भारत में तेल की कीमतें कैसे निर्धारित होती हैं और वे आसमान क्यों छू रही हैं ?

भारत में पेट्रोल की कीमत अपने पिछले ऊंचे रिकार्ड को भी पार कर गई और 19 सितंबर को मुंबई में वह 88.12 रुपये प्रति लीटर हो गई. उस समय दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80.73 रुपये प्रति लीटर थी और डीजल 72.83 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. मुंबई में डीजल की कीमत 77.32 रुपये प्रति लीटर थी.

विपक्षी पार्टियां मिलकर ईंधन की कीमतों में इस उछाल का प्रतिवाद कर रही हैं और उन्होंने विगत 10 सितंबर को राष्ट्रव्यापी बंद भी आयोजित किया. किंतु, सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और अगले ही दिन फिर से पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ गईं. इस कीमत वृद्धि की खास बात यह है कि जो देश भारत से पेट्रोल खरीदते हैं, वहां पेट्रोल भारत की अपेक्षा कम कीमत पर बिक रहा है.

पड़ोसी देशों में पेट्रोल/डीजल की कीमतें

रुपया प्रति लीटर में (1 मई 2018)

देश    पेट्रोल     डीजल

नेपाल    66.6    54.7

श्रीलंका    49.6    40.3

बांग्लादेश    68.4    51.7

पाकिस्तान    50.6    57.0

भारत    74.6    65.9

भारत में इतनी ऊंची कीमतें क्यों हैं?

हालांकि 2013-14 में 107 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में आज 2018 में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल है, फिर भी आज पेट्रोल की कीमत सबसे ज्यादा है. इसके कारणों को लेकर काफी बहसें चल रही हैं, हालांकि मोदीमय मीडिया इस बहस से कन्नी काटने का ही प्रयास कर रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में उछाल आने से भारत में पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आ रही निरंतर गिरावट को भी इसका एक कारण माना जा रहा है. हमें इससे इनकार नहीं कि इन दोनों कारकों का पेट्रो-कीमतों पर असर पड़ता है, लेकिन अपने देश में इनकी इतनी ऊंची कीमतों का और पिछले चार वर्षों में इसमें निरंतर हो रही वृद्धि की असली वजह कुछ और ही है. इसे समझने के लिए आइए, हम देखते हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें निर्धारित कैसे होती हैं.

4 सितंबर 2018 को पेट्रोल की कीमत की गणना इस प्रकार हुई थी:

  1. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 79.93 डॉलर (यानि, 5700 रुपया) प्रति बैरल थी. एक बैरल में 159 लीटर होते हैं. इस प्रकार कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 35.89 रुपया प्रति लीटर हुई (इसमें अंतरराष्ट्रीय बाजार से अपने देश में तेल लाने का भाड़ा भी शामिल है).
  2. फिर अपने देश में तेल विपणन कंपनी द्वारा इसे परिशोधित (रिफाइंड) करने, उस कंपनी द्वारा लिए लिए गए शुल्क और तेल डीलरों को इसे पहुंचाने का खर्च - ये सब मिलाकर 3.45 रुपया प्रति लीटर का खर्च हुआ. अर्थात्, रिफाइनिंग के बाद पेट्रोल की बुनियादी कीमत 39.34 रुपया प्रति लीटर हुई.
  3.  केंद्र सरकार द्वारा लिया गया अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (तेल बेचने पर लिया गया टैक्स) और रोड टैक्स मिला कर 19.48 रुपया प्रति लीटर हुआ.

    अब, इस पर ‘वैट’ (वैल्यू एैडेड टैक्स, जो राज्य सरकारों के हिस्से में जाता है और यह अलग-अलग राज्य में भिन्न-भिन्न दर से वसूला जाता है) लगता है. इस दिन दिल्ली में यह 16.86 रुपया प्रति लीटर था (हालांकि इसकी अधिकतम सीमा 27 प्रतिशत तक थी). यानी, कुल मिलाकर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिया गया कर 36.34 रुपया प्रति लीटर हुआ. इस प्रकार, डीलर को पेट्रोल 75.68 रुपया प्रति लीटर मिला.
  4. डीलर (पेट्रोल पंप) को कमीशन 3.63 रुपया प्रति लीटर मिला.

इस प्रकार, उपभोक्ता को एक लीटर पेट्रोल के लिए 79.31 रुपया खर्च करना पड़ा.

