मौजूदा दौर में मजदूर वर्ग आंदोलन के समक्ष चुनौतियां: बदलती संरचना, उभरती चुनौतियां और हमारा दृष्टिकोण

(प्रस्तुत है 31 अगस्त-1 सितंबर, 2019 को भुवनेश्वर में आयोजित अखिल भारतीय मजदूर वर्ग कार्यकर्ता कार्यशाला में चर्चा किये गये पेपर ‘बदलती संरचना, उभरती चुनौतियां और हमारा दृष्टिकोण’. इस कार्यशाला में चर्चा किये गये विषयों की कड़ी में यह दूसरा पेपर है. तीसरा एवं अंतिम पेपर हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे).

मजदूर वर्ग विखंडित हो रहा है. देश में कुल गैर-कृषि कार्यबल (मजदूरों की कुल संख्या) का 45 प्रतिशत और देश में कुल गैर-कृषि अनौपचारिक कार्यबल का 54 प्रतिशत स्वयं-नियोजित, सूक्ष्म उद्यमी या मार्क्सवादी भाषा में निम्न पूंजीपति (पेट्टी बुर्जवा) है. स्वरोजगार के बीच भी विभिन्न श्रेणियां हैं. यह खुद के श्रम, छोटे निवेश और उससे कुछ लाभ पर निर्भर लोग, जैसे खोखा-पटरी विक्रेताओं, ब्लॉगर्स, छोटे भोजनालयों इत्यादि जैसे कामों पर निर्भर, दूसरे वो लोग जो बस आवश्यक उपकरणों में निवेश नहीं कर पाते हैं और अपने स्वयं की मजदूरी पर अधिक निर्भर हैं, और जो मूल रूप से दिहाड़ी मजदूर के चरित्र के हैं, जैसे प्लंबर, ड्राइवर और मेकैनिक, और जैसे निम्न स्तर के उद्यमी जो छोटे स्तर पर मजदूरी के लिए कुछ और श्रमिकों को भी नियुक्त करते हैं. छोटे निवेश पर निर्भरता का यह चरित्र उन्हें अपनी आजीविका कमाने के लिए समझौता करने के लिए भी मजबूर करता है, और बदले में, उन्हें यूनियनों में एक वर्ग के रूप में संगठित करने में जटिलताएं पैदा करता है. हमें स्ट्रीट वेंडर, हॉकर और सेल्फ एम्प्लॉयड (स्वरोजगार) के अन्य उप वर्गों को संगठित करने के कुछ सकारात्मक अनुभवों का अध्ययन करने की आवश्यकता है.

गैर-कृषि अनौपचारिक कार्यबल का लगभग 46 प्रतिशत मजदूरी पर आधारित है. एनएसएसओ के सर्वेक्षण 2004-2005 के आधार पर संगठित क्षेत्र कार्यबल का 6 से 8 प्रतिशत अनौपचारिक है, जैसे आकस्मिक, अनुबंध, अप्रेंटिस, ट्रेनी, आदि. यह तथ्य कि कुल कार्यबल में स्वयं-नियोजित लोग बहुतायत मे हैं, एक सीमित कारक बन जाता है. अनौपचारिक सेक्टर में कार्यरत मजदूरों के लिए अपेक्षाकृत स्थिर कार्यस्थल नहीं होता है, जो आम तौर पर वह इकाई होती है जिसके आधार पर श्रमिकों को संगठित किया जाता है. देश में कुल कार्यबल (मजदूरों की कुल संख्या) का 92 प्रतिशत असंगठित है. यह स्थिति हमारे सामने बड़े अवसरों और बड़ी चुनौतियों दोनों को प्रस्तुत करती है, पर हमें नई रणनीतियां तैयार करने की आवश्यकता होगी.

श्रमिकों की श्रेणियां

निश्चित अवधि रोजगार (एफटीई) लागू हो चुका है. संगठित क्षेत्र में भी कई अन्य श्रेणियां हैं. अनुबंध, अप्रेंटिस श्रमिकों के अलावा, कार्य प्रशिक्षुओं, दीर्घकालिक प्रशिक्षु कर्मचारी, जूनियर कार्यकारी अधिकारी आदि, संगठित क्षेत्र में कुछ श्रेणियां हैं, जो नौकरी की सुरक्षा, वेतन सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारियों से उद्योगपतियों को राहत देती हैं. एक ही काम करने वाले, एक जैसा काम करने वाले, एक ही फैक्टरी के फ्लोर पर काम करने वाले मजदूरों को नाम बदलकर 5000 से 30,000रू. तक अलग-अलग भुगतान किया जा रहा है.

