विस्ट्रॉन फैक्टरी के मजदूरों का संघर्ष

ऐक्टू की जांच टीम ने नारसापुरा औद्योगिक क्षेत्र (कोलार ज़िला, कर्नाटक) का दौरा किया और वहां 12 दिसंबर 2020 की घटना के संदर्भ में मजदूरों से मुलाकात की. इस घटना में विस्ट्रॉन फैक्टरी के हजारों मजदूरों ने अपनी कई मांगों के लिए प्रदर्शन किया था जिसमें फैक्टरी की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था और पुलिस ने मजदूरों के खिलाफ कार्रवाई की थी. यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की सुर्खियों में आई. 

जांच टीम में निम्नलिखित साथी शामिल थेः मैत्री कृष्णन, क्लिफ्टन रोजारियो, अपन्ना पी.पी और प्रभु. इस जांच रिपोर्ट को कर्नाटक सरकार और भारत सरकार के श्रम सचिव को भेजा गया. यह रिपोर्ट काफी प्रचारित हुई, ईपीडब्लू (इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली) जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका और मीडिया में इसका उल्लेख किया गया. को इस फैक्टरी में श्रम कानूनों के खुल्लम-खुला उल्लंघन और मजदूरों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारी के खिलाफ ऐक्टू और अन्य ट्रेड यूनियनों ने आवाज उठाई. यहां तक कि दबाव में ऐप्पल कंपनी जिसके आई-फोन यहां असेम्बल होते हैं, ने विस्ट्रॉन के उपाध्यक्ष को पद से हटा दिया और श्रम कानूनों के उल्लंघन की जांच करने का आदेश दिया. यही नहीं, अब ऐप्पल और विस्ट्रॉन ने अपने बयानों में अपनी गलती को माना है कि मजदूरों को देय मजदूरी अदा नहीं की गई, और वे जरूरी कदम उठायेंगे. साथ ही, इस फैक्टरी में संपत्ति के नुकसान को बढ़ाचढ़ा कर 437 करोड़ रूपये पेश किया गया था जिसे बाद में विस्ट्रॉन ने इसे सही कर 43 करोड़ रूपये निर्धारित किया. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा शासित कर्नाटक सरकार इन हकीकतों पर चुप्पी साधे हुए है. इन्हें बस इस बात की चिंता है कि इस घटना ने विदेशी निवेशकों एवं कंपनियों को लुभाने की तरफ लक्षित उनकी ‘मेक इन इंडिया’ और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की बहुप्रचारित योजनाओं को धक्का पहुंचा दिया है.  

इस पूरे मामले को लेकर ऐक्टू केंद्रीय कार्यालय और विभिन्न राज्य इकाइयों ने अपने ज्ञापनों के माध्यम से इस फैक्टरी में श्रम कानूनों के उल्लंघन और मजदूरों की गिरफ्तारी के खिलाफ मांगें उठाते हुए कर्नाटक सरकार और भारत सरकार के श्रम सचिव से हस्तक्षेप करने की मांग की.

प्रस्तुत है जांच रिपोर्ट जो इस बात की झलक दिखलाती है कि मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और उसको जबरन लागू करने के लिये लाए जा रहे चार श्रम कोड कानून किस तरह मजदूरों को गुलामी में धकेल देंगे, उन्हें बेबस बना देंगेः

कोई रास्ता नहीं बचा

फैक्टरी स्थल की भारी पुलिस बल ने घेराबंदी की हुई है और आम जनता के लिए वहां जाना असंभव है, पुलिस ने किसी को भी फैक्टरी के करीब जाने की इजाज़त नहीं दी. सच कहें तो, फैक्टरी को जाने वाले रास्ते पर जो ढाबे और छोटी-मोटी दुकानें थीं उन्हें भी पुलिस ने हमारे सामने ही बंद करवा दिया और वो फैक्टरी की तरफ जाने वाले हर व्यक्ति को वहां से भगा रहे थे. इसके बावजूद, फैक्टरी के आसपास की आम जनता ने इस कथित घटना के बारे में काफी जानकारी जांच टीम को दी. जांच टीम आस-पास के गांवों में भी गई और वहां विस्ट्रॉन में काम करने वाले मजदूरों से भी मिली. मजदूर इन परिस्थितियों में बातचीत करने में डर रहे थे, जबकि आस-पास के लोग भी हालांकि बात तो कर रहे थे लेकिन वहां पुलिस होने की वजह से उन्हें भी डर था. जांच से निम्नलिखित तथ्य सामने आएः 

