मैला ढोने की प्रथा खत्म करने की मांग पर बंगलौर में विशाल रैली

कर्नाटक में हाथ से मैला उठाने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) को खत्म करने के प्रति सरकार की उदासीनता के विरोध में ऐक्टू की अगुवाई में 7 फरवरी 2018 को बेंगलुरु में जोरदार प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शन में शामिल सफाई कामगारों का कहना था कि पिछले 10 वर्षों में मैला ढोने की प्रथा जारी रहने से 70 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से 15 से अधिक मौतें पिछले दो सालों में ग्रेटर बंगलौर में हुई हैं. इस अमानवीय प्रथा को न सिर्फ प्रतिबंधित किया गया है, बल्कि इसे गैर-कानूनी भी करार दिया गया है - इस बाबत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के कई फैसले आ चुके हैं; फिर भी यह प्रथा जारी है. कानून को लागू करने के लिए सरकार कोई कोशिश नहीं कर रही है जिससे इस काम को प्रोत्साहन मिल रहा है. सरकार को कई बार ज्ञापन दिए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई; इसीलिए अब सड़कों पर प्रतिवाद का रास्ता अपनाया गया है.

इस प्रतिवाद में शामिल होने के लिए लोग 11 बजे सुबह से ही टाउन हाॅल में जमा होने लगे. इनमें कॉलेज के छात्र, कार्यकर्ता, बीबीएमपी और बीडब्लूएसएसबी के ठेका मजदूर तथा अन्य लोग भी शामिल थे. वहां जन सभा को कर्नाटक जनोराग्य चालूवली की डा. अखिला वासन, कनारा बैंक एससी/एसटी कर्मचारी यूनियन के पुरुषोत्तम दास, कर्नाटक गारमेंट्स वर्कर्स यूनियन के सेबास्टियन देवराज, पीपुल्स डेमोक्रैटिक फोरम के प्रो. नागागेरे रमेश, जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय संश्रय एनएपीएम के प्रो. मंगालुरु विजय और सेंट जोसेफ कॉलेज के छात्र अभिषेक ने संबोधित किया.

बीबीएमपी गुटिग पौरकर्मिकार संगठने की महासचिव निर्मला ने वहां मौजूद लेागों को संबोधित करते हुए कहा कि यह प्रतिवाद मर्यादा की लड़ाई है. ऐसा क्यों है कि समाज में सिर्फ दलितों से ही दूसरों का मैला साफ करवाया जाता है, हमें इस बात पर विचार करना होगा. उन्होंने कहा कि जाति व्यवस्था ही मैला ढोने की प्रथा की जड़ में निहित है, इसीलिए हमें इस प्रथा को खत्म करने के लिए जातिवाद को खत्म करना होगा. बीडब्लूएसएसबी ठेका मजदूर यूनियन के सतीश ने बताया कि कैसे उन लोगों को दूसरों का मैला साफ करने को विवश किया जाता है. सफाई कर्मचारी आयोग के पास इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई गई है और आयोग ने इस पर कार्रवाई करने की सिफारिश भी की है, लेकिन सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. भाकपा-माले के राज्य सचिव क्लिफ्टन डी. रोजारियो ने कहा कि मैला ढोने वालों की पहचान करने और उनकी पुनव्र्यवस्था करने के मामले में सरकार काफी ढिलाई बरत रही है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस विभाग की भी इस मामले में मिलीभगत है, क्योंकि वह उन मामलों को सदोष मानवहत्या के बतौर नहीं, बल्कि सिर्फ उपेक्षा के मामले के बतौर दर्ज कर लेता है. उन्होंने कहा कि जो देश चंद्रमा और मंगल तक उपग्रह भेजने की टेक्नोलाॅजी विकसित कर लेता है, वह किसी इन्सान को शामिल किये बगैर नालों, मैनहोलों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने की तकनीक विकसित नहीं कर रहा है, यह शर्म की बात है. ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष एस. बालन ने कहा कि मुख्य मंत्री 70 लाख रुपये की हबलाॅट घड़ी पहन कर खुश होते हैं, लेकिन वे मैला ढोने की प्रथा के चलते 70 मजदूरों की हत्या को रोकने में बिल्कुल उदासीन हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ मौतें येदुरप्पा और कुमारस्वामी के शासन काल में भी हुई हैं और वे भी इस मामले में लापरवाह रहे हैं. राज्य की तीनों मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर संवेदनशील नहीं हैं और उनमें से किसी भी पार्टी ने इस प्रथा को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

बाद में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव से एक प्रतिनिधिमंडल मिला. उन्होंने धैर्य के साथ बातें सुनीं और पूछा कि क्या ठोस कदम उठाये जाने चाहिये. प्रतिवाद की मांगें इस प्रकार हैं: 1) मैला ढोने के काम में लगे सभी लोगों के पुनर्वास के लिए केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा बजट आवंटन किया जाए; 2) आइपीसी की धारा 304 (2) के तहत बीडब्लूएसएसबी, केयूडब्लूएस एंड डीबी इंजीनियरों, अपार्टमेंट मैनेजरों, मैनहोल सफाई ठेकादारों और अन्य वैसे सभी लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाए जो लोगों को मैला ढोने के लिए मजबूर करते हैं, उन्हें फौरन गिरफ्तार किया जाए; 3) मृतकों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा और सम्मानजनक रोजगार दिया जाए; 4) एक समिति का गठन किया जाए जिसमें बीडब्लूएसएसबी/यूडीडी/डीएमए और मैला ढोने वालों के बीच काम कर रही यूनियनों के प्रतिनिधि शामिल रहें - यही समिति मैला ढोने की प्रथा खत्म करने के लिए नियम-कानून और दिशानिर्देश तैयार करेगी; 5) ‘स्वच्छ भारत’ के तहत टाॅयलेट के निर्माण की गारंटी की जाए ताकि मैला ढोने का काम बंद हो सके; और 6) बीडब्लूएसएसबी एसटीपी में मैला ढुलवाने के काम को अविलंब बंद किया जाए.

वार्ता में प्रधान सचिव ने दो सप्ताह के अंदर अंतर-विभागीय बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर विचार करने का आश्वासन दिया. इस आश्वासन के आधार पर प्रतिवाद वापस लिया गया और यह भी फैसला लिया गया कि अगर दो सप्ताह के अंदर समस्या का समाधान नहीं किया जाता है तो प्रतिवाद फिर शुरू कर दिया जाएगा.