मजदूर-विरोधी वेज कोड बिल और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य कोड बिल संसद में लाने के खिलाफ-केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 2 अगस्त को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस का आह्वान

(मजदूर-विरोधी वेज कोड बिल और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य कोड बिल संसद में पेश करने के खिलाफ ऐक्टू समेत 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों द्वारा जारी बयान) 

सरकार ने संविधान में समवर्ती सूची के राज्य क्षेत्राधिकार की उपेक्षा करते हुए 5 जुलाई 2019 को बजट भाषण का इसे एक हिस्सा बनाने के एक असंवैधानिक तरीके के जरिये विभिन्न श्रम कानूनों के कोडीकरण का इरादा जाहिर कर दिया है.

अब 23 जुलाई को सरकार ने मजदूरी संहिता विधेयक (कोड ऑन वेजेस बिल), 2019 और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां संहिता विधेयक (ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन्स कोड बिल), 2019 को संसद में पेश कर दिया है. इन बिलों के प्रावधान मजदूरों के अधिकारों को कम करते हैं और हितों के खिलाफ हैं. इन दोनों बिलों की अंतर्वस्तु बिलों के प्रावधानों के संबंध में केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के विरोध एवं आपत्तियों को नजरअंदाज करती है.

सरकार के दावों के विपरीत, इन कानूनों की कार्यान्यवनता (एप्लीकेबिलिटी) के लिये मजदूरों की संख्या के स्तर को ऊंचा करने के माध्यम से, ये कोड वर्तमान कानूनों में मजदूरों को मिलने वाले अधिकारों से मजदूरों को बाहर करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ायेंगे.

15वें श्रम सम्मेलन ने मजदूरी के आकलन के संबंध में एक फार्मूले की सिफारिश की थी जिस पर सबकी सहमति थी और उसमें रेप्टाकॉस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निर्देशानुसार 25 प्रतिशत और जोड़ कर मजदूरी तय की जानी चाहिये. इसे 45वें ओर 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन ने बार-बार और निर्विरोध स्वीकार किया था. मजदूरी कोड ने इस सर्वसम्मत फार्मूले को खारिज कर दिया है. राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की विधि तय करने के लिये सरकार ने विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी जिसमें ट्रेड यूनियनों की भागीदारी को शामिल नहीं किया गया था. उस विशेषज्ञ समिति ने भी उन सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया. परंतु इसे भी आगे बढ़कर, 10 जुलाई 2019 को श्रम मंत्री ने एकतरफा तरीके से 4,628रू. मासिक राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर दी, जबकि सातवें वेतन आयोग ने 1 जनवरी 2016 से 18 हजार रू. न्यूनतम मजदूरी की सिफारिश की थी. वेतन कोड विधेयक में चार कानूनों को मिलाया गया है जिसमें मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1946, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 शामिल हैं.

पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां संहिता विधेयक वर्तमान 13 कानूनों का स्थान लेता है जिसमें राज्यों के अधिकार क्षेत्र वाले कानून भी शामिल हैं. ये कानून हैंः (1) कारखाना अधिनियम, 1948 (2) खान अधिनियम, 1952 (3) डॉक श्रमिक (सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण) अधिनियम , 1986 (4) भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 (5) बागान श्रम अधिनियम, 1951 (6) अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 (7) अंतर-राज्य प्रवासी कार्यकर्ता (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979 (8) कार्यकारी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा और विविध प्रावधान की शर्तें) अधिनियम, 1955 (9) कार्यकारी पत्रकार (दरों का निर्धारण मजदूरी का) अधिनियम, 1958 (10) मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961 (11) बिक्री संवर्धन कर्मचारी (सेवा की शर्त) अधिनियम, 1976 (12) बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966 (13) सिने श्रमिक और सिनेमा रंगमंच श्रमिक अधिनियम, 1981. यह कोड बिल उन प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जहां 10 या अधिक मजदूर काम करते हैं. इस प्रकार यह कानून 90 प्रतिशत श्रमशक्ति को कानून के दायरे से बाहर कर देता है जो असंगठित क्षेत्र/अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती है/आउटसोर्स और ठेके पर काम करती है/घर आधारित क्षेत्र में काम करती है.

इनमें से अधिकांश कानून सेल्स प्रमोशन इंप्लाईज, माईन्स, बीड़ी, निर्माण, वर्किंग जर्नलिस्ट और न्यूज पेपर जैसे विभिन्न सेक्टरों के मजदूरों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों को तय करने एवं उनका नियमन करने के लिये और उनमें संबंधित पेशों की विशिष्टताओं - जो एक दूसरे से काफी अलग हैं ओर उनके बीच बड़े पैमाने पर फर्क है - को ध्यान में रखकर कानून बनाये गये थे. इन तमाम कानूनों को निरस्त कर और केवल नियोक्ताओं को फायदा पहुंचाने वाले प्रावधानों को चुनिंदा तरीके से शामिल कर इन बिलों को बनाया गया है जिससे आम तौर पर मजदूरों के अधिकारों एवं उनकी सुरक्षा से संबंधित तमाम प्रावधानों को बड़े पैमाने पर कमजोर किया गया है या उनमें मजदूर विरोधी परिवर्तन किये गये हैं. अपने कॉरपोरेट आकाओं की सेवा करते हुए सरकार मजदूरों के अधिकारों को बड़े पैमाने पर कमजोर करना चाहती है. यहां तक कि स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोड में प्रावधानों को इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि उन्हें समुचित तौर पर लागू कराने के लिये मजदूर और उनकी यूनियनें अपनी राय और अधिकारों पर जोर नहीं दे सकती, या बुनियादी स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये नियोक्ताओं की जिम्मेदारी और जवाबदेही को भी वे साबित नहीं कर सकते, जबकि देशभर में और सभी सेक्टरों में कार्यस्थलों पर ऐसे उल्लंघन रोजमर्रा की बात हैं ओर उनके कारण लगभग रोजाना मजदूरों की मौत होती है और उनकी विकलांगता होती है. 

नये कानून के तहत काम के घंटे 8 से बढ़ा दिये गये हैं और इस मामले में राज्य सरकारों को खुली छूट दे दी गई है.

23 जुलाई 2019 को संसद में अपने नृशंस बहुमत से सरकार ने उस घृणित मोटर वाहन बिल को भी पारित कर दिया जिसका परिवहन कर्मियों के फेडरेशन 2014 से ही बड़ी-बड़ी हड़तालों के जरिये विरोध कर रहे हैं.

यह इसका कच्चा चिट्ठा है कि ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ की बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद भाजपा सरकार घोर अलोकतांत्रिक तरीके से काम कर रही है.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनें सरकार के इन मजदूर विरोधी कदमों का विरोध करती हैं और मजदूरों, उनकी यूनियनों एवं फेडरेशनों का आह्वान करती हैं कि वे अपनी संबद्धताओं का भेद भुलाकर सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध करने के लिये 2 अगस्त 2019 को राष्ट्रव्यापी स्तर पर एकताबद्ध होकर विरोध कार्रवाइयों मे उतरें और सरकार से मांग करें कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानदंडों की अवहेलना करते हुए बनाये जा रहे मजदूर विरोधी कानूनों को वापस लिया जाय.

सरकार त्रिपक्षीयता और सामान्य विधायी प्रक्रिया को दरकिनार कर मजदूर विरोधी श्रम कानूनों को पारित कराने पर तुली है. केंद्रीय ट्रेड यूनियनें सभी सांसदों का भी आह्वान करती हैं कि वे सरकार द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों का विरोध करें.