‘कृषि बाजार कानूनों’ से किसानों का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा

‘‘कृषि बाजार कानून से किसानों का नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) को हटाना सरकारी स्कूल को हटाने जैसा हैं, प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने जैसा है. बिहार के पुराने कृषि उपज विपणन समिति सम्बन्धी कानून को पुनः बहाल करना चाहिए.’’

ये विचार पटना में कृषि विशेषज्ञ पी. साईनाथ ने दो अलग-अलग कार्यक्रमों में व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि ‘कृषि बाजार कानून’ से किसानों का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. इससे गरीब आदमी के लिए चल रही जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) भी प्रभावित होने वाली है. 

उन्होंने कहा कि सरकार कृषि उपज विपणन समितियों को सभी समस्याओं का जड़ बता रही है, जबकि ऐसा नहीं है. इन कानूनों के लागू होने के बाद एपीएमसी व्यवस्था वैसी ही रह जाएगी जैसे कि सरकारी स्कूल हैं. कहने को तो सरकारी स्कूल हैं, लेकिन इनका महत्व नहीं रहा. कहा कि कृषि उत्पाद बाजार समिति, कृषि के लिए लगभग वही है जो सरकारी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र के लिए है या फिर जो सरकारी अस्पताल स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए है. 

उन्होंने कहा कि किसान को उचित मूल्य एवं स्थिरता चाहिए, लेकिन सरकार जरूरी मुद्दों के बजाए जो भी थोड़ी बहुत व्यवस्था बनी हुई थी, उसे उजाड़ रही है. सरकार तीनों कानूनों को रद्द करे. एमएसपी और खरीद की गारंटी दे. फिर नए सिरे से कमेटी बना किसानों से चर्चा कर कानून लाए. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करे, जिसका खुद सरकार में आने से पहले इन्होंने वादा किया था. इसके लागू होने से किसानों को सही में लाभ होगा. 

उन्होंने कहा कि इन कानूनों के जरिये सरकार एपीएमसी मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म करना चाह रही है, जिसके चलते उन्हें ट्रेडर्स और बड़े कॉरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा. ये कानून किसानों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं प्रदान करते हैं. 

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के तहत कृषि राज्य का विषय है. केंद्र द्वारा इन कानूनों को बनाना असंवैधानिक है. यह मौजूदा कृषि संकट को और गहरा देगा. इन कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए. सरकार आग से खेल रही है. कृषि कानूनों में नीतिगत सुधार निश्चित तौर पर किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, न कि निजी कंपनियों के हित में. उन्होंने कहा कि संविधान का आर्टिकल 19 देश के लोगों को आवाज उठाने का अधिकार देता है. लेकिन कृषि कानून के ये ऐक्ट किसी भी तरह की कानूनी चुनौती देने से रोकते हैं. सरकार का दावा है कि एमएसपी व्यवस्था खत्म नहीं होगी तो वह इस पर कानून लाकर इसे सुनिश्चित क्यों नहीं करती? 

उन्होंने कहा कि केवल एमएसपी से काम नहीं चलने वाला है. खरीद की गारंटी भी देनी होगी. एमएसपी ज्यादा तय कर दिया और उसे खरीदने वाला ही कोई नहीं होगा तो उस एमएसपी का क्या फायदा होगा. सरकार ने दावा किया है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे, तो इस पर उन्हें विधेयक पारित करने से कौन रोक रहा है. इसका आशय ये होना चाहिए कि एमएसपी (स्वामीनाथन फार्मूला पर आधारित, जिसका भाजपा ने साल 2014 में वादा किया था) की गारंटी होगी. बड़े व्यापारी, कंपनियां या कोई भी खरीदार एमएसपी से कम दाम पर कृषि उत्पाद नहीं खरीदेंगे. साथ ही गारंटी के साथ किसानों से खरीदी होनी चाहिए. कर्ज माफी के बिना किसानों की कमाई 2032 तक भी दोगुनी नहीं हो सकती है. जिस तरह तीन कृषि कानूनों को थोपा गया है, उसके विपरीत एमएसपी और कर्ज माफी गारंटी वाले विधेयक को आसानी से पारित करवा सकती थी. सरकार का दावा है कि इन कृषि कानूनों का उद्देश्य कृषि बाजारों को खोलना है, ताकि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल सके. इसके विरोध में हरियाणा, पंजाब और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं. विशेषज्ञों ने कृषि सुधार के नाम पर लाए गए इन कानूनों को एपीएमसी मंडियों एवं एमएसपी व्यवस्था के लिए खतरा बताया है.

नेशन फॉर फार्मर्स के डा. गोपाल कृष्ण ने बताया कि कैसे बिहार के सन्दर्भ में एपीएमसी ऐक्ट को गैर वाजिब वजह से निरस्त किया गया और इस ऐक्ट को फिर से बहाल करने के महत्व पर जोर दिया. साल 2006 में बिहार सरकार ने एपीएमसी ऐक्ट को खत्म किया था. राज्य सरकार के मई 2020 के दस्तावेजों से पता चलता है कि बिहार में न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही खरीद व्यवस्था अच्छी है, जिसके कारण किसानों को कम दाम पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है. केंद्र सरकार द्वारा साल 2020 की खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा से पहले राज्य के कृषि सचिव डा. एन. सरवन कुमार ने 22 मई 2020 को भेजे अपने पत्र में बताया कि राज्य के उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए धान की एमएसपी 2,532 रुपये प्रति क्विंटल और मक्का की एमएसपी 2,526 रुपये प्रति क्विंटल तय की जानी चाहिए. गौरतलब है कि केंद्र ने धान की एमएसपी 1,868 रुपये और मक्का की एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय की है, जो बिहार सरकार के प्रस्ताव से काफी कम है. राज्य सरकार ने लिखित तौर पर स्वीकार किया है कि ‘बिहार प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य है और धान यहां की प्रमुख खरीफ फसल है. लेकिन मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, गोदाम और खरीद सुविधाएं न होने के कारण किसानों को कम मूल्य पर अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं और उन्हें लाभ नहीं मिलता है.’ इस प्रकार सरकार ने स्वयं ही यह स्वीकार किया है कि उनके यहां की खरीद व्यवस्था सही नहीं है. इससे पता चलता है कि बिहार सरकार द्वारा एपीएमसी कानून खत्म करने से फायदा की जगह नुकसान हुआ है. इसलिए पुराने कानून को फिर से बहाल करने का तर्क मजबूत होता है. ु