यह देखा जा सकता है कि पेट्रोल की बुनियादी कीमत पर उसके लगभग 90 प्रतिशत के बराबर टैक्स लगाया जा रहा है, और यही पेट्रोल व डीजल की इतनी ऊंची कीमतों की असली वजह है. इतना टैक्स देश में किसी भी वस्तु या सेवा पर नहीं लगता है. देश में बड़े तामझाम के साथ आधी रात को संसद का विशेष सत्र बुलाकर ‘जीएसटी’ लगाने की घोषणा की गई, और इसके दायरे में तमाम वस्तुओं और सेवाओं को ले आया गया. लेकिन पेट्रोल, डीजल आदि ईंधन को जानबूझकर इसके बाहर रखा गया.       

भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पिछले चार वर्षों में निरंतर बढ़ती रही हैं, क्योंकि इस अवधि में सरकार ने ईंधन पर दर्जन बार उत्पाद शुल्क बढ़ाए हैं. नतीजतन, नरेंद्र मोदी-नीत एनडीए सरकार 2014 में मनमोहन सिंह-नीत यूपीए सरकार के मुकाबले पेट्रोल पर 10 रुपये प्रति लीटर अधिक का टैक्स प्राप्त कर रही है.

डीजल के लिए, यह सरकार अपनी पिछली सरकार की अपेक्षा लगभग 11 रुपये प्रति लीटर अधिक प्राप्त कर रही है. पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 105.49 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (इसमें वह समय भी शामिल है, जब पिछले अक्टूबर में गुजरात विधान सभा चुनाव के ठीक पहले शुल्क में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई थी), जबकि डीजल पर उत्पाद शुल्क में इस अवधि में 240 प्रतिशत का भारी इजाफा हुआ है. वर्तमान में डीजल पर 66.82 प्रतिशत टैक्स लग रहा है, जबकि यूपीए सरकार 2014 के वित्तीय वर्ष में 22.5 प्रतिशत का टैक्स ले रही थी.

मुद्रा विनिमय दरों और अन्य अंतरराष्ट्रीय कारणों के चलते कीमतों में थोड़ा बहुत फर्क के अलावा 2013-14 के पहले और बाद में ईंधन की कीमतों में इस भारी फर्क की वजह सरकार द्वारा लादी गई उत्पाद शुल्क की बढ़ी हुई दर है.

अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया गया होता तो इनकी कीमतें काफी कम हो गई होतीं. जीएसटी के उच्चतम स्लैब, यानी 28 प्रतिशत के स्लैब, में भी रखने पर पेट्रोल की कीमत 48.59 रुपये प्रति लीटर होती और डीजल 50.51 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकता. जाहिर है, रसोई गैस की कीमतें भी इसी तरह से प्रभावित हो रही हैं.

केंद्र सरकार अड़ी हुई है कि है कि वह पेट्रोल-डीजल समेत किसी भी ईंधन पर उत्पाद शुल्क कम नहीं करेगी. अधिकांश प्रमुख राज्यों में भाजपा और उसके गठबंधन की सरकार है. वे भी उत्पाद शुल्क कम नहीं होने देंगे, क्योंकि उत्पाद शुल्क कम होने से ‘वैट’ भी कम हो जाएगा. भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद का दावा है कि इस उत्पाद शुल्क से गरीबों को रसोई गैस दी गयी है! कोई उनसे पूछे कि रसोई गैस की कीमतों में इतनी वृद्धि (लगभग 900 रु. प्रति 14.2 किग्रा. का सिलेंडर) होने के बाद कितने गरीब परिवार अब एलपीजी खरीद पाएंगे? दरअसल, कॉरपोरेट घरानों को हर साल लाखों करोड़ रुपये की टैक्स छूट और हजारों करोड़ रुपये के घोटालों के चलते खाली होते सरकारी खजाने को भरने के लिए मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल के उत्पाद शुल्क में कोई कमी नहीं करना चाहती है. इसीलिए, देश के अवाम को पेट्रोल और डीजल समेत तमाम ईंधन को जीएसटी के दायरे में लाने की आवाज उठाने के साथ-साथ अपनी मातृभूमि को इन भगवा लुटेरे गिरोह से मुक्त करने का भी संकल्प लेना होगा. 

   प्रदीप झा