अनुबंध, आउटसोर्सिंग, कैजुअलाइजेशन, नौकरी का अनुबंध, अस्थायी, दिहाड़ी मजदूर, गृह आधारित श्रमिक, आदि संगठित क्षेत्र में असंगठित श्रमिकों के कुछ प्रकार हैं. सार्वजनिक क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक और निजी क्षेत्र में 70 प्रतिशत से अधिक संगठित क्षेत्र में ऐसे असंगठित या अनौपचारिक कर्मचारी हैं. लाखों आउटसोर्स कर्मचारी जिनके प्रमुख नियोक्ता की पहचान करना मुश्किल है, वे स्वेट शॉप्स (शोषणकारी छोटी-छोटी फैक्टरी/कार्यस्थल जहां कोई नियम लागू नहीं होते) में लगे हुए हैं जो कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को माल की आपूर्ति करते हैं.

उदारीकरण के दौर में शहरों में ऑनलाइन मार्केटिंग, भूख से बचाने वाले (हंगर सेवियरस्!), ओला, उबर ड्राइवर, आईटीईएस (आईटी सक्षम सेवाएं) के कर्मचारी, गिग वर्कर्स (जैसे डोमिनो का पिज़्ज़ा घर पर पहुंचाने वाले कर्मचारी), आदि नई श्रेणी के श्रमिकों के रूप में उभर रहे हैं. आईटीईएस और अन्य सेवा क्षेत्र आधुनिक स्वेट शॉप्स के रूप में उभरे हैं. वित्तीय क्षेत्र में भी, हम पाते हैं कि सेल्स एक्सिक्यूटिवस् और बिजनेस फेसिलिटेटरस् अर्ध-गुलामी और सेवा के नए शोषणकारी रूपों के साथ उभर रहे हैं. वास्तव में, मैन पॉवर एजेंसी जैसे टीम लीज, कुछ शहरी एजेंसियां जो अपार्टमेंट और भवन परिसरों में सेवा प्रदाताओं की आपूर्ति करती हैं, खुद कंपनियों की भूमिका निभाती हैं. उनके द्वारा आपूर्ति किए गए श्रमिक उन संबंधित श्रम आपूर्ति एजेंसियों के कर्मचारी हैं. लेकिन, वे हमेशा मैन पॉवर एजेंसियों के नाम पर रिश्ते को छुपाए रखते हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में, मेकैनिक और इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, मनरेगा श्रमिक, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र से संबंधित और अन्य स्कीम कर्मी, एसएचजी (सेल्फ हेल्प ग्रुप) कर्मी, सहकारी सोसाइटी कर्मी के साथ ही विभिन्न सेवाओं से संबंधित कर्मी (नाइ, धोबी, मछुआरे, ड्राइवर, आदि समेत) अनौपचारिक क्षेत्र के असंगठित श्रमिकों के विभिन्न रूपों के बतौर उभरे हैं. सभी शहरी क्षेत्रों में भारी संख्या में स्ट्रीट वेंडर्स फैले हुए हैं. 

आजकल, अपने ‘शुद्ध’ अर्थ में कृषि श्रमिकों या श्रमिकों को ढूंढना मुश्किल है. शहरी क्षेत्रों में निर्माण और अन्य क्षेत्रों में मौसम के अनुसार काम करने वाले कृषि श्रमिकों को देखना बहुत आम है. ऐसे श्रमिकों का दोहरा चरित्र काफी आम होता है. जाति, पंथ, लिंग, काम की प्रकृति, कार्य के कौशल का स्तर, कार्य स्थान, प्रवास आदि के आधार पर मजदूरी और सेवा की स्थिति अलग-अलग होती है. जबकि इनमें से अधिकांश श्रमिक शहरी झुग्गियों में रहते हैं, झुग्गी उन्मूलन के लिए मुहिमों ने उन्हें शहरों की परिधि की और जाने के लिए मजबूर कर दिया है और आजीविका के अपने स्रोतों से वंचित किया है.

