बिहार में आशा कर्मियों के ऐतिहासिक आंदोलन की शानदार जीत

आखिरकार बिहार में आशा कर्मियों के ऐतिहासिक आंदोलन ने राज्य की नीतीश कुमार सरकार को झुका दिया. आशा कर्मी पहली दिसंबर 2018 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर उतर गई थी. यह आंदोलन ‘‘आशा संयुक्त संघर्ष मंच’’ के नेतृत्व में चल रहा था. सरकार ने पहली जनवरी 2019 से एक हज़ार रु. मासिक मानदेय लागू करने सहित सभी 12 सूत्री मांगों को मान लिया जिसकी घोषणा सरकार ने 7 जनवरी को की. सरकार की इस घोषणा के बावजूद आशा कर्मियों ने अगले ही दिन पूरी ताकत के साथ 8-9 जनवरी की देशव्यापी आम हड़ताल में शिरकत की और एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया.

अपनी इस शानदार जीत के उपलक्ष में आशा कर्मियों ने ‘बिहार सरकार से जीते हैं, केंद्र से लड़कर जीतेंगे!’ की ललकार के साथ 12 जनवरी को राजधानी पटना में विजय जुलूस निकाला और अपने आंदोलन को अगले चरण में ले जाने का संकल्प लिया.

राज्य सरकार द्वारा मानी गई मांगेंः

  • पहली जनवरी से राज्य की आशा कर्मियों व आशा फैसिलिटेटरों को एक हज़ार रु. मासिक मानदेय की अदायगी.
  • सभी आशाओं का सेवा अभिलेख संधारण करना.
  • सर्वे रजिस्टर तैयार करने के लिये प्रतिमाह दो हजार रु. की अदायगी.
  • योग्यताधारी आशाओं को एएनएम ट्रेर्निंग स्कूलों में प्रशिक्षण हेतु 10 प्रतिशत सीट आरक्षित करना व उम्र सीमा में छूट देना.
  • योग्यताधारी आशा फैसिलिटेटरों को बीसीएम के पद पर नियुक्ति का अवसर प्रदान करने हेतु नियमों में प्रावधान करना.
  • आशा कर्मियों के सभी बकाया प्रोत्साहन राशि का 31 मार्च तक भुगतान.
  • विभिन्न बीमा योजनाओं का लाभ प्रदान करना.
  • आशाओं द्वारा निबंधित गर्भवती महिलाओं के प्रसव उपरांत पीएचसी द्वारा आशाकर्मियों को प्रोत्साहन राशि का भुगतान करना (चाहे प्रसव किसी दूसरे अस्पताल में ही क्यों न हो).
  • आशा फैसिलिटेटरों को नियुक्ति प्रमाण पत्र प्रदान करना.
  • हड़ताल खत्म होने के साथ ही चैथे चरण का आशा प्रशिक्षण प्रारम्भ करना.
  • हिंसा जनित मुकदमों को छोड़कर हड़ताल के दौरान दर्ज सभी मुकदमों को वापस लेना.
  • आशा फैसिलिटेटरों के चयन में बरती जा रही अनियमितताओं को दूर करने हेतु नियम बनाना.
  • हड़ताल के दौरान ठंड व दुर्घटना में मृत आशाओं के परिजनों को 4 लाख अनुग्रह अनुदान राशि की अदायगी, और इसके अतिरिक्त विशेष अनुग्रह अनुदान देने पर विचार किया जायेगा.

उपरोक्त सभी निर्णय स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, विभाग के कार्यपालक निदेशक व राज्य स्वास्थ्य समिति के साथ हुई चार चक्र की वार्ता के बाद लिए गए. अधिकारियों ने विभिन्न आशा कर्मी संघों के प्रतिनिधिमंडल व नेताओं को निर्णयों पर तत्परतापूर्वक आदेश निर्गत करने का आश्वासन दिया. उसके बाद ही आशा संयुक्त संघर्ष मंच के नेताओं- बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष एवं ऐक्टू की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शशि यादव और संघ के मुख्य संरक्षक एवं ऐक्टू के राष्ट्रीय सचि रामबली प्रसाद, आशा संघर्ष समिति की महासाचिव मंजुला कुमारी व बिहार चिकित्सा संघ के महासचिव विश्वनाथ सिंह, बिहार राज्य आशा संघ के महासचिव कौशलेंद्र कुमार वर्मा व अध्यक्ष प्रमिला कुमारी, ऐक्टू के राज्य सचिव रणविजय कुमार ने विगत 7 जनवरी को संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर हड़ताल वापसी की घोषणा की.

साथ ही नेताओं ने विभागीय मंत्री मंगल पांडेय द्वारा संवाददाता सम्मेलन करके समझौते के मुताबिक लिये गए उपरोक्त निर्णयों को जारी करते वक्त ‘मासिक मानदेय’ के बदले ‘मासिक प्रोत्साहन राशि’ बताने को गलत और उकसावापूर्ण बताते हुए कठोर आपत्ति दर्ज करायी. इसके तत्काल बाद स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने आशा प्रतिनिधिमंडल को बुलाकर स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्णय ‘मासिक मानदेय’ का है इसलिये सरकारी आदेश भी इसी रूप में जारी होगा. ऐक्टू, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) आदि समेत देश के अन्य राज्यों के आशा कर्मी संघों ने भी बिहार के आशा कर्मियों की इस जीत पर खुशी व्यक्त करते हुए उनका गर्मजोशी भरा स्वागत किया है.

