केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ बजट-पूर्व बैठक - केंद्रीय बजट 2019.20 पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के प्रस्ताव

15 जून 2019 को बजट-पूर्व बैठक वित्त मंत्रालय और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों के बीच संपन्न हुई. इस बार - और पहली बार - ऐसा हुआ कि वित्त मंत्रालय ने कुछ चुनिंदा यूनियनों को बैठक में आमंत्रित किया. लेकिन फिर, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के इस अधिकार के उल्लंघन के खिलाफ, आमंत्रित न की गई केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा विरोध और सामूहिक विरोध के बाद, वित्त मंत्रालय ने सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों को आमंत्रित किया. ऐक्टू की ओर से महासचिव राजीव डिमरी ने बैठक में हिस्सा लिया. 

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने ‘ईज ऑफ डूयिंग बिजनेस’ की आड़ में सरकार के मजदूर-विरोधी कदमों की सख्त भर्त्सना करते हुए कहा कि ये कदम मालिकों खासकर बड़े देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिये हैं.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने उनके द्वारा बारंबार उठाये जा रहे सवालों पर ठोस कदम उठाने के लिये सरकार से एक बार फिर अपील करते हुए आक्रोश जताया कि उनके द्वारा पिछली सरकार के समय से ही दिये गये किसी भी सुझाव को माना नहीं गया, और ये बजट-पूर्व बैठकें खानापूर्ति से अधिक साबित नहीं हो रही हैं. 

प्रस्ताव

  • न्यूनतम मजदूरीः न्यूनतम मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ते हुए इसे हर मजदूर को सुनिश्चित किया जाय और न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिये 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों और इस मसले में रैप्टाकॉस एंड ब्रेट मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को आधार बनाया जाय. यहां तक कि, 7वें केंद्रीय वेतन आयोग ने भी 1 जनवरी 2016 से मासिक न्यूनतम वेतन 18,000 रू. तय किया है जिसे सरकार ने मान लिया है. तब से 3 साल का समय गुजर चुका है और सभी बुनियादी वस्तुओं की कीमतें बढ़ चुकी हैं. न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की विधि तय करने के लिये श्रम मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने गलत ढंग से जीवन यापन के मूल्य और कैलोरी (ऊर्जा) की जरूरत के सर्वमान्य मापदंड को घटा कर एवं कम मान कर न्यूनतम मजदूरी को घटा दिया है जो हमें मान्य नहीं है. इसलिये, किसी भी हालत में मौजूदा दौर में राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी 20,000 रुपये प्रति माह से कम नहीं होनी चाहिये. आवश्यकता आधारित न्यूनतम वेतन को सामाजिक सुरक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाना चाहिये. 
  • रोजगार सृजनः पिछले कुछ वर्षों में रोजगार सृजन बुरी तरह से गिरा है. रोजगार सृजन के लिये बुनियादी ढांचे, सामाजिक क्षेत्र और कृषि में सार्वजनिक निवेश में भारी वृद्धि होनी चाहिये. केंद्रीय बजट में इसके लिये प्राथमिकता देते हुए जरूरी आवंटन किया जाना चाहिए. निर्यात के बजाये घरेलू मांग बढ़ाने पर जोर देना चाहिये. स्वास्थ्य, शिक्षा आदि सरकारी विभागों, रेल, सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों और स्वायत्त संस्थानों में तमाम रिक्त पदों पर नयी भर्ती की जाय. नये पदों के सृजन पर लगी रोक को हटाया जाय; पदों को अनिवार्य  तौर पर खत्म करने (सरेंडर) के चलन पर रोक लगाई जाय. कई सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों (बीएसएनएल, एमटीएनएल, आईटीआई आदि) को समान अवसरों से वंचित रख हजारों की तादाद में नौकरियों को खतरे में डाला जा रहा है. ‘‘फिक्स्ड टर्म इम्प्लॉयमेंट’’ के प्रावधान को समाप्त किया जाय और संबंधित अधिसूचना को वापस लिया जाय. 
  • कौशल विकासः कौशल विकास के नाम पर सरकार मालिकों को अप्रेंटिसों से काम लेने के लिये खूब प्रोत्साहन दे रही है. नियोक्ता, खासकर निजी क्षेत्र में, बहुराष्ट्रीय कंपनियों समेत, कौशल विकास का फायदा उठाते हुए नियमित उत्पादन कार्यवाहियों में साल दर साल अप्रेंटिसों को नियोजित कर रहे हैं, नियमित रोजगार में कटौती कर रहे हैं, और इस तरह वैधानिक सामाजिक सुरक्षा और मजदूरी के खर्चों से बेतहाशा बचत कर अपनी जेबें भर रहे हैं. इसलिये, वर्षों से श्रमिकों के बतौर नियमित उत्पादन प्रक्रिया में काम कर रहे अप्रेंटिसों को नियमित करते हुए उपरोक्त प्रथा को खत्म किया जाय. साथ ही, कौशल विकास एजेंसिंयों, जो कि अधिकतर निजी क्षेत्र में हैं और सरकारी सहायता प्राप्त कर रही हैं, की भूमिका की जांच होनी चाहिये. इन कौशल विकास एजेंसिंयो की कार्यप्रणाली पर श्वेत पत्र जारी किया जाना चाहिये. सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये हस्तक्षेप करना चाहिये कि इन एजेंसियों से प्रशिक्षण प्राप्त कर्मियों को नियमित रोजगार मिले.  
