, पश्चिम बंगाल राज्य ट्रांसपोर्ट यूनियन के सचिव बलराम मांझी, बंगाल आशा-कर्मी यूनियन की सचिव रूपाली बाघ और खेग्रामस के राज्य सचिव सजल अधिकारी ने संबोधित किया.

सभा में फैसला लिया गया कि प्रिकॉल के संघर्षरत श्रमिकों के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा जो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित होगा. सभा के जरिये श्रमिकों से आहृान किया गया कि वे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 17 जनवरी को आहूत स्कीम कर्मियों की राष्ट्रीय हड़ताल को शानदार ढंग से सफल बनाएं. ‘गण सांस्कृतिक परिषद’ की टीम ने जोशीले गीत गाकर पूरे माहौल को उत्साहपूर्ण बना दिया. ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष अतनु चक्रवर्ती ने सभा की अध्यक्षता की.