‘हमारे श्रमिकों को वापस लाओ’ - अगवा मजदूरों को वापस लाने के लिए विदेश मंत्रालय से मांग

हाल ही में अफगानिस्तान में रोजगार की तलाश में गये 7 भारतीय मजदूरों का 6 मई को अज्ञात बंदूकधारियों ने अपहरण कर लिया, जिनमें 4 मजदूर झारखंड से हैं, और इनमें से भी 3 गिरिडीह जिले के बगोदर के हैं, जबकि चैथा हजारीबाग जिले के टाटीझरिया का निवासी है. अन्य 3 मजदूरों में बिहार के मंटू सिंह और केरल के राजन कौशिक व मुरलीधरन हैं. इन मजदूरों के परिजनों का बुरा हाल है, मगर भाजपा सरकारें और उसके मंत्री-विधायक-सांसद संवेदनहीन बने हुए हैं और इन परिवारों के लिये कुछ भी नहीं कर रहे हैं. सरकारी स्तर पर कोई गंभीर कोशिश नजर नहीं आ रही. भारत सरकार, अफगानी सरकार या कंपनी - कोई भी अपहृत मजदूरों के परिजनों को किसी किस्म की सूचना नहीं दे रहा है.

भाकपा-माले और ऐक्टू ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सामने विगत 10 जून 2018 को प्रदर्शन कर सवाल उठाया कि केईसी कंपनी द्वारा नियोजित इन कर्मियों को सुरक्षित वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. इससे पहले, अगवा मजदूरों की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने हेतु 21 मई 2018 को रांची स्थित राजभवन पर धरना कार्यक्रम किया गया था और प्रधानमंत्री के झारखंड आगमन के मौके पर 25 मई को उन्हें ज्ञापन देने के लिये बगोदर से एक मोटरसाइकिल रैली का भी आयोजन किया गया.

विदेश मंत्रालय के सामने हुए प्रतिवाद प्रदर्शन को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य और बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने कहा, ‘हमलोग एक महीने से इन मजदूरों की सुरक्षित वापसी की मांग कर रहे हैं; मैं खुद झारखंड के मुख्यमंत्री से मिला और कई बार इस मंत्रालय को चिट्ठियां लिखी गईं; लेकिन अबतक कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की गई है. हम सब जानते हैं कि देश में बेरोजगारी चरम पर है, इसीलिए लोग दूसरे देशों में जाकर काम करने को मजबूर हैं. भारत सरकार को इन अगवा मजदूरों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी लेनी होगी. मोदी सरकार की कूटनीति की यही असली परीक्षा है.’ उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी नीति बनाने की सख्त जरूरत है जिससे भारत सरकार यहां से गए प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने को बाध्य हो.

झारखंड के ही हेमलाल महतो, जो इनमें से एक अगवा मजदूर के रिश्तेदार हैं, ने कहा कि ‘‘लापता मजदूरों के परिजनों को अफगानिस्तान में उनके साथ काम करने वाले लोगों ने इनके अगवा होने की खबर भेजी है. परिवार वालों को इसकी सूचना मिले एक महीना से भी ज्यादा समय बीत गया है और हमलोग सभी संबंधित अधिकारियों से मिल रहे हैं, लेकिन कोई कुछ करने को तैयार नहीं है.’’

आइसा की कंवलप्रीत ने कहा कि ‘विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने देश को इराक में लापता उन 39 भारतीयों के बारे में झूठ बताया, जिन्हें बाद में मार डाला गया. और अब, विदेश मंत्रालय अफगानिस्तान में अगवा मजदूरों की सुरक्षित वापसी के लिए भी कुछ नहीं कर रहा है. इससे तो अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए सरकार के कूटनीतिक प्रयासों का खोखलापन ही उजागर होता है.’

आइसा के दिल्ली सचिव नीरज कुमार ने कहा कि ‘आंदोलन और प्रतिवादों के बाद ही सरकार अगवा मजदूरों के परिजनों से मिलने को राजी हुई है.’

विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने आखिरकार 15 जून को सभी सात अगवा मजदूरों के परिवारजनों से मुलाकात की. लेकिन इस मुलाकात में भी उन्होंने मंत्रालय द्वारा मजदूरों के सुरक्षित वापस लौटने के लिए किए जाने वाले प्रयासों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. आश्वासनों के साथ ही उनकी चेतावनियां कि जन-प्रदर्शनों से इन मजदूरों की रिहाई के राजनयिक प्रयास खतरे में पड़ सकते हैं, खास विश्वसनीय नहीं थे, क्योंकि इससे पहले भी वो इराक में गुमशुदा भारतीयों के मामले में जनता से झूठ बोल चुकी हैं.

‘प्रवासी मजदूर संघ’ के अध्यक्ष पवन कुमार महतो ने बताया कि झारखंड के मजदूरों को आजीविका के लिए मजबूरी में प्रवास करना पड़ता है, और विदेशी जमीन में ये सबसे ज्यादा आसान शिकार होते हैं, जिन्हें ना तो भारत सरकार से और ना ही नियोक्ता कंपनियों से कोई सहयोग मिलता है. ”हमें आए दिन नियोक्ताओं द्वारा मजदूरों को बंधक बनाए जाने की, मजदूरों के काम की जगह पर दुर्घटना में जान गंवाने, और ऐसी ही शिकायतें मिलती रहती हैं. कंपनियां नियमित तौर पर उनके पासपोर्ट जब्त कर लेती हैं, ऐसे में वो प्रभावी तौर पर बंधुआ मजदूर बन जाते हैं”.

उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी और राज्य या देश में कोई प्रवासी मजदूर काम पर हुई दुर्घटना की वजह से मर जाता है तो कंपनियां बस इतना करती हैं कि उसकी लाश को वापस उसके घर भेज देती हैं. कुछ साल पहले मलेशिया में 11 लोगों के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए थे और उन्हें बंधक बना लिया गया था, और फिर जब किसी तरह वो मजदूर भागने में कामयाब हुए तो उन्हें जेल में डाल दिया गया क्योंकि कंपनी ने उनके खिलाफ कई फर्जी आरोप लगा दिये थे. भाकपा-माले के प्रयासों के चलते अंततः दो महीने बाद उन्हें सुरक्षित वापस लाया जा सका.

उन्होंने हमें यह भी बताया कि कैसे कई साल पहले एक और मामले में, मलेशिया में ही 13 मजदूरों को बंधक बनाया गया था. उस मौके पर भी भाकपा-माले ने ही दूतावास तक पहुंच बनाई और मजदूरों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की. उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले इबोला महामारी के अचानक फैलने से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में कई भारतीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. कंपनी ने सिर्फ 15 मृत मजदूरों के शवों को उनके घर भेज दिया और कोई मुआवजा नहीं दिया गया. जब उनमें से एक मजदूर के शव को पहुंचाने के लिए कंपनी का अधिकारी यहां आया तो भाकपा-माले ने उसका घेराव किया और तब जाकर कंपनी ने हर मजदूर के परिवार को 5.5 लाख रुपये का मुआवजा देना स्वीकार किया. इसी मामले में भाकपा-माले ने कांगो से 150 मजदूरों की सुरक्षित वापसी भी सुनिश्चित की. लगभग हर महीने, खाड़ी देशों से एक या दो मजदूरों के शव, चाहे वो बीमारी से मरे हों या दुर्घटना में, उनके घर भेज दिए जाते हैं. चाहे दुर्घटना हो या बीमारी, कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ने देना चाहिए; मजदूरों को बीमारियां ज्यादा होती हैं, क्योंकि वे बेहद गंदी जगहों में रहने और काम करने के लिये मजबूर होते हैं.

जुलाई 2016 में, झारखंड के एक पत्रकार ने एक दैनिक में लिखा था, ”आखिर विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूर एक पूर्व झारखंडी विधायक के कर्ज़दार क्यों हैं?” उन्होंने लिखा था कि झारखंड के लगभग 43 मजदूरों ने विदेश में काम करने के लिए प्रति मजदूर 50,000 हजार रुपये दिए थे. हवाई जहाज में चढ़ने से पहले हर किसी को मेडिकली फिट करार दिया गया. लेकिन तीन महीने की नौकरी के बाद उनकी कंपनियों ने उन्हें कहा कि वो अनफिट हैं. ये कंपनियां ना तो उन्हें तनख्वाह देना चाहती थीं और ना ही उन्हें वापस भारत भेजना चाहती थीं. आखिरकार उन्होंने पूर्व विधायक विनोद कुमार सिंह से संपर्क किया और तब कहीं जाकर वे सुरक्षित वापस आ सके.

लेख में लिखा गया, ”झारखंड के बगोदर निर्वाचन क्षेत्र के नेता, विनोद सिंह, साल 2009 से ना सिर्फ मलेशिया, कुवैत और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ही, बल्कि भारत के भी अन्य राज्यों से, सैकड़ों मजदूरों की शोषणकारी नौकरियों से बच कर घर आने में मदद कर चुके हैं. विनोद सिंह के अनथक, और कई बार उनके अकेले प्रयासों से, विदेशों में फंसे 500 से ज्यादा मजदूरों को बचाया जा सका है. इसी लेख में भाकपा-माले की पहलकदमी पर बनाए गए प्रवासी मजदूर संघ के बारे में भी बताया गया है.”
लेख में ये भी कहा गया है कि कॉमरेड विनोद से संपर्क करना इसलिए भी बहुत आसान है, क्योंकि उन्होंने कभी अपना मोबाइल नंबर नहीं बदला है, यह नंबर उनके निर्वाचन क्षेत्र में सबको पता है, और उनसे इस नंबर पर चौबीसों घंटे, कभी भी संपर्क किया जा सकता है. इसलिए अगर कंपनियां प्रवासी मजदूर के हर तरह के दस्तावेज छीन भी लेती हैं तो भी विनोद सिंह का नंबर हमेशा उनके दिमाग में रहता है.”