96 प्रतिशत से अधिक महिला कर्मी अनौपचारिक क्षेत्र में हैं. स्कीम वर्कर्स, घरेलू कामगार और ज्यादातर घर से काम करने वाले श्रमिक केवल महिलाएं हैं. महिला श्रमिकों के लिए शोषण अधिक तीव्र है. उन्हें श्रमिकों के रूप में भी नहीं माना जाता है, उन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है. गुलामी के अदृश्य रूप बहुत गंभीर और उग्र हैं. उन्हें किसी भी सुरक्षात्मक विधानों से सुरक्षा नहीं मिलती है. कार्य स्थलों पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है. फिर भी, हम देखते हैं कि श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी घट रही है. अधिकांश उभरते क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, आदि में, हम पाते हैं कि युवा श्रमिक बड़ी संख्या में कार्यरत हैं. इस तथ्य के बावजूद कि श्रमिकों के इस वर्ग के बीच उदारीकरण व्यक्तिवाद और व्यक्ति केन्द्रीयता की मजबूत भावना भी पैदा करता है, मारुति संघर्ष और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में अन्य तीखे संघर्षों में दिखा उनका जुझारूपन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. ये मजदूर दोनों दक्षिणपंथी प्रभावों, और यदि प्रभावी ढंग से संगठित किये जाएं तो, वामपंथी जुझारू प्रभावों के प्रति भी संवेदनशील हैं. हमें शहरी क्षेत्रों में युवा मजदूरों के इस हिस्से तक पहुंचने के लिए अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

सर्वेक्षणों में से एक का कहना है कि अनौपचारिक श्रमिकों में 66 प्रतिशत यूनियन में रुचि नहीं रखते हैं, जबकि लगभग 33 प्रतिशत रुचि रखते हैं. इसका कारण स्थापित ट्रेड यूनियनों द्वारा संगठित करने के अपनाये जाने वाले पारंपरिक रूप हैं. हमें मजदूरों को संगठित करने के पारंपरिक रूपों से आगे देखने की जरूरत है.

संगठित करने के मॉडल

अनौपचारिक कार्यबल को संगठित करने के लिए कोई बना बनाया एक सूत्र नहीं है. संगठन के तरीके और रणनीतियां एक कार्यस्थल से दूसरे, उद्योग से उद्योग, यूनियन से यूनियन तक भिन्न हो सकते हैं. विभिन्न यूनियनों ने विभिन्न रूपों और शैलियों के साथ अनुभव और प्रयोग किया है. आईएलओ के एक पेपर में संगठन के विभिन्न मॉडल बताए गए हैं. सहकारी मॉडल, स्टडी सर्किल मॉडल, एसएचजी, कल्याण सहायता, श्रेणीबद्ध नेटवर्क दृष्टिकोण, फ्रेंडशिप (मित्र) हाउस, कौशल विकास, आईटी प्रशिक्षण, सामाजिक गोलबंदी आईएलओ द्वारा अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को संगठित करने के लिए अनुशंसित कुछ मॉडल हैं. सेवा जैसे संगठन पहले से ही आय सृजन विधियों के माध्यम से यूनियन बनाने के इन मॉडलों का अभ्यास कर रहे हैं. इस पेपर का तर्क है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में डिसेंट कार्य और सहकारिता को साकार करना यूनियन बनाने का एक प्रभावी रूप हो सकता है.

मुंबई स्थित वर्कर रिसर्च यूनिट (आरयूपीई) का एक अन्य पेपर नए मॉडलों के बतौर विभिन्न फैक्टरी आधारित यूनियनों के गठबंधनों और स्वतंत्र यूनियनों के औद्योगिक क्षेत्र आधारित गठबंधनों का सुझाव देता है. वे मानते हैं कि ‘‘मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान’’ इन तरीकों के साथ बना है.

ऊपर दिए गए तरीके केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा नियोजित पारंपरिक तरीकों के अलावा रणनीतियां हैं.

हमारा दृष्टिकोण

पहचान योग्य नियोक्ता-कर्मचारी संबंध की अनुपस्थिति में, कार्यस्थल की अनुपस्थिति में जहां सभी श्रमिक इकट्ठा होते हैं, अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित रोजगार की स्थिति जैसे कि स्थायी रोजगार आदि के अभाव में, श्रमिकों को संगठित करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो रहा है.

