प. बंगाल में ऐक्टू के नेतृत्व में परिवहन मजदूरों ने जीत हासिल की

पश्चिम बंगाल स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के सैकड़ों परिवहन मजदूरों ने 26 सितम्बर 2019 को कॉरपोरेशन की वर्दी पहनकर कोलकाता की सड़कों पर मार्च किया. वे प्लेकार्ड और बैनरों से लैस थे और दुर्गा पूजा की पूर्व वेला में बोनस, समान काम के लिये समान वेतन, सालों भर जारी रहने वाले काम के लिये कैजुअल व ठेका मजदूरों की भर्ती पर पाबंदी लगाने, तमाम ठेका मजदूरों को नियमित करने और निजी ठेकेदारों को सब-कॅंट्रैक्ट पर काम देने की प्रथा बंद करने की मांगें बुलंद कर रहे थे.

पश्चिम बंगाल राज्य परिवहन निगम के ड्राइवरों और कंडक्टरों ने यह रैली ऑल वेस्ट बंगाल स्टेट ट्रान्सपोर्ट संग्रामी श्रमिक कर्मचारी यूनियन (संबद्ध ऐक्टू) के बैनर तले आयोजित की थी और परिवहन भवन तक मार्च करके परिवहन मंत्री को एक ज्ञापन सौंपा. इससे पहले मजदूरों ने प्रकाशित सामग्री के जरिये तथा विभिन्न स्तरों पर मीटिंगों के जरिये अपनी मांगों के पक्ष में सघन प्रचार अभियान चलाया था. प्रबंधन ने धमकी दी थी कि अगर वे त्यौहार के मौके पर बस चलाना बंद कर देंगे और रैली संगठित करेंगे तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी. इसके बावजूद मजदूरों ने अपने योजनाबद्ध कार्यक्रम को जारी रखा. यहां तक कि कुछेक अन्य यूनियनों ने, और वामपंथी पार्टियों से सम्बद्ध यूनियनों ने भी कार्यक्रम का विरोध किया था.

धमकियों और विरोधी प्रचार अभियानों को धता बताते हुए मजदूरों ने, मुख्यतः विभिन्न फ्रेंचाइजी कंपनियों द्वारा नियुक्त ठेका मजदूरों ने भीषण वर्षा के बावजूद दृढ़संकल्प के साथ गोलबंदी की और जोशीला व जुझारू प्रतिवाद मार्च संगठित किया. मार्च सुबोध मल्लिक स्क्वायर से शुरू होकर राज्य परिवहन विभाग के मुख्यालय तक गया.

ऐक्टू नेता बासुदेव बोस, अतनु चक्रवर्ती, नवेन्दु दासगुप्ता एवं विभिन्न ट्रांसपोर्ट डिपो के नेताओं ने प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित किया. एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें यूनियन के अध्यक्ष दिबाकर भट्टाचार्य, राजू दास, बिश्वरंजन सरकार, बलराम मांझी और तुहिन कायल शामिल थे ने विभागीय अधिकारियों से मुलाकात की. अधिकारी वेतन में 2000 रुपये की वृद्धि करने पर राजी हुए और उन्होंने तुरंत इस आशय का सरकारी आदेश निर्गत कर दिया. प्रबंधन ने पहले ही ठेका मजदूरों को बोनस देने की घोषणा कर रखी थी मगर फ्रेंचाइजी कंपनियों के तहत कार्यरत ठेका मजदूरों को ऐसा कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया था. इस मामले को भी उठाया गया और प्रबंधन को सरकारी तौर पर घोषणा करनी पड़ी कि सभी मजदूरों को बोनस मिलेगा और उसका भुगतान तुरंत कर दिया जायेगा.

प्रतिवाद के दिन ड्राइवरों और कंडक्टरों के अभाव में राज्य के कई रूटों पर बसें ही नहीं चलीं, जिसकी वजह से कई जगह प्रशासन को माइक से घोषणा करनी पड़ी कि यात्री राज्य परिवहन बसों पर निर्भर न करें. ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी कि अधिकारियों पर पर्याप्त दबाव पड़ गया और वे मजदूरों की मांगें मानने के लिये वार्ता करने को तैयार हो गये. इस आंदोलन ने सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का मुकाबला करने में ठेका मजदूरों, अनियमित मजदूरों की असली ताकत और उनकी संभावना को एक बार फिर साबित कर दिया है.