हाथरस आंदोलन 2012 के दिल्ली आंदोलन से भिन्न है
2012-13 में दिल्ली बस गैंगरेप की घटना के बाद सैकड़ों नवयुवा भारतवासी सड़कों पर उतर पड़े थे. उनके गुस्से और झुंझलाहट के बीच सामाजिक जागृति और संस्थागत बदलावों की संभावना भी उम्मीद की एक किरण बनी हुई थी. पहली बार बलात्कार की संस्कृति, पीड़िता को दोषी मानने और सुरक्षा के नाम पर महिलाओं की स्वायत्तता पर हमले को लेकर नारीवादी चिंताओं से समाज भी जुड़ता नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि एक लंबे समय बाद शासन यह मानने को बाध्य हो सकता है कि यौन हिंसा रोकने वाले मौजूदा कानूनों ने पीड़ितों के तमाम कटु अनुभवों को दरकिनार कर रखा है.