इसलिए, श्रमिक आंदोलन जिसे उद्यम/कंपनी/फैक्टरी स्तर के संघर्षों के साथ पहचाना गया था, वे क़ानूनी सुरक्षा की मांग पर राज्य के खिलाफ संघर्षों में बदल गए. नियोक्ताओं के पक्ष में सभी मौजूदा श्रम क़ानूनों की सुरक्षा के खात्मे के साथ, राज्य के खिलाफ संघर्ष बढ़ने के लिए बाध्य हैं, हालांकि यह महत्वपूर्ण है, पर पर्याप्त नहीं हो सकता है. हमें आजीविका, रोजगार और रोजगार की शर्तों को संबोधित करते हुए जमीनी स्तर पर श्रमिकों को संगठित करने के तरीकों को और विकसित करना होगा.

हम केवल सहकारी समितियों के मॉडल का अभ्यास नहीं कर सकते, हालांकि यह अपवाद के रूप में काम कर सकता है, कुछ दुर्लभ परिस्थितियों में, लेकिन, यह आम तौर पर एक संघर्षशील संगठन के दृष्टिकोण के अनुकूल नहीं है. ट्रेड यूनियनों से लोगों को रोजगार, किसी तरह की आय सृजन, किसी तरह का प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करके संगठित करना आईएलओ और अन्य साम्राज्यवादी एजेंसियों द्वारा मजदूर वर्ग संघर्षों की धार को कुंद करने का सुझाव है. बल्कि, हमें वैकल्पिक रणनीति विकसित करनी पड़ सकती है. उदाहरण के लिए, एसएचजी को अधिक सुविधाओं और ऋण प्रदान करने की मांग के साथ राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित किया जा सकता है. इसका उपयोग राज्य और उसके चरित्र को उजागर करने के लिए किया जा सकता है. हम स्वयं के अलावा अन्य संघर्षों में भी एसएचजी की इकाइयों को शामिल करने के तरीकों और साधनों का पता लगा सकते हैं.

अभियानों और आंदोलन के पारंपरिक मॉडलों के अलावा, जमीनी स्तर पर मजदूरों को संगठित करने, शिक्षित करने और उनसे जीवंत संपर्क स्थापित करने के लिए, हमें स्टडी सर्कल, फोरम, क्षेत्र स्तरीय मंचों, कल्याण संघर्ष, आंशिक संघर्ष, आदि गैर-परंपरागत रूपों का पता लगाने और एकीकृत करने के लिए भी कार्य करना पड़ सकता है. 

उद्योग (ऑटोमोबाइल, रेलवे, आदि) के आधार पर, औद्योगिक क्षेत्र या इलाकों के आधार पर और पेशे/नौकरी/काम (स्कीम, सफाई, आदि) के आधार पर यूनियनें संगठित करना और ग्रामीण श्रमिकों की विभिन्न श्रेणियों को पंचायतों और तहसीलों के आधार पर, शहरी असंगठित श्रमिकों को वार्ड स्तर पर संगठित करना, अनौपचारिक मजदूरों को संगठित करने के प्रमुख रूप बन सकते हैं.

हमारे पास पहले से ही बीड़ी श्रमिकों को संगठित करने का सफल मॉडल है जो बिना किसी स्थिर कार्यस्थल के हैं. बीड़ी उद्योग के अत्यधिक बिखरे श्रमिकों को संगठित करने में ट्रेड यूनियन आंदोलन का योगदान इनकी उपलब्धियों के संदर्भ में उल्लेखनीय है. लेकिन, बीड़ी श्रमिकों के मामले में, प्रधान नियोक्ता को पहचाने जाने की स्थिति थी. निर्माण श्रमिकों के मामले में भी, हम शुरुआती चरण में सफल रहे, क्योंकि कल्याण बोर्ड उन्हें व्यवस्थित करने का केंद्र बन गया. लेकिन, हमें निर्माण मजदूरों के संघर्ष को उच्चतर स्तर पर उठाने के लिये उसे कल्याण लक्षित से आगे बढ़ाकर नौकरशाहों, बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों, बिल्डरों, बहुस्तरीय ठेकेदारों और माफियाओं के गठजोड़ के खिलाफ निर्देशित करना होगा. और यह कुछ ठोस, व्यवस्थित प्रयासों से संभव है, आंदोलन को ऐसी बढ़त प्रदान करने के लिए. हमारे पास पहले से ही अनुबंध और अन्य अनौपचारिक श्रमिकों को संगठित करने के दर्जनों अनुभव हैं. ऑटोमोबाइल उद्योग, स्कीम, सफाई, रेलवे, आदि के ऐसे अनौपचारिक श्रमिकों को कारखाना, कार्यस्थल, वार्ड, पंचायत, औद्योगिक क्षेत्र, आवासीय क्षेत्र और विभिन्न अन्य स्तरों पर संगठित करने के नए रूप वास्तविकता बन रहे हैं और हमारे पास समृद्ध अनुभव भी हैं. लेकिन, हमें ऐसे श्रमिकों को विभिन्न स्तरों पर संगठित करने के लिए व्यवस्थित, सचेत प्रयास करने होंगे. हर राज्य और जिले में इसे प्रभावी बनाने के लिए एक सचेत योजना होनी चाहिए. हमें वास्तविकता पर पकड़ बनाने के लिए और नए बदलावों के साथ संगति बनाते हुए अपने काम की पुनर्संरचना और री-फ़ोकसिंग (ध्यान केन्द्रित) करने के लिए नियमित रूप से सामाजिक जांच-पड़ताल करनी पड़ सकती है.