आशा आंदोलन पर एक नजर

बिहार में आशा कर्मियों ने पिछले साल नवंबर महीने में ‘‘आशा संयुक्त संघर्ष मंच’’ का गठन किया. इस मंच में राज्य के सभी तीन आशा संगठन- बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ, बिहार राज्य आशा संघर्ष समिति और बिहार राज्य आशा कर्मी संघ शामिल थे. इन संघों की नेताओं क्रमशः शशि यादव, मीरा सिन्हा और प्रमिला कुमारी ने 15 नवंबर 2018 को अपनी 12 सूत्री मांगों के साथ राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे तथा मुख्य सचिव और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को पत्र दिया और 1 दिसंबर से राज्यव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल की सूचना दी. सरकार ने इस मामले में घोर बेरुखी का प्रदर्शन किया.

1 दिसंबर से राज्य के तमाम स्वास्थ्य केन्द्रों पर आशाओं की हड़ताल शुरू हो गयी. आशा संघों के संयुक्त नेतृत्व में हड़ताल ने धीरे-धीरे जोर पकड़ लिया. लगभग 32 जिलों के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक इस हड़ताल की लहर जा पहुंची. 5 दिसंबर को घोषित पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान ठप हो चुका था. 8 दिसंबर को भाकपा-माले समेत राज्य के छह वाम दलों ने हड़ताल के समर्थन में संयुक्त बयान जारी किया और सरकार से जनहित में इस हड़ताल को समाप्त करवाने की पहल करने की मांग की.

दसवें दिन यानि 10 दिसंबर को आशा संघों ने राज्य के सभी सिविल सर्जन (सीएस) कार्यालयों का घेराव किया. यह कार्यक्रम काफी सफल रहा. राज्य के सभी 38 जिलों के सीएस कार्यालयों में काम ठप हो गया, ताले लटके रहे और अधिकारी फरार रहे. अगले दिन, 11 दिसंबर को पटना सहित राज्य के सभी 38 जिलों में जिलाधिकारी कार्यालयों पर आशा कर्मियों के रोषपूर्ण प्रदर्शन हुए.

अगली बारी थी महिला सशक्तीकरण करने का दिखावा करनेवाले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की. 13 वें दिन आशा संयुक्त संघर्ष मंच के बैनर तले राज्य के कोने-कोने से जुटी दसियों हजार आशा कर्मियों ने राजधानी पटना के चितकोहरा चौराहे से विशाल जुलूस निकाला और राजधानी पटना के धरनास्थल गर्दनीबाग में पहुंचकर डेरा डाल दिया. वहां दिन-रात सभा चलती रही. अगले दिन 14 दिसंबर को भी यह जारी रहा और आशाकर्मियों का एक जत्था मुख्यमंत्री आवास तक जा पहुंचा.

14 दिसंबर को मुख्यमंत्री घेराव से ही आशा संयुक्त संघर्ष मंच ने आगामी आंदोलनात्मक कार्यक्रमों की घोषणा कर दी. इसके अनुसार 16 दिसंबर को सभी पीएचसी पर आम सभा की गईं, 17 दिसंबर को पीएचसी पर जमा होकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे का पुतला दहन किया गया, 18 दिसंबर को सभी पीएचसी सहित सभी अस्पतालों में काम बंदी की गई, 21 दिसंबर को 11 बजे से 1 बजे तक दो घंटे के लिए पीएचसी के सामने या प्रखंडों की मुख्य सड़क को जाम किया गया और 27 दिसंबर को पूरे बिहार में एक घंटे के लिए ’रेल रोको’ आंदोलन किया गया. 18 दिसंबर को राज्य के 95 फीसदी पीएचसी व रेफरल अस्पतालों में कामकाज ठप रहा और काम बंद के दौरान जगह-जगह आशा कर्मियों ने अस्पताल प्रशासन को घुटने टेक देने पर मजबूर कर दिया. इसी तरह 21 दिसंबर को पूरे बिहार में लगभग 400 जगहों पर रोड जाम का कार्यक्रम संपन्न हुआ. 27 दिसंबर को आहूत रेल-चक्का जाम आंदोलन की सफलता के साथ ही बिहार की आशा कर्मियों का आंदोलन एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया. पटना सहित पूरे बिहार में सैकड़ों जगहों पर हज़ारों की संख्या में हड़ताली आशा कर्मियों ने रेल पटरियों पर उतर कर जिससे पूरे राज्य में रेल परिचालन पूरी तरह एक से दो घण्टे के लिये ठहर गया अपने आंदोलन को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया.

रेल-चक्का जाम आंदोलन के बाद राज्य के सभी जिला स्वास्थ्य समिति कार्यालयों  पर 29 दिसंबर को आशा कार्यकर्ताओं ने सपरिवार धरना-प्रदर्शन आयोजित किया, और 2 जनवरी 2019 से सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जत्थेवार क्रमिक अनशन शुरू किया गया.

अंततः, आशा कर्मियों का यह ऐतिहासिक आंदोलन एक शानदार जीत के साथ सफलतापूर्वक संपन्न और स्कीम कर्मियों के देश भर में चल रहे आंदोलन के लिये एक प्रेरणादायक मिसाल साबित हुआ. 