भाजपा सरकारें भ्रष्टाचारियों को बचाना और आलोचना का गला घोंटना बंद करें

भाजपा सरकारें भ्रष्टाचारियों को बचाना और आलोचना का गला घोंटना बंद करें

राजस्थान की भाजपा सरकार ने लोक सेवकों (जिनमें कार्यरत और अवकाश-प्राप्त सरकारी अधिकारी, मैजिस्ट्रेट और जज भी शामिल हैं) को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से बचाने के लिए ‘आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017’ नामक बिल विधान सभा में पेश किया है. इस बिल में प्रावधान है कि कोई दंडाधिकारी सरकार की स्वीकृति के बगैर छह महीने तक किसी लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का आदेश नहीं दे सकता है. इसमें मीडिया पर भी रोक लगाई गई है कि वह सरकार की स्वीकृति के बगैर - किसी लोकसेवक के खिलाफ किसी अपराध के आरोप की मौजूदगी के बारे में भी - कोई सूचना प्रकाशित नहीं कर सकता है. ऐसे आरोपों के बारे में कोई स्टोरी प्रकाशित करने पर, बिल के अनुसार, उसे दो वर्ष तक की कैद की सजा दी जा सकती है. लोक सेवकों के लिए अभयदान को और मजबूत बनाने तथा आलोचना का गला घोंटने का यह एक अभूतपूर्व प्रयास है.

केंद्र सरकार ने इस निरर्थक और काले बिल को ‘उत्तम और संतुलित’ बताते हुए इसका अनुमोदन कर दिया है. इसके पहले से ही भाजपा नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे के खिलाफ भ्रष्टाचार और काले धन को वैध बनाने के आरोपों को प्रकाशित करने वाले मीडिया को डराने-धमकाने और पोर्टल व अखबारों का गला घोंटने के लिए आपराधिक व नागरिक मानहानि का मुकदमे ठोंकने की साजिश रचते आ रहे थे. इसके अलावा, पत्रकारों को प्रधान मंत्री समेत भाजपा नेताओं के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े लोगों की ओर से जान मार देने की धमकियां मिल रही हैं. और अब, भ्रष्टाचारियों को अभूतपूर्व स्तर का अभयदान देने की कोशिश की जा रही है.

प्रधान मंत्री की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की शेखी पूरी तरह बेपरदा होती जा रही है, जब भाजपा सरकारें भ्रष्टाचारियों को बचाने तथा भ्रष्टाचार और अपराध के आरोपों को जनता के बीच सार्वजनिक होने से रोकने का खुल्लमखुल्ला शर्मनाक प्रयास कर रही हैं. मौजूदा कानूनों में ऐसे पर्याप्त प्रावधान हैं जो लोक-सेवकों को अपने कर्तव्य पालन के दौरान झूठे आरोपों से बचा सकते हैं, और सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में ऐसे बचावों की सीमा-रेखा भी निर्धारित कर रखी है. राजस्थान अध्यादेश और प्रस्तावित बिल, जो आवश्यक बचावों के तमाम दायरे को पार गया है, को व्यापक प्रतिवादों और कोर्