  1. विस्ट्रॉन ताइवान की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है, जिसका नारसापुरा औद्योगिक क्षेत्र में एक प्रतिष्ठान है जहां ऐप्पल कंपनी के लिए मोबाइल आई फोन असेम्बल होते हैं. लॉकडाउन के बाद फैक्टरी में जो काम चल रहा था उसमें 1343 नियमित कर्मचारी और 8490 ठेका मजदूर काम कर रहे थे, जिन्हें 6 ठेकेदारों से लिया गया था. ये कर्मचारी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट, आईटीआई डिप्लोमा होल्डर्स और पीयूसी या 10वीं पास हैं. 
  2. ठेका मजदूरों की मोटे तौर पर तीन श्रेणियां हैं, (अ) अन्य राज्यों से आए हुए प्रवासी मजदूर जिनमें तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, बिहार आदि शामिल हैं. (ब) कर्नाटक के अन्य ज़िलों से आए प्रवासी मजदूर. (स) नारसापुरा के आसपास के तालुका के विभिन्न गांवों से आने वाले मजदूर. ये भी बताया गया कि ऐसे भी मजदूर हैं जो होसकोटे या बैंगलूरु से काम करने यहां आए हैं.
  3. अन्य ज़िलों या राज्यों से आए प्रवासी मजदूर नारसापुरा शहर या पास के गांवों में किराए के मकानों में रहते हैं, जबकि अन्य ठेका मजदूर अपने परिवारों के साथ अन्य गांवो में रहते हैं जिनमें नारसापुरा, बंगारपेट, मुल्बागल आदि तालुक शामिल हैं. इन ठेका मजदूरों में जो एक बात आम है कि ये सब युवा पुरुष व महिलाएं हैं. 
  4. जब उन्होंने नौकरी के लिए आवेदन किया था, तब इन ठेका मजदूरों का इंटरव्यू विस्ट्रॉन के अधिकारियों ने लिया था. इंटरव्यू पास करने के बाद इनको इन कथित ठेकेदारों में से एक के पास भेजा गया था, जिन्होंने इन्हें नियुक्ति पत्र दिया था जिसमें ये लिखा था कि उन्हें उस खास ठेकेदार ने नियुक्त किया है और उन्हें ”विभिन्न ग्राहक स्थानों (क्लाइंट लोकेशन)” पर जाना होगा जबकि वे सिर्फ विस्ट्रॉन में ही काम करते हैं. इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि विस्ट्रॉन में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी को कभी भी और क्लाइंट लोकेशन पर ट्रांस्फर किया गया हो. सभी कर्मचारियों का इंटरव्यू विस्ट्रॉन के अधिकारियों ने लिया और वो इन्हीं अधिकारियों के नियंत्रण और निर्देशानुसार काम करते थे. ठेकेदार का काम सिर्फ इन्हें नियुक्ति पत्र देना और वेतन का भुगतान करना था. असल में उनके नियुक्ति पत्र में साफ लिखा हुआ है कि उनके काम से संबंधित सभी निर्देश उन्हें फैक्टरी सुपरवाइज़र देगा. साफ है कि ये ठेकेदार सिर्फ नाम के लिए हैं और विस्ट्रोन ने ठेका प्रथा को सिर्फ इसलिए अपनाया ताकि वो इन मजदूरों को उनके अधिकारों से वंचित रख सके और उन्हें नियमित/स्थाई कर्मचारियों के अधिकार ना मिल पाएं. 
  5. ये सभी मजदूर युवा हैं. ये भी कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने भी नौकरी के लिए आवेदन किया था उनमें से 26 साल से अधिक के आवेदकों को विस्ट्रोन अधिकारियों ने खारिज कर दिया. 
