भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम अपील
(मद्रास हाईकोर्ट द्वारा प्रिकॉल के दो मजदूर साथियों मनीवनन और रामामूर्ति को दी गई आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ की गई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से ही इनकार कर दिया, जबकि इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रिकॉल प्रबंधन द्वारा दायर की गई एसएलपी पर मद्रास हाई कोर्ट द्वारा बरी किए गए कामरेडों में से 6 और सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट से बरी किए गए एक कामरेड को नोटिस जारी किया. इन दो मजदूर साथियों के लिए न्याय की मांग करते हुए, ऐक्टू सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस अपील के साथ ज्ञापन भेजेगा कि वह पुनः इन मजदूर साथियों की स्पेशल लीव पेटिशन की सुनवाई करंे. इस अपील पर ऐक्टू जनवरी में माह भर लंबा देशव्यापी एकजुटता हस्ताक्षर अभियान चलाएगा. सुप्रीम कोर्ट को दी जाने वाली अपील इस प्रकार है.)
संदर्भ: एसएलपी(सीआरएल) न0 4727/2017 पर सर्वोच्च न्यायालय का 13.11.2017 का आदेश
उपरोक्त मामला दिनांक 13.11.2017 को न्यायालय के सामने पेश हुआ था, और उसी दिन आजीवन कारावास के खिलाफ प्रिकाॅल के दो मजदूरों की अपील को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया गया था। यह अपील कोयम्बूटर, तमिलनाडु स्थित प्रिकाॅल कंपनी के दो मजदूरों ने अपनी आजीवन कारावास की सज़ा के खिलाफ दायर की थी। लेकिन उसी दिन इसी न्यायालय ने 7 मजदूरों को बरी किए जाने के खिलाफ दायर एसएलपी में नोटिस जारी करने का आदेश किया था। इस आदेश से समस्त मजदूर वर्ग आंदोलन को आघात लगा है।
दिनांक 19.01.2017 को मद्रास उच्च न्यायालय ने यह कहा था कि इस मामले में झूठी एफ.आई.आर. बनाई गई है, जिसे बाद में लिखा गया और उसमें घटना के बारे में प्रारंभिक जानकारी को दबा दिया गया। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इंसान झूठ बोल सकते हैं लेकिन विज्ञान झूठ नहीं बोलता, आगे यह भी कहा गया कि अगर घटना की सी.सी.टी.वी. फुटेज को ठीक से हासिल कर जांच की जाती और सेशन न्यायालय के सामने पेश किया जाता तो सच सामने आ सकता था। उपरोक्त भौतिक अंतर्विरोध के मद्देनजर, और उच्च न्यायालय द्वारा जो गंभीर संदेह व आपत्तियां जाहिर किए गए हैं उनके मद्देनज़र, सर्वोच्च न्यायालय को दो मजदूरों द्वारा अपने आजीवन कारावास के खिलाफ दायर की गई एसएलपी की सुनवाई और जांच करने का फैसला करना चाहिए था।
हम समझते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के ए.आई.आर. 1988 में दर्ज ए.आर. अंतुले मामले के फैसले के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अपने निहित अधिकार का प्रयोग करते हुए ऐसे मामलों की जांच और सुनवाई कर सकता है जहां किसी व्यक्ति के साथ न्यायालय द्वारा कुछ गलत हुआ हो। प्रिकाॅल मजदूरों की अपील के मामले में इन मजदूरों की सुनवाई को मना करके उनके साथ गलत किया गया है और हम सर्वोच्च न्यायालय से इन मजदूरों की एसएलपी की जांच और सुनवाई करके उनके जीवन के अधिकार की रक्षा करने की अपील करते हैं।