बदली हुई स्थिति में, हमें अपने जोर के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण वर्गों के श्रमिकों और श्रमिकों की नई श्रेणियों की पहचान करनी होेगी. उदाहरण के लिए, एयरलाइन मेकैनिक जो केवल 10 प्रतिशत कार्यबल हैं, लेकिन अगर हम एयरलाइन कर्मचारियों को संगठित करते हैं, तो इस बात को समझना होगा की एयरलाइन मेकैनिक एक बड़ी हड़ताली शक्ति है. ग्रामीण क्षेत्रों में, हम मेकैनिक, इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, ट्रैक्टर चालक जैसे श्रमिकों से लेकर विभिन्न योजनाओं में नियोजित श्रमिकों की नई श्रेणियां अच्छी संख्या मे पाते हैं. शहरी क्षेत्रों में, हम निर्माण श्रमिकों से लेकर गिग कर्मचारियों (जैसे डोमिनो डिलीवरी कर्मचारी) तक की श्रमिकों की विभिन्न श्रेणियां पाते हैं और यह दायरा बहुत फैला हुआ है. आईटी और आईटी सक्षम सेवाओं में कार्यरत अधिकांश श्रमिकों को भी बहुत कम भुगतान किया जाता है. यह उद्योग पूंजी प्रधान है लेकिन आधुनिक स्वेट शॉप हैं. हमें उन्हें संगठित करने के लिए प्रभावी तरीके तैयार करने चाहिए. अध्ययन मंडलियों, फिल्म समारोहों, आदि के अलावा फ़ोरम, पड़ोस के मदद घर आदि भी काम में आ सकते हैं.

हमें नए संपर्क पाने और भर्ती करने के लिए कोचिंग सेंटर, प्रशिक्षण केंद्र, कौशल विकास केंद्र, आदि में संभावित मजदूरों और कर्मचारियों से संपर्क करना होगा.

जितने भी स्तरों पर जो भी परिवर्तन हों, जुझारू श्रमिक और प्रतिरोध आंदोलन आने वाले दिनों में बढ़ेंगे. मारुति, प्रिकॉल, ग्रैजियानो, बंगलौर परिधान कर्मी संघर्ष, मुन्नार महिला श्रमिक संघर्ष आदि, अलग-थलग मॉडल नहीं हैं, लेकिन इस तरह के कॉरपोरेट-परस्त श्रम कानूनों और नीतियों के कारण किसी भी प्रभावी कानूनी उपाय नहीं होने के संदर्भ में आने वाले दिनों में ऐसे विस्फोटक संघर्ष तेज होने के लिए बाध्य हैं. हमें ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए.

दूसरी ओर, हमें औपचारिक क्षेत्र में असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्रों में असंगठित को संगठित/यूनियनबद्ध करने के लिए प्रभावी तरीकों को भी तैयार करना चाहिए. अनौपचारिक क्षेत्रों में हमारा पहला जोर दिहाड़ी मजदूरों पर हो सकता है, जैसे ग्रामीण श्रमिक, शहरी असंगठित, स्कीम कर्मचारी, गृह आधारित घरेलू कामगार, इत्यादि, और धीरे-धीरे हम स्ट्रीट वेंडरों जैसे स्वयं-नियोजित को संगठित करने की दिशा में भी आगे बढ़ सकते हैं.

औद्योगिक लोकतंत्र, यूनियन बनाने का अधिकार, हड़ताल का अधिकार, कार्यस्थितियां, मजदूरी की सुरक्षा, नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, श्रमिक-किसान एकता, आदि, नियोक्ता के खिलाफ, पूंजी के खिलाफ, राज्य के खिलाफ, आदि सवालों पर मजदूरों को संगठित करने के पारंपरिक तरीकों, जन अभियानों, संघर्षों के विभिन्न रूपों, आदि के अलावा, हम निम्नलिखित पहलुओं पर भी विचार कर सकते हैंः

  1. एक पूंजीवादी समाज में, पूंजी और श्रम के बीच वस्तुगत टकराव किसी भी ट्रेड यूनियन का आधार है. पूंजी के खिलाफ संघर्ष ट्रेड यूनियन और मजदूर वर्ग आंदोलन का मूल कार्य है. हमारे जैसे विकृत पूंजीवादी समाज में, वर्ग संघर्ष केवल एक रूप में नहीं, और न ही अपने शुद्ध रूप में व्यक्त होता है.
  2. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह विभिन्न रूपों मे दिखायी देता है. कई मामलों में, मूलभूत मुद्दों से अधिक, भावनात्मक और अन्य परिधीय मुद्दे शुरूआती बिंदु या कारण बन जाते हैं और बड़े पैमाने पर भागीदारी और बड़े आंदोलनों का कारण बनते हैं. मारुति के मामले में, यह एक दलित कार्यकर्ता के खिलाफ गाली थी; प्रिकोल में, यह श्रमिकों के एक समूह को निकालना था; बंगलौर के कपड़ा श्रमिकों के मामले में, यह पीएफ पर एक सर्कुलर था. पावरलूम उद्योग के कुछ क्षेत्रों में, यह बोनस का मुद्दा है, किसी जगह पर कैंटीन में सांभर में तैरती हुए चींटी, आदि तक भी. शुरुआती बिंदु लंबे समय से चल रहे, श्रमिकों के लंबे अनसुलझे मुद्दों की एक परिणति है जो एक खास समय में कथित रूप से तुच्छ सवालों पर परिलक्षित हो जाता है. इसलिए, मूल बात वस्तुगत बदलावों पर पकड़ रखना है और संघर्ष के ऐसे शुरुआती बिंदुओं को आगे बढ़ाना है.
  3. विभिन्न तरीकों से श्रमिकों का विश्वास जीतकर श्रमिकों को संगठित करना, जिसमें कल्याणकारी लाभों पर संघर्ष, उनकी आजीविका के मुद्दों के विभिन्न पहलुओं पर संघर्ष शामिल हैं. प्रयोग के रूप में जहाज तोड़ने वाले श्रमिकों के मामले में, श्रमिकों को कल्याणकारी लाभ प्राप्त करने के लिए यूनियन की सहायता, जिसमें राशन कार्ड, स्वास्थ्य लाभ, आदि शामिल हैं, यूनियन के गठन का कारण बना है. कृपया ध्यान दें कि इस मामले में, यह टकराव से शुरू नहीं हुआ, बल्कि राज्य के खिलाफ सहित, विभिन्न तरीकों से श्रमिकों का विश्वास जीतने के माध्यम से संभव हुआ.
  4. सचेत और हिरावल मजदूरों को आकर्षित करने के लिए अध्ययन मंडलियों, फिल्म समारोहों और इसी तरह के अन्य रूपों में भी, उन्हें नेतृत्व की भूमिकाओं में प्रशिक्षित करने, उनकी चेतना बढ़ाने और मजदूर वर्ग संघर्षों और संगठन को बनाने के ठोस प्रयासों में मदद करते हैं.
  5. बढ़ते हुए फासीवादी हमले और मज़दूरों के ऐसे बाहरी वैचारिक प्रभावों के शिकार होने के संदर्भ में, मज़दूर मंचों को बढ़ावा देना और भी अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है, कुछ मामलों में ट्रेड यूनियनों के हिस्से के रूप में, कुछ अन्य मामलों में, स्वतंत्र रूप से भी. कुछ मामलों में, एक ट्रेड यूनियन गठन की शुरूआत फोरम से हो सकती है और कुछ अन्य मामलों में, फोरम एक साथ एक स्वतंत्र संगठन के रूप में कार्य कर सकता है जो ट्रेड यूनियनों का पूरक है. हमारा अनुभव