  6. ये मजदूर, खासतौर से आस-पास के गांवो से आने वाले, बहुत गरीब परिवारों से आते हैं और इनमें से ज्यादातर दलित समुदाय से हैं. उन्होंने विस्ट्रॉन में नौकरी इसलिए की थी क्योंकि कॉलेज बंद हो चुके थे और परिवार आर्थिक संकट झेल रहे थे, और उनके नौकरी करने का एकमात्र मकसद परिवार की आर्थिक हालत ठीक करना था. नियुक्ति के समय उन्हें बताया गया था कि उन्हें 22,000रु. प्रतिमाह दिया जाएगा और साथ में ओवरटाइम वेतन भी. यह एकमात्र कारण था जिसकी वजह से इन युवाओं ने विस्ट्रॉन में काम करना स्वीकार किया था. 
  7. विस्ट्रोन प्रतिष्ठान में सिर्फ 2 शिफ्ट में काम होता है, 6.00 सुबह से 6.00 शाम तक की दिन की शिफ्ट और 6.00 शाम से 6.00 सुबह तक रात की शिफ्ट. कार्य आई फोन की असेम्बली का है और हर कर्मचारी को एक असेम्बली लाइन दी जाती है. कर्मचारियों को कुछ पिक-अप पाइंट से कैब सर्विस दी जाती है, ये वो जगहें होती हैं जहां विभिन्न गांवों के लोग जमा होते हैं. फैक्टरी की पहली शिफ्ट में पहुंचने के लिए कर्मचारियों को सुबह 4 बजे उठना होता है, और काम खत्म करने के बाद वो रात 8 बजे अपने घर पहुंचते हैं. 
  8. काम के हालात बहुत ही खराब हैं. हर कर्मचारी को 12 घंटे की शिफ्ट में काम करने को मजबूर किया जाता है और वो कौन सी शिफ्ट करना चाहते हैं इसमें उनकी कोई बात नहीं सुनी जाती. महिलाओं को नाइट शिफ्ट करवाई जाती थी. हर चार दिन काम करने के बाद मजदूरों को दो दिन का अवकाश दिया जाता था. मजदूरों की शिकायतों के निवारण का कोई प्रबंध नहीं था. वेतन की अनियमितता और कम करके वेतन मिलने के बारे में कई बार मजदूरों ने सवाल उठाए, लेकिन उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि मजदूरों को प्रतिमाह 22,000 रु. वेतन देने का वादा किया गया था, उन्हें इसके मुकाबले बहुत कम वेतन मिलता था जबकि वो बिना किसी अवकाश के ओवरटाइम भी करते थे. नवंबर माह का वेतन अभी उन्हें नहीं दिया गया था, जबकि वो इसके भुगतान की लगातार मांग कर रहे थे. मजदूरों ने एक और मुद्दा उठाया कि उनकी हाजिरी में लगातार गड़बड़ी की जाती थी ताकि उन्हें कम वेतन दिया जा सके. एक जाहिर पहलू कानूनी तौर पर मान्य नियत ओवरटाइम वेतन का भुगतान ना करना था और उनके खाते में आने वाला वेतन हर माह घट रहा था. फैक्टरी में, ना तो नियमित कर्मचारियों की और ना ही ठेका मजदूरों की कोई यूनियन है. असंगठित होने के बावजूद मजदूरों ने कई बार कंपनी के अधिकारियों तक अपनी शिकायतें पहुंचाईं, पर इनका कोई जवाब नहीं दिया गया. कोलार के डिप्यूटी कमिश्नर तक भी बात पहुंचाई गई जिसका नतीजा ये हुआ कि डीएम ने विस्ट्रॉन को बाध्यकारी 12 घंटे की शिफ्ट के बाबत पत्र लिखा, हालांकि किसी भी कर्मचारी के पास इस पत्र की कोई कॉपी नहीं है. 
  9. 12 दिसंबर 2020 को मजदूरों ने एक बार फिर एचआर और अन्य विस्ट्रॉन अधिकारियों से अपने वेतन की मांग की लेकिन उन्हें लौटा दिया गया. ऐसा लगता है कि ये घटना नाइट और डे शिफ्ट के बीच की है. साफ है कि मामला हाथ से निकल गया और कंपनी में कुछ तोड़-फोड़ हुई. कुछ मजदूरों का ये भी कहना था कि कुछ बाहर के लोग आ गए थे जिन्होंने तोड़-फोड़ की. 
