चाय बागान मजदूरों के समक्ष चुनौतियां और  26 नवंबर की हड़ताल की तैयारियां

उत्तरी बंगालः इस बहु-प्रचारित लॉकडाउन के दौर में देश में सबसे पहले, करीबन मई महीने के बीच में खुलने वाले चाय बागान, शायद लॉकडाउन के दौरान उत्पादन शुरु करने वाले पहले उद्यम थे. केन्द्र सरकार द्वारा जारी निर्देशों की कड़ियों में ये कहा गया था कि जुलाई के अंत तक 5 प्रतिशत के सीमित ऑपरेशन से लेकर 50 प्रतिशत मजदूरों को कुछ चरणों में काम पर लिया जाए, लेकिन असल में शुरु से ही शत-प्रतिशत मजदूरों को काम पर लगा दिया गया था. ‘फर्स्ट फ्लश’ (शुरूआती फसल), जिसके चलते ‘दार्जिलिंग चाय’ दुनिया भर के बाज़ारों में बेहद मांग वाला ब्रांड है, का नुक्सान उठाने के बाद चाय बागान मालिक अपने घाटे को पूरा करने के लिए उत्पादन की रफ्तार को बढ़ाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया. वैश्विक और घरेलू बाज़ारों में आपूर्ति में आई कमी ने बेरोकटोक मुनाफे का रास्ता साफ कर दिया था. यहां तक कि छोटे चाय बागान मालिकों के संघ को भी भी बॉट-लीफ (चाय पत्तियों का प्रसंस्करण) फैक्टरी में प्रति किलो 40 रु. चाय की कीमत मिल रही थी.

बिल्कुल उत्पादन ना होने से लेकर तथाकथित कम उत्पादन की इस लहर में अंततः कोविड-19 के सभी नियमों का उल्लंघन किया गया. ज्यादातर मामलों में फेस-मास्क और साबुन के पानी की आपूर्ति और वितरण पूरे लॉकडाउन के दौरान और हालिया अनलॉक के दौरान सिर्फ एक बार किया गया. पूरे दिन चाय-पत्तियों को तोड़ने में शायद शारीरिक दूरी सुनिश्चित की गई हो, लेकिन एक दिन में कम से कम 2 बार की तुलाई ने इस बीमारी के इस सबसे महत्वपूर्ण नियम को भी ताक पर रख दिया. इन प्रतिबंधों में होने वाली इन दिक्कतों के बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि संक्रमण के पहले चरण में इस घातक बीमारी से रिहायशी मजदूर कम प्रभावित हुए थे. वापस आने वाले प्रवासी मजदूरों के वापस आकर चाय बागान में बसने के साथ ही परिस्थिति में त्रिकोणीय खतरा मंडराने लगा. पहला, ये कि प्रवासी मजदूरों के अपने ही रिश्तेदारों ने डर के मारे अपने ही बागानों में पूरी ताकत से उनके लौटने का विरोध किया. दूसरा, क्वारंटीन होम्स की कमी के चलते उन्हे स्वास्थ्य अधिकरणों के ज़रिए मंजूरी मिलने में मुश्किल हुई. तीसरे अपने गृह राज्य में नौकरी ना होने के चलते पहले से ही ग़रीब परिवारों के आर्थिक हालात को और खराब कर दिया. 

सभी ट्रेड यूनियनों के साथ ऐक्टू से संबद्ध ‘‘तराई संग्रामी चा श्रमिक यूनियन’’ ने इस चरण में हस्तक्षेप किया और कम से कम मालिकों के संघ सीसीपीए से ये आश्वासन हासिल किया कि वे राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के साथ समन्वय में वापस आने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए क्वारंटीन होम चलाएंगे, और उन्हें बागान के स्तर पर अस्थाई नौकरी देंगे और लॉकडाउन वेतन पर अग्रिम भुगतान भी देंगे. 

लंबे लॉकडाउन के दौर की अभूतपूर्व चुनौतियों को झेलते हुए, ऐक्टू के नेतृत्व में असम, बंगाल के साथ तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल के चाय बागान क्षेत्र में काम करने वाले नेताओं की अखिल भारतीय समन्वय समिति का गठन किया गया. इसके बाद चाय बागान क्षेत्र के लिए एक 10 सूत्रीय राष्ट्रीय मांगपत्र जारी किया गया. इसके आगे की कार्यवाही के तौर पर, लॉकडाउन वेतन, कोविड-19 से सुरक्षा कदमों, चाय-बागान श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन की घोषणा, स्थाई कर्मचारियो के लिए रिहायशी घरों की जमीन के लिए पट्टा, खाद्य सुरक्षा आदि की मांगों के साथ चाय बागान स्तर पर प्रतिरोध प्रदर्शनों की श्रृंख्ला सफलतापूर्वक चलाई गई और सीसीपीए तथा केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के श्रम प्राधिकरण को स्वतंत्र और संयुक्त रूप से मांगों के ज्ञापन दिये गये. 

