तमिलनाडु में ऐक्टू नेताओं का अनिश्चितकालीन अनशन

14 मई 2008 को ‘औद्योगिक रोजगार स्थायी आदेश अधिनियम’ में संशोधन कर इसे तमिलनाडु विधान सभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था. ‘सुमंगली योजना’, जहां प्रशिक्षुओं द्वारा ही 100 प्रतिशत उत्पादन किया जाता है, के खिलाफ उठी आवाजों के जवाब में सरकार ने यह कदम उठाया था. इस अधिनियम की धारा 10 ‘ए’ में प्रशिक्षु, बदली, अस्थायी और आकस्मिक मजदूरों के नियोजन और पुनर्नियोजन के प्रावधान हैं; जबकि धारा 10 ‘बी’ में किसी प्रतिष्ठान में स्थायी व अ-स्थायी श्रमिकों के प्रतिशत-निर्धारण की बात निहित है. बहरहाल, इस पर राष्ट्रपति की सहमति काफी देर से मिली - तर्क यह था कि इस संशोधन से निवेश पर बुरा असर पड़ेगा. ऐक्टू इस पूरी प्रक्रिया में लगातार हस्तक्षेप करता रहा. ऐक्टू ने कहा कि महाराष्ट्र में यह संशोधन 1976 से ही लागू है और इसके बावजूद उस एक नंबर के औद्योगिक राज्य में निवेश पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा है.

जुलाई 2016 में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन महीने के अंदर इस संशोधन को लागू करने के लिए नियमावली बनाए. तदनुसार, अक्टूबर माह में सरकार ने ऐक्टू समेत सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ एक बैठक बुलाई.

श्रम सचिव इन संशोधनों से सहमत थीं और उन्होंने अनुशंसा करने का आश्वासन दिया. लेकिन नवंबर 2016 में इसी अधिकारी ने कह दिया कि इस संशोधन की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार श्रम कानूनों के विलय की योजना बना रही है. 2018 के सितंबर माह में इन संशोधनों को लागू करवाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई. वहां भी सरकार ने यही जवाब दिया और कहा कि कोर्ट ने यह मामला बंद कर दिया. इस प्रकार श्रम कानूनों के विलय के उसी तर्क पर सरकार दो वर्षों से इसे लागू करने से इनकार करती आ रही है. यह भी गौरतलब है कि कोर्ट ने इस मामले को बंद नहीं किया है और कहा है कि पीड़ित पक्ष श्रमायुक्त के पास अपनी बात ले जा सकता है.

24 सितंबर को ऐक्टू के नेतागण श्रमायुक्त के पास गए थे और उन्होंने वहां यह मुद्दा उठाया. 1 अक्टूबर को कोर्ट ने एक बार फिर उक्त जनहित याचिका पर सरकार का जवाब मांगा. ऐक्टू के साथियों ने श्रम सचिव से पुनः मुलाकात की; सचिव ने कहा कि इस मुद्दे पर 24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के साथ एक बैठक होने वाली है.

ऐक्टू महाराष्ट्र की तर्ज पर यहां भी इन संशोधनों को लागू करने की मांग कर रहा है, क्योंकि इससे इस सूबे के लाखों-लाख अस्थायी श्रमिकों के हितों की रक्षा हो सकेगी. तमिलनाडु ही एकमात्र राज्य है जहां कपड़ा उद्योग में प्रशिक्षुओं के लिए न्यूनतम मजदूरी की घोषणा की गई है. लगातार विलंब को देखते हुए ऐक्टू के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. कुमारासामी और अन्य 7 साथी 22 अक्टूबर 2018 से कोयंबटूर में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए हैं. आने वाले दिनों में इस अनशन में और भी साथी शामिल हुए. सीपीआई-एम के वरिष्ठ नेता रामाकृष्णन ने अनशनकारियों से मुलाकात कर समर्थन दिया. ‘स्थायी आदेश अधिनियम’ के लिए जरूरी नियमावली बनाकर इसे लागू करवाने की मांग पर शुरू हुए इस अनशन के समर्थन में ऐक्टू ने राज्य भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए.

24 अक्टूबर को उप-मुख्यमंत्री के निजी सचिव ने आश्वासन दिया कि 25 अक्टूबर को उप-मुख्यमंत्री के साथ वार्ता कराई जायेगी. उन्होंने कहा कि हमारी मांगों पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है और कल इन मांगों पर चर्चा करने के लिये मंत्रियों की एक बैठक भी बुलाई गई है. उन्होंने भूख हड़ताल को समाप्त करने का आग्रह किया. इस आश्वासन के बाद भूख हड़ताल वापस ली गई.