  10. ये कहा जा रहा है कि लगभग 150 मजदूरों को गिरफ्तार किया गया है, हालांकि उनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी. फैक्टरी के ज्यादातर मजदूर प्रवासी थे और स्थानीय गरीब परिवारों के लोग थे, इसलिए उनके परिवारों को जानकारी देने की अपरिहार्यता है. जिन्हें गिरफ्तार किया गया है उन्हें बेगुनाही साबित करने का अधिकार है और उनके साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए. यहां मजदूरों में एक डर का माहौल भी है कि पुलिस रात को उनके घर आएगी फिर चाहे वो 12 दिसम्बर की घटना में शामिल हों या ना हों. कई मजदूरों ने अपने मोबाइल बंद कर लिए हैं और वो आपस में भी कोई बातचीत नहीं कर रहे. 
  11. इस घटना को लेकर राज्य सरकार का रवैया ऐसा रहा कि संपत्ति के नुकसान के लिए तो बहुत निंदा की गई लेकिन मजदूरों की दुर्दशा पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया. 12 दिसम्बर की घटनाएं मजदूरों की तरफ से बहुत ही हताशा व निराशा में किया गया कार्य था, वो असंगठित मजदूर जिन्हें शोषित किया गया, दबाया गया, और उनके पास अपनी शिकायतों की सुनवाई का कोई ज़रिया तक नहीं था. उन्हें वेतन नहीं दिया गया, जो वेतन दिया गया उसमें मनमानी कटौती की गई, मजदूरों को 12 घंटे काम करने पर मजबूर किया गया. ये दबाव की स्थिति इसलिए बनी कि मजदूरों की निराशाजनक स्थिति के दौरान ना तो राज्य सरकार और ना ही श्रम विभाग ने उनकी कोई सुध ली, ना तो ठेकेदारों ने और ना ही विस्ट्रोन प्रबंधन ने उनकी सुनवाई की जिसका नतीजा ये हिंसा थी. यहां सवाल ये उठता है कि आखिर दुनिया के सबसे महंगे मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी द्वारा इन मजदूरों का ये बर्बर दमन और शोषण क्यों होने दिया गया? इसके अलावा, आखिर राज्य सरकार और श्रम विभाग कैसे ये दावा कर सकते हैं कि उन्हें इस शोषण के बारे में कुछ पता ही नहीं था, जबकि पूरे औद्योगिक इलाके में ये बहुत आम जानकारी थी?
  12. प्रसंगवश, खबरों के अनुसार, एप्पल ये जांच कर रहा है कि क्या उसके ठेका निर्माता विस्ट्रॉन ने आई फोन मैन्युफैक्चरिंग प्रतिष्ठान में सप्लायर निर्देशों का उल्लंघन किया है. ये दिशा-निर्देश ये अधिदेश देते हैं कि थर्ड पार्टी स्टाफिंग एजेंसी मजदूरों को वेतन और सभी लाभों को समय पर भुगतान करेगी. ये भी खबर है कि एप्पल जांच करेगा कि क्या स्टाफ को दिए जाने वाले वेतन में कोई असमानता है और क्या मजदूरों को ओवरटाइम वेतन का भुगतान भी किया जा रहा है, और क्या ये भुगतान नियमानुसार किया जा रहा है. 
  13. मजदूरों को नियोक्ता से सीधा संदेश मिल रहा है कि वे आगे सूचना मिलने तक ड्यूटी पर ना आएं. जबकि एक तरफ मजदूरों को पुलिस कार्रवाई का डर है तो दूसरी तरफ उन्हें ये चिंता है कि उनकी नौकरी और नियत वेतन भी चला जाएगा. 

इन परिस्थितियों में राज्य सरकार, श्रम विभाग और पुलिस द्वारा बहुत कुछ किया जाना आवश्यक है, जिसे हम संक्षेप में नीचे प्रस्तुत कर रहे हैंः 

  • मजदूरी का भुगतान न करने और उसके भुगतान में देरीः श्रमिकों को समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है. वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 5 में कहा गया है कि 1000 से अधिक श्रमिकों के औद्योगिक प्रतिष्ठान के मामले में नियोजक प्रत्येक श्रमिक की मजदूरी का भुगतान हर महीने की 10वीं तारीख तक करेगा. हालांकि, जैसा कि देखा गया है कि श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं किया गया है और मजदूरी इसके चलते बकाया है. यह वेतन भुगतान के अधिनियम, 1936 का उल्लंघन है और यह आवश्यक है कि इस संबंध में कार्रवाई की जाए.
  • न्यूनतम मजदूरी और ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने में विफलताः सभी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने की आवश्यकता होती है. फैक्टरी अधिनियम की धारा 59 में ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त मजदूरी का प्रावधान है, और कहा गया है कि एक श्रमिक जहां किसी भी दिन में नौ घंटे से अधिक या किसी भी सप्ताह में अड़तालीस घंटे से अधिक काम करता है, वह ओवरटाइम घंटों के लिए, मजदूरी की अपनी साधारण दर के दोगुने की दर से मजदूरी का हकदार होगा. हालांकि, जैसा कि देखा जा सकता है कि श्रमिकों को नौ घंटे से अधिक काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, लेकिन उन्हें ओवरटाइम दर पर मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है. वास्तव में, श्रमिकों को ओवरटाइम काम करने के लिए मजबूर किया गया था, जो कि फैक्ट्रीज ऐक्ट के तहत अस्वीकार्य है. पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय (एआईआर 1982 एससी 1473), में कहा गया है किः ‘‘जहां एक व्यक्ति पारिश्रमिक के लिए दूसरे को श्रम या सेवाएं प्रदान करता है जो न्यूनतम मजदूरी से कम है, उसके द्वारा किया गया श्रम स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 23 के तहत ‘जबरन श्रम’ के दायरे में आता है. ऐसा व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत अपने मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिए अदालत में जाने का हकदार होगा और अदालत से न्यूनतम मजदूरी पर भुगतान का निर्देश देने के लिए मांग कर सकता है, ताकि उसके द्वारा प्रदान किया गया श्रम या सेवा में ‘जबरन श्रम’ के अनुच्छेद 23 के उल्लंघन को समाप्त किया जा सके.’’ यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य पर एक स्पष्ट सकारात्मक दायित्व है कि कोई भी श्रमिक जबरन श्रम की शर्तों के तहत काम करने के लिए मजबूर न हो. फैक्टरीज ऐक्ट, 1948 की धारा 9 जो निरीक्षकों की शक्तियों को निर्धारित करती है, निरीक्षकों को अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी कारखाने का निरीक्षण करने की इजाजत देती है. इसी प्रकार वेतन भुगतान अधिनियम की धारा 14 और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 की धारा 19 में निरीक्षकों की शक्तियां निर्धारित हैं. यह शक्ति इसके साथ ऐसे प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करने और कानून के विभिन्न प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्य तय करती है. हालांकि, यहां कोई निरीक्षण वास्तव मे नहीं किया गया है.
  • अनिवार्य 12 घंटे के काम का शिफ्टः श्रमिकों को अनिवार्य रूप से और बिना किसी विकल्प के हर दिन 12 घंटे की अवधि के लिए काम करना पड़ता है. ओवरटाइम काम को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, क्योंकि फैक्टरी अधिनियम, 1948 की धारा 51 के अनुसार केवल श्रमिक की सहमति से ही ओवरटाइम कराया जा सकता है. फिर भी, श्रमिकों को हर दिन 12 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया गया है.
  • विवरण प्रदर्शित करने में विफलताः कानून यह कहता है कि मजदूरी के संबंध में जानकारी प्रदर्शित होनी चाहिए. कर्नाटक न्यूनतम मजदूरी नियम, 1958 के नियम 23 और कर्नाटक भुगतान नियम, 1963 के नियम 7 और 9 के तहत यह आदेश दिया गया है कि संस्थान और कार्य-स्थल में विशिष्ट स्थानों पर अंग्रेजी और कन्नड़ में निम्नलिखित प्रदर्शित किए जाएंगेः

इसमें कार्यरत श्रमिकों के विभिन्न वर्गों को देय मजदूरी की दरें, कार्य के घंटे, मजदूरी की अवधि, दो माह की मजदूरी के भुगतान की तारीखें अग्रिम में और क्षेत्राधिकार वाले निरीक्षकों के नाम और पते जिससे श्रमिकों को निरीक्षक के विवरण के बारे में पता चल सके कि वे किससे शिकायत कर सकते हैं. हालांकि, न तो इस तरह का विवरण दिया गया है, और न ही राज्य ने उक्त कारखाने का निरीक्षण करने के लिए कदम उठाए थे, इस प्रकार श्रमिकों को पूरी तरह से अपने हाल पर छोड़ दिया गया. औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 और तत्संबंधी नियमों के तहत श्रमिकों के वैधानिक श्रम अधिकारों से संबंधित आवश्यक जानकारी का प्रदर्शन भी अनिवार्य है. 

  • शिकायतों को संबोधित करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहींः औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 3 में कहा गया है कि 100 से अधिक श्रमिकों वाले किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान में, एक वर्कर समिति होगी जिसमें नियोक्ताओं के प्रतिनिधि और संस्थान में लगे श्रमिकों के प्रतिनिधि रहेंगे. वर्क्स समिति नियोक्ता और श्रमिकों के बीच सौहार्द और अच्छे संबंधों को बनाने और संरक्षित करने के उपायों को बढ़ावा देगी. इसके अलावा, धारा 9 सी में कहा गया है कि 20 या उससे अधिक कामगारों को नियुक्त करने वाले प्रत्येक औद्योगिक प्रतिष्ठान में एक या अधिक शिकायत निवारण समिति होगी, जिसमें व्यक्तिगत शिकायतों से उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिए नियोक्ता और श्रमिकों के प्रतिनिधियों की समान संख्या होगी. हालांकि, इस औद्योगिक प्रतिष्ठान में इनमें से कोई भी संरचना दिखाई नहीं देती है.
  • नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाएंः हमें सूचित किया गया है कि महिलाओं को शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक 12 घंटे की नाइट शिफ्ट में काम कराया जाता है. दिनांक 20.11.2019 की अधिसूचना जो नाइट शिफ्ट मे महिलाओं से काम करवाने की इजाजत केवल निम्नलिखित शर्तों के अनुपालन पर ही देती है, जिनमें से किसी को भी पूरा नहीं किया गया हैः
  • सीसीटीवी कैमरों वाले वाहनों में सुरक्षा गार्ड के साथ निवास से कार्यस्थल तक परिवहन की सुविधा; स्वस्थ और स्वच्छ कार्यस्थितियां; महिला श्रमिक 10 से कम महिलाओं के समूह में कार्य मे शामिल नहीं होंगी; नाइट शिफ्ट में महिला कर्मचारियों की कुल संख्या कुल श्रमिकों से 2/3 से कम नहीं होगी; नाइट शिफ्ट के दौरान, पर्यवेक्षक, प्रभारी या अन्य पर्यवेक्षी कर्मचारियों में 1/3 से कम महिलाएं नहीं होंगी; नियोक्ता प्रति नाइट शिफ्ट में दो महिला वार्डन से कम नहीं नियुक्त करेगा जो विशेष कल्याण सहायकों के रूप में काम करेंगी; प्रवेश और निकास दोनों पर पर्याप्त महिला गार्ड सुरक्षा के लिए प्रदान की जाएंगी; बोर्डिंग और लॉजिंग, यदि कोई बनाया गया है, तो उसे विशेष रूप से महिलाओं के लिए सुरक्षित रखा जाएगा; न केवल कारखाने के अंदर बल्कि आसपास भी उचित प्रकाश व्यवस्था और सीसीटीवी कवरेज सुनिश्चित किया जाना चाहिए, सीसीटीवी फुटेज को कम से कम 45 दिनों की अवधि के लिए रखा जाएगा; जहां 100 से अधिक महिला श्रमिक शिफ्ट में लगी हुई हैं, आपातकालीन स्थिति जैसे चोट, यौन उत्पीड़न आदि जैसी आकस्मिक घटना के लिए एक अलग वाहन तैयार रखा जाएगा; यदि एक महिला को दिन की शिफ्ट से नाइट शिफ्ट में ट्रांसफर किया जाता है, या इसके विपरीत, तो महिलाओं को शिफ्ट परिवर्तन के बीच कम से कम 12 घंटे का आराम दिया जाना चाहिए; उपयुक्त चिकित्सा सुविधाएं और विश्राम कक्ष की पर्याप्त संख्या प्रदान की जाए, महिला कामगारों के लिए अलग कैंटीन की सुविधा का इंतजाम.