  • सामाजिक क्षेत्र को बजटीय आवंटन में बढ़ोतरीः सरकार को केंद्रीय बजट में सामाजिक क्षेत्र एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं पर बजटीय आवंटन को बढ़ाना चाहिए, खासकर बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने और जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिये सभी रिक्त पदों को भरने एवं नये रोजगार पैदा करने के संदर्भ में. जरूरी वित्तीय संसाधनों को प्रत्यक्ष आय कर एवं कॉरपोरेट कर, अमीरों पर कर बढ़ाने के जरिए मजबूत करना चाहिए, साथ ही जीएसटी को घटाया जाय, और इस तरह आय में बढ़ती असमानता को घटाया जाय.  
  • इरादतन टैक्स चोरी के खिलाफ कड़े कदमः सरकार बड़े व्यावसायिक और कॉरपोरेट घरानों द्वारा इरादतन की जा रही टैक्स और लोन चोरी, जिसके चलते राजकोष को भारी हानि हो रही है, पर रोक लगाने के लिये कारगर कदम उठाए. और अधिक, इरादतन टैक्स चोरी को आपराधिक कृत्य माना जाए, ऐसा करने वालों की सूची को सार्वजनिक किया जाए, और तत्काल लोन रिकवरी के लिये ‘‘फास्ट डेट् रिकवरी ट्रिब्यूनलस्’’ जैसे कदमों का लागू किया जाय.
  • 7वां वेतन आयोगः 7वें वेतन आयोग से संबंधित सरकारी कर्मचारियों की मांगों को हल किया जाय.
  • मूल्य वृद्धिः बुनियादी, खासकर खाने की वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं जिनके चलते मजदूरों और अन्य मेहनतकशों के लिये अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना भी असंभव हो गया है. वायदा कारोबार और जमाखोरी कीमतों की बढ़ोतरी के मुख्य कारक हैं. बुनियादी वस्तुओं के वायदा कारोबार पर सरकार प्रतिबंध लगाये; सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत और सार्वत्रिक बनाने तथा जमाखोरी की रोकथाम की गारंटी के सख्त कदम उठाये. पीडीएस के स्थान पर लाभार्थियों के खातों में सीधे नकद ट्रांस्फर की जारी प्रणाली पर रोक लगाई जाय.
  • सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के विनिवेश और रणनीतिक बिक्री पर रोकः सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के विनिवेश, बंदी और बिक्री संबंधित जारी सरकारी घोषणायें गहरी चिंता का सवाल है. सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को मजबूत एवं विस्तारित किया जाना चाहिये. पुनर्जीवित होने लायक बीमार सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को पुनर्जीवन के लिये जरूरी बजटीय सहायता दी जानी चाहिए. लाभप्रद सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों की रणनीतिक बिक्री के जो कदम सरकार उठा रही है, उन पर रोक लगनी चाहिए. ट्रांस्पोर्ट वेहिकल ऐक्ट, जो सरकार के मालिकाने वाली सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के निजीकरण का रास्ता खोलता है, को वापस लिया जाय. साथ ही इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लिया जाय. 
  • डंपिंग पर रोकः औद्योगिक और पूंजीगत मालों व वस्तुओं के बेलगाम आयात पर लगाम लगाई जानी चाहिये जिससे कि इनकी डंपिंग को नियंत्रित किया जा सके. घरेलू उद्योगों को संरक्षा और प्रोत्साहन दिया जाय. यह रोजगार में क्षति को रोकने में मदद देगा. 
  • मनरेगा को विस्तारित किया जायः मनरेगा पर आवंटन को बढ़ाते हुए तमाम ग्रामीण इलाकों को इसके दायरे में लाया जाय. मनरेगा के तहत कार्यरत मजदूरों की अब तक न दी गई मजदूरी की अदायगी को तत्काल सुनिश्चित किया जाय. मनरेगा के दायरे को शहरी इलाकों में विस्तारित करने के लिये इस कानून में संशोधन किया जाय. 43वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सर्वसम्मत सिफारिशों के आधार पर मनरेगा के दायरे को शहरी इलाकों में विस्तारित करने, न्यूनतम 200 दिनों का रोजगार व साथ ही सुनिश्चित वैधानिक मजदूरी मुहैया करायी जाय. 
  • ठेका और कैजुअल मजदूरः ठेका/कैजुअल मजदूरों को स्थाई प्रकृति के कामों में नियोजित न किया जाय. नियमित मजदूरों की तरह काम कर रहे ठेका/कैजुअल मजदूरों को समान काम के लिये समान वेतन एवं अन्य सुविधायें प्रदान की जायें, जैसा कि 2016 के सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश में दुहराया गया है.
  • एफडीआईः केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के निरंतर विरोध के बावजूद सरकार प्रतिरक्षा उत्पादन, रेलवे, वित्तीय क्षेत्र, खुदरा व्यापार, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एफडीआई के प्रवेश को इजाजत दे रही है. विशाल मात्रा में एनपीए हड़प चुके कॉरपोरेट घरानों को डिफेंस जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश करने की इजाजत दी जा रही है. हम पुनः यह मांग दुहराते हैं कि इन रणनीतिक क्षेत्रों में एफडीआई को इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.
  • डिफेंस सेक्टरः डिफेंस सेक्टर उत्पादन के निजीकरण और आउटसोर्सिंग पर रोक लगनी चाहिए. सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिरक्षा कारखानों द्वारा उत्पादित 272 वस्तुओं के आउटसोर्सिंग के आदेश को वापस लिया जाय. 
  • स्कीम कर्मीः आई.सी.डी.एस., एनएचएम (आशा), मिड-डे मील योजना, विद्या स्वयंसेवक, गेस्ट टीचर, शिक्षा मित्र और अन्य योजनाओं में नियोजित कर्मचारियों की विशाल संख्या को नियमित किया जाय. इन कर्मियों के नियमितीकरण होने तक, इन्हें 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुसार ‘कामगार’ का दर्जा प्रदान किया जाय, इन्हें न्यूनतम मजदूरी और पेंशन समेत सामाजिक सुरक्षा मुहैया की जाय. केंद द्वारा पोषित इन योजनाओं के किसी भी किस्म के निजीकरण पर रोक लगायी जाय और बजटीय आवंटन में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि की जाय. इस क्षेत्र में महिला कर्मियों की बहुसंख्या में मौजूदगी के मद्देनजर सरकार जेंडर (लैंगिक) बजटिंग लागू करे.
  • घरेलू कामगारः घरेलू कामगारों के लिये आइएलओ कन्वेंशन 189 को मंजूरी दी जाय और इनके लिये केंद्रीय कानून लाया जाय और सहायता प्रणाली तैयार की जाय.
  • असंगठित कामगारः सभी असंगठित कामगारों को - ठेका, कैजुअल, प्रवासी मजदूरों समेत - सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय कोष निर्मित किया जाय. स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका की  सुरक्षा और स्ट्रीट वेंडिंग का नियमन) कानून के तहत सभी राज्य सरकारें नियमावली तैयार करें और स्ट्रीट वेंडिंग को रोजगार के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के बतौर विकसित करने के लिये राशि आवंटित की जाय. निर्माण मजदूरों के लिये कल्याण बोर्ड, बीड़ी मजदूरों के लिये कल्याण बोर्ड, आदि में जमा सेस के उचित प्रबंधन की गारंटी के लिये इसकी जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय को दी जाय.
  • श्रम कानूनों में सुधारः मजदूरों के बुनियादी और यूनियन बनाने के अधिकारों में कटौती लाने वाले, और मालिकों को बेलगाम ‘हायर एंड फायर’ की छूट देने वाले श्रम कानून संशोधनों पर रोक लगाई जाय. वेज बिल पर कोड, जो अभी श्रम पर संसद की स्थाई समिति के समक्ष है और मसौदा आईडी बिल कोड केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा सर्वसम्मति से दिये गए सुझावों के आधार पर तय होने चाहिए. ट्रेड यूनियनों और मजदूरों, जो प्रमुख सहभागी हैं और सबसे अधिक प्रभावित हैं, की सहमति के बिना श्रम कानूनों में कोई संशोधन न किया जाए. 
  • ईपीएफः ईपीएफ योजना के तहत कर्मचारियों की सीमा को घटाकर 10 तक लाया जाए. ईपीएस योजना को कायम रखने और 6,000 रू. प्रति माह न्यूनतम पेंशन प्रदान करने के लिये सरकार एवं मालिकों के अंशदान को बढ़ाया जाय. ईपीएस-95 के तहत पेंशन में वृद्धि के लिये सरकार फौरी कदम के बतौर राशि के आवंटन में बढ़ोतरी करे. ईपीएफ राशि के स्टॉक/इक्विटी बाजार में निवेश पर रोक लगाई जाय. आइएल एवं एफएस (इंफ्रास्ट्रकचर लीजिंग एंड फाइनेन्सियल सर्विसिज - सरकारी क्षेत्र की कंपनी) एवं डीएचएफएल (हाउसिंग कंपनी) आदि में निवेश हेतु लगाये गये ईपीएफ फंड की वास्तविक स्थिति, होने वाले मुनाफे या नुकसान को जांच एवं कार्रवाई के लिये सार्वजनिक किया जाय. सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएस-95 के तहत पेंशन की उच्चतर राशि की अदायगी का निर्देश दिया है. इस स्कीम के तहत आने वाले सभी मजदूरों के लिये इस विकल्प को प्रदान किया जाए.  
  • पेंशनः सभी मजदूरों को, समेत उनके जो किसी भी पेंशन योजना के तहत नहीं हैं, 6,000 रू. प्रति माह पेंशन दी जाय और इसे डेफर्ड वेज (स्थगित वेतन) समझा जाय.
  • नयी पेंशन योजनाः नयी पेंशन योजना को वापस लिया जाय. केंद्र व राज्य सरकारों के 1.1.2004 से नये भर्ती कर्मचारियों को ‘‘निर्धारित लाभ प्रणाली’’ के तहत पुरानी पेंशन योजना के तहत ही शामिल किया जाय. 
  • ग्रेच्युटीः पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी ऐक्ट के तहत ग्रेच्युटी की गणना सेवा के हर पूरे हुए साल के 30 दिनों के वेतन (न कि 15 दिनों के वेतन) के आधार पर की जाय, हर किस्म की सीलिंग हटाई जाय.
  • आधारः सरकार को ‘‘आधार’’ के साथ जुड़ाव को अनिवार्य नहीं बनाना चाहिए.
  • बंद और बीमार कारखानेः यह सुनिश्चित किया जाय कि बंद कारखानों के मजदूरों को एक तय अवधि सीमा में उनके देय का भुगतान हो. बीआईएफआर को अचानक खत्म कर दिये जाने से इस समस्या को बिना निवारण के छोड़ दिया गया है. अतः, सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज् (स्पेशल प्रोवीजन) रिपील ऐक्ट 2013 के प्रावधानों को लागू करने के लिये नियम तुरंत तैयार किये जाएं.
  • आय कर छूटः वेतनभोगियों एवं पेंशनरों के लिए आय कर पर छूट की सीमा को सालाना 10 लाख रूपये तक बढ़ाया जाय. आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की सुविधाओं जैसे फ्रिंज बेनेफिट्स् और रेलवे में रनिंग एलाउंस को पूर्णतः आयकर मुक्त रखा जाय. 
  • राजनीतिक फंडिंगः हाल ही में सरकार ने कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को सहयोग में दी जाने वाली राशि पर से सीमा को हटा दिया है और साथ ही सहयोग प्राप्त करने वाली पार्टी का नाम बताने की आवश्यकता को भी हटा दिया है. सार्वजनिक जीवन में जो पारदर्शिता का वादा किया गया था, यह उससे उलट है. इसलिये जो पहले से नियम था उसे बरकरार रखा जाय. चुनावी बौंड की योजना को तत्काल खत्म किया जाय.
  • रेलवेः रेलवे के लिये जरूरी आवंटन किया जाय जिससे कि उसे आम आदमी खासकर गरीबों के लिये कारगर, सुगम और सस्ता बनाया जा सके. उत्पादन इकाइयों की क्षमताओं का पूरा उपयोग किया जाय, और अधिक विकसित एवं मजबूत किया जाय. रेलवे के निजीकरण को बंद किया जाय. देशभर में रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में देने के कदमों पर रोक लगाई जाय. रेलवे की कोई भी संपत्ति, लीज अथवा बिक्री, के माध्यम से निजी हाथों में ना दी जाय. तमाम रेलवे प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने के निर्णय को वापस लिया जाय. रेलवे में 100 प्रतिशत एफडीआई के निर्णय को वापस लिया जाय. रेलवे में लंबित योजनाओं - जैसे रेलवे लाइनों का विस्तार, मरम्मत और सिग्नल प्रणाली को बेहतर बनाना - इन्हें जल्द से जल्द से पूरा किया जाय. सुरक्षा प्रणाली और सुरक्षित रेल यात्रा को सुनिश्चित करने के लिये जरूरी आवंटन किया जाय. सभी रिक्त पदों को भरा जाय. रेलवे कर्मचारियों की महत्वपूर्ण लंबित मांगों जैसे कर-छूट के लिये रनिंग एलाउंस की सीलिंग को बढ़ाया जाना, हाउसिंग स्कीम आदि पर उचित ध्यान दिया जाय.