यह है कि जहां भी हम ट्रेड यूनियनों को संगठित करने में सफल रहे, ऐसे फोरम अप्रासंगिक हो गए हैं. बल्कि, बढ़े हुए अनौपचारिक कार्यबल और बढ़ते फासीवादी प्रभावों के नए संदर्भ में, हमें ऐसे मंचों के लिए नई भूमिका को परिभाषित करते रहना चाहिए. हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मंचों को स्वाभाविक मौत का सामना न करना पड़े. श्रमिकों से संबंधित मामलों पर और श्रमिकों से संबंधित वैचारिक और राजनीतिक मुद्दों पर नियमित आधार पर सेमिनार, स्टडी सर्कल, वार्ता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, फिल्म शो, सहित कार्यक्रमों के उपयुक्त रूपों का आयोजन भी सहायक हो सकता है. यह आने वाले दिनों में ट्रेड यूनियनों के साथ हमारे महत्वपूर्ण कार्यो में से एक बन सकता है. कृपया ध्यान दें कि इस तरह के फोरम आज प्रमुख शहरों में मौजूद हैं, विशेषकर श्रमिकों के शिक्षित नए वर्गों के बीच, जो हमारी पहल से स्वतंत्र हैं.
  6. नियमित रूप से श्रमिक वर्गों की अध्ययन क्लास छह महीने में कम से कम एक बार करना हमारे व्यवहार का एक अभिन्न अंग बनना चाहिए. इसी तरह, जन राजनीतिक अभियान भी हमारे व्यवहार की एक नियमित विशेषता होगी.
  7. हम तमिलनाडु में श्रीपेरम्बुदूर, उत्तराखंड में सिडकुल और पुडुचेरी में सेथरपट्टु के अपने औद्योगिक क्षेत्र आधारित अनुभवों को गुड़गांव की तर्ज पर दोहरा सकने के अलावा अनौपचारिक श्रमिकों को संगठित करने के लिए आवासीय इलाकों और कार्यस्थलों के आधार पर सचेतन रूप में ट्रेड यूनियनों का विकास कर सकते हैं. हमारे पास पहले से ही निर्माण, बीड़ी, स्कीम, सफाई, आदि में अनौपचारिक श्रमिकों को संगठित करने के अनुभव हैं. हमें औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में असंगठित को संगठित करने की योजना बनाते समय इन सभी व्यवहारों को ध्यान में रखना होगा.
  8. हमें उद्योग-आधारित और पेशा-आधारित ट्रेड यूनियनों के विकास पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है.
  9. कार्यबल की बदलती संरचना के संदर्भ में, हमें अशांत और बदलाव से गुजर रहे वर्गों की पहचान करनी होगी. आज के संदर्भ में, विभिन्न प्रकार के स्कीम कर्मचारी, स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय क्षेत्रों में, रेलवे और सार्वजनिक उपक्रमों में असंगठित मजदूरों पर भी हम ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.
  10. हमें ग्रामीण क्षेत्रों में नरेगा श्रमिकों, गैर कृषि श्रमिकों, आदि पर ध्यान केंद्रित करते हुए शहरी क्षेत्रों में ऑनलाइन मार्केटिंग, प्लेटफॉर्म और गिग श्रमिकों, ड्राइवरों, आईटीईएस सेवाओं, आदि के नए वर्गों को संगठित करने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों को संगठित करने के लिए और रेलवे और वित्तीय सेवाओं जैसे विशाल नेटवर्क के श्रमिकों को संगठित करने के लिए, हम आइरला की मदद भी ले सकते हैं. बदले में, ट्रेड यूनियनें भी आइरला को, जहां वह मौजूद नहीं है, विकसित करने में मदद कर सकती हैं 
  11. नई स्थिति हमें हमेशा सतर्क रहने, आंख, कान खुले रखने की मांग करती है ताकि हम जमीनी स्तर पर श्रमिकों के आंदोलन की गतिशीलता पर नजर रख सकें और जब भी अवसर पैदा हो, उसे पकड़ सकें, इस्तेमाल कर सकें.