  • श्रमिक संगठित नहीं हैः यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि 10,000 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठान में श्रमिक संघ नहीं है. कानूनों और नियोक्ताओं व श्रमिकों के बीच संतुलन का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, यह नितांत आवश्यक है कि एक मजबूत ट्रेड यूनियन प्रणाली मौजूद हो. संगठित और एकजुट होने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (सी) के तहत संरक्षित है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसे पूर्ण अर्थ मे लागू किया जाए, यह आवश्यक है कि श्रम विभाग अपने श्रमिकों को संगठित होने के अधिकार के बारे में सूचित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए. अनुच्छेद 19 (1) (सी) और 21 के तहत श्रमिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में, इनको सही मे लागू करने में सभी बाधाओं को दूर करने के लिए राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व है. 
  • श्रम विभाग की विफलता की जांच करोः फैक्टरी अधिनियम, 1948 की धारा 9 जो निरीक्षकों की शक्तियों को निर्धारित करती है के तहत निरीक्षकों को अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी कारखाने का निरीक्षण करने का अधिकार होता है. इसी प्रकार वेतन भुगतान अधिनियम की धारा 14 और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 की धारा 19 में निरीक्षकों की शक्तियां निर्धारित हैं. यह शक्ति ऐसे प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करने और कानून के विभिन्न प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्य निर्धारित करती है. हालांकि, यहां कोई निरीक्षण नहीं किया गया है. श्रम विभाग पर एक सकारात्मक दायित्व और कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि इस तरह के निरीक्षण नियमित रूप से होते रहें जिन्हें पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया है. इस पर तुरंत पूछताछ की जानी चाहिए और आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए. 
  • कंपनी के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाईः यह स्पष्ट है कि विस्ट्रोन ने अनुचित श्रम प्रथाओं के तहत केवल अनुबंधित श्रमिकों के शोषण के इरादे से एक दिखावा अनुबंध प्रणाली शुरू कर रखी है. इसके बावजूद, यह संविदा श्रमिक (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 की धारा 21 और विशेष रूप से धारा 21 (4) के तहत अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा है, ताकि ठेकेदार द्वारा मजदूरी का भुगतान न किया जाए. ये सब श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन की एक झलक हैं और श्रम विभाग को विभिन्न श्रम कानूनों के उल्लंघन की जांच करने और उस के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
  • श्रमिकों के खिलाफ दर्ज मामलों और उनकी गिरफ्तारी के बारे मेंः बताया जा रहा है कि लगभग 150 श्रमिकों को गिरफ्तार किया गया है, साथ ही और श्रमिकों की गिरफ्तारी की संभावना है. यह ध्यान रखना आवश्यक है कि 12 दिसंबर 2020 की घटनाएं एक अत्यंत शोषणकारी परिस्थितियों के संदर्भ में हुई हैं. श्रम कानूनों के घोर उल्लंघन में काम करने की स्थिति जैसे कि अर्जित मजदूरी को पाने का गरीब मजदूरों का सबसे बुनियादी अधिकार भी शामिल है. इन परिस्थितियों में, जब श्रमिकों को पहले से ही एक बहुत ही कमजोर स्थिति में धकेल दिया गया है, राज्य सरकार को यह समझना चाहिए कि आपराधिक मामलों को दर्ज करना और श्रमिकों की गिरफ्तारी केवल उनकी स्थिति को और खराब करने का काम करेगी और इसका कोई अन्य उद्देश्य नहीं होगा. इसलिए, राज्य सरकार को श्रमिकों के खिलाफ सभी आरोपों को हटाने पर विचार करना चाहिए. 

अन्यथा भी, गिरफ्तार लोगों के संबंध में यह आवश्यक है कि राज्य सरकार सभी गिरफ्तार व्यक्तियों की सूची जारी करे और यह सुनिश्चित करे कि उनके परिवारों को सूचित किया गया है. 

संविधान का अनुच्छेद 22 कहता है कि गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को जितनी जल्दी हो सके बिना गिरफ्तारी के आधार को बताए और उसे कानूनी परामर्श के अधिकार से वंचित रख कर हिरासत में नहीं रखा जा सकता. 

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 50 (2) के तहत पुलिस को गिरफ्तारी के लिए गिरफ्तार हुए व्यक्ति द्वारा नामांकित व्यक्ति को गिरफ्तारी की सूचना देना अनिवार्य है. सूचना के पारित होने की एक प्रविष्टि को पुलिस स्टेशन में एक पुस्तक में ऐसे रूप में रखा जाएगा जैसा कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में निर्धारित किया गया है. 

सीआरपीसी की धारा 41 बी (बी) के अंतर्गत गिरफ्तारी करते समय प्रत्येक पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी का एक पत्र तैयार करेगा, जो - कम से कम एक गवाह द्वारा सत्यापित किया जाएगा, जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार का सदस्य है या एक सम्मानित व्यक्ति है उस स्थान का जहां गिरफ्तारी की गयी है; गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा प्रतिहस्ताक्षरितय और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सूचित करें, यदि पत्र उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा सत्यापित नहीं किया जाता है, कि उसके पास अपने रिश्तेदार या उसके दोस्त का नाम बताने का अधिकार है, जिसे उसकी गिरफ्तारी की सूचना दी जाए.

सीआरपीसी की धारा 41, 41-ए, 41-डी, 50-ए, 57 और 60-ए के तहत अन्य अनिवार्य शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा. 

अंत में हम 26 नवंबर 1945 को आयोजित 7वें श्रम सम्मेलन में डॉ. बी आर अंबेडकर के उन शब्दों को याद करते हैं, जहां उन्होंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्रम विधानों को बनाए रखने की अनिच्छा का पुरजोर विरोध किया और यूनियनों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया थाः “कैसे श्रमिकों को एक ऐसी अर्थव्यवस्था में जीने के मानकों को कम करने के लिए सहमत होने के लिए कहा जा सकता है जिसमें मुनाफा निजी व्यक्तियों को जाना है? ... हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और तुरंत करना चाहिए ताकि श्रम मानकों को कम करने को रोका जा सके. मेरा मानना है कि स्थिति को बेहतर बनाने के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं. सबसे पहले, रोजगार के घंटे कम करने की जरूरत है ताकि कई लोगों के लिए रोजगार प्रदान किया जा सके. दूसरे, मजदूरी तय करने के लिए उपयुक्त मशीनरी उपलब्ध कराना. रोजगार के साथ मजदूरी तय करने के लिए उपयुक्त मशीनरी की अनुपस्थिति अनिवार्य तौर पर श्रम मानकों को कमजोर करेगी, जिसे रोका जाना चाहिए. तीसरा, नियोक्ताओं और श्रमिकों को सामूहिक सौदेबाजी के लिए और उन्हें सामान्य समस्याओं के समाधान में मिलकर काम करने के लिये प्रेरित करना चाहिए. मेरे नजरिए और दृष्टिकोण में जिम्मेदार ट्रेड यूनियनों के बिना इसे अधिक प्रभावी ढंग से नहीं किया जा सकता है.’’ 

श्रमिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ औद्योगिक शांति सुनिश्चित करने के लिए ये कदम अत्यंत आवश्यक हैं.