धनबाद जिला के ईसीएल मुगमा एरिया में अवैध माइनिंग में 23 जनवरी को घटी दुर्घटना-एक जांच रिर्पोट

धनबाद जिला के निरसा थाना क्षेत्र ईसीएल मुगमा एरिया के कापासारा आउटसोर्सिंग के पास अवैध माइनिंग में 23 जनवरी को दुर्घटना में करीब 40 लोगों की मौत हुई है. 23 जनवरी को सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर अचानक बड़े पैमाने पर चाल धसने के कारण सभी 40 मजदूर दब गए. दुर्घटना के बाद जिला प्रशासन सुबह 9 बजे के बाद पहुंचा. इसके बाद, ईसीएल प्रबंधन पहुंचा, और सिर्फ एक लाश को निकालकर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया जबकि तीन और मृत व्यक्तियों का नाम अखबारों में आया और उनके परिजनों ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया. स्थानीय लोग खुद से मलबे को हटा रहे थे और लोगों को निकाल रहे थे. ग्रामीणों का कहना है कि भारी मलबे और कोयले की चट्टानों के बीच अभी भी 36 लोगों की लाशें दबी हुईं थी. दुर्घटना के समय कुल 40 मजदूर ‘अवैध’ माइनिंग में खदान के अंदर कोयला काट रहे थे. इस प्रकार जब स्थानीय जनता  भारी मलबे और कोयला की चट्टानों को हटाकर दबे हुए मजदूरों को निकालने का प्रयास कर रहे थे, तो जिला प्रशासन ने जनता को सहयोग करने के बजाए, ईसीएल, कोयला माफिया, आउटसोर्सिंग कंपनी के साथ सांठगांठ कर जेसीबी मशीन लगवाकर पत्थरों से अवैध उत्खनन के मुहाने को बंद कर दिया.

पुलिस प्रशासन व ईसीएल प्रबंधन के इस रवैये की व्यापक रूप से निंदा हुई. मारे गए लोगों के परिजन कहते हैं कि पुलिस उन्हें धमका रही है कि अगर मुआवजे की मांग करोगे व लाशें मलबे से निकालने की बात करोगे तो कोयला चोरी के मामले में जेल भेज देंगे. अब इस भय से परिजन रो भी नहीं सकते हैं.

लोगों का कहना है कि रोजी-रोटी नहीं मिलने के कारण मजबूरी में कोयला माफियाओं के कहने पर लोग कोयला काटने जाते थे, और कोयला निकालकर बहुत कम दाम पर माफियाओं को देते थे.        

इस तरह प्रशासन और कोयला प्रबंधन ने मिलकर 36 कोयला मजदूरों को जिंदा दफना दिया. भुखमरी, बेरोजगारी के माहौल में यह कोयलांचल की राजधानी धनबाद जिला के असंगठित कोयला मजदूर हैं, जो जीविका के लिए जमीन खोदकर कोयला निकलते हैं और समाज के निचले तबके के लोगों की जरूरत को पूरा करते हैं. गौरतलब है कि आज से दस वर्ष पहले धनबाद जिला में इस तरह की दुर्घटना में मारे गए कोयला मजदूरों के लिए ऐक्टू और भाकपा-माले ने लड़कर न सिर्फ मुआवजा दिलाया, बल्कि इन्हें गलत रूप से कोयला चोर का सामाजिक दर्जा देने की खिलाफत कर, इन्हें कोयला मजदूर के रूप में राजनीतिक-सामाजिक मान्यता देने के लिए आंदोलन किया था, और मीडिया एवं कोयला प्रबंधन ने इन्हें कोयला मजदूर के रूप में मान्यता देने की बात को एक हद तक स्वीकार भी किया था. बाद के दिनों में धनबाद जिले के माफ़ियातंत्र ने इन तमाम अवैध खदानों पर कब्जा कर लिया और कोयला मजदूर कोयला माफिया का गुलाम बन गया. जबकि उस दौर में इस मामले में माफियातंत्र को रोकने के लिए “लेबर कोऑपरेटिव“ की अवधारणा को आन्दोलन के दौरान लाया गया था. मौजूदा भाजपा शासन में कॉरपोरेट मुनाफों और निहित स्वार्थों की सेवा के लिये 36 मजदूरों की लाशों को बाहर निकालने की जहमत नहीं उठायी गयी, जो भयानक रूप से शर्मनाक और दर्दनाक है, मानवाधिकारों का घोर उलंघन है. ये अब कोयलांचल की परिपाटी बनती जा रही है.  वर्ष 2017 में ईसीएल की राजमहल ओपन कास्ट परियोजना में इसी तर्ज पर ठीक ऐसी ही दुर्घटना में फंसे 35 मजदूरों को जिन्दा दफना दिया गया था.

भय और आतंक की इस परिपाटी को तोड़ने के लिये मजदूरों को सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा की लड़ाई को तेज और व्यापक करना होगा, यही समय की मांग है. फिलहाल, ऐक्टू से संबद्ध कोयला श्रमिकों की यूनियन सीएमडब्लूयू की ओर से दुर्घटना स्थल का दौरा किया गया और इस पूरी घटना को उजागर किया गया.

- सुखदेव प्रसाद