सितम्बर 2020 में, दुर्जेय समझे जाने वाले मालिकों को मजदूरों के संघर्षकारी मूड के सामने झुकना पड़ा. उन्हें पहाड़ों और मैदानों में दिहाड़ी मजदूरों को 20 प्रतिशत बोनस देने के लिए मानना ही पड़ा. इस दौरान अन्य महीना दर वाले स्टाफ और सब-स्टाफ एसोसिएशनस् ने रिक्त पदों को भरने, बढ़े हुए वेतन, इस श्रेणी के मजदूरों को पिछले 6 सालों में सभी अन्य कानूनी आधिकारों और सुविधाओं से वंचित रखने के लिये मुआवजा देने जैसी बहु

त समय से चली आ रही मांगों को उठाने के लिए हाथ मिला लिया है. प. बंगाल के श्रम मंत्री ने ये आश्वासन दिया कि दिसम्बर के शुरुआती समय में लगातार 3 दिवसीय त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन किया जाएगा जिसमें इस तरह की सभी मांगों का निपटारा किया जाएगा.

2021 के शुरुआती महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और तृणमूल शासित राज्य सरकार ने पहले ही तराई-दुआर-हिल्स क्षेत्र के बंद पड़े चाय बागानों में मजबूर मजदूरों को नये घर देने का वादा किया है, और इस घूस को ‘चा-सुन्दरी’ का नाम दिया है. जाहिर है कि ऐसा लगता है कि ये कदम तृणमूल कांग्रेस द्वारा चाय बागान समुदाय के वोट हासिल करने के लिए उठाया गया है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां तृणमूल कांग्रेस भाजपा से हार गई थी. प. बंगाल में चाय उद्योग ही एकमात्र स्थाई जीवन-रेखा उद्योग है जिसमें 4.5 लाख स्थाई मजदूर काम करते है. 26 नवम्बर को अखिल भारतीय आम हड़ताल की तैयारी निश्चित तौर पर चाय बागान मजदूरों को केन्द्रीय मांगपत्र और बंगाल के चाय उद्योग क्षेत्र की मांगों के प्रति एकजुट करेगी.

असमः ऐक्टू से संबद्ध असम संग्रामी चा श्रमिक संघ राज्य के चाय बागान श्रमिकों के सवालों खासकर दैनिक मजदूरी 350रू. करवाने की मांग पर स्वतंत्र और संयुक्त दोनों रूपों में निरंतर संघर्षरत है. इस निरंतर संघर्ष के चलते सरकार को मजदूरी के सवाल पर एक कमीशन बिठाने को भी मजबूर होना पड़ा. इस कमीशन ने मजदूरों के पक्ष में अपनी रिपोर्ट देते हुए मजदूरी 351.33रू. तय की.

कमीशन की इस सिफारिश को लागू करवाने के लिये सरकार पर दबाव डालने को यूनियन की पहल पर चाय सेक्टर में एक संयुक्त मंच (चाय मजदूरों की मजदूरी के लिये संयुक्त ऐक्शन कमेटी-जेएसीटीडब्लूडब्लू) का गठन हुआ जिसमें चाय मजदूरों की यूनियनें, चाय सेक्टर के महिला संगठन और ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसियशन ऑफ असम (आसा) शामिल हैं जिसके संयोजक चाय बागान मजदूरों के बीच ऐक्टू नेता बिबेक दास हैं.

संयुक्त मंच द्वारा चलाये गये संघर्षों की कड़ी में हाल में 30 सितंबर को हुई 12 घंटों की चाय मजदूरों की हड़ताल उल्लेखनीय रही जिसमें करीब 500 चाय बागानों के 4 लाख मजदूरों ने भागीदारी की. इस हड़ताल के प्रमुख मुद्दे थे- दैनिक मजदूरी 351.33रू. लागू करना, चाय मजदूरों के बीच स्वास्थ्य और शिक्षा को बेहतर बनाने के लिये नीति निर्माण और जमीन का पट्टा उपलब्ध कराना.

इन संघर्षों को आगे बढ़ाते हुए चाय बागान मजदूर 26 नवंबर की देशव्यापी आम हड़ताल की तैयारियों में जुट गये हैं. इसके तहत 1-2 नवंबर को राज्य स्तरीय वर्कशॉप आयोजित की जायेगी जिसमें मंच में शामिल हर संगठन से 5-5 नेतृत्वकारी कार्यकर्ता भाग लेंगे, फिर सप्ताह भर के कार्यक्रम लिये जायेंगे जिनमें चाय बागान इलाके बेहाली से पूर्व श्रम मंत्री और वर्तमान में तेजपुर से सांसद, पल्लब लोचन दास के पुतले जलाये जायेंगे, और अभियान को आगे बढ़ाते हुए मांगों का ज्ञापन डिप्टी कमीशनरों को सौंपा जायेगा. हड़ताल के बाद भी संघर्ष जारी रहेगा और दिसंबर में हर जगह सड़क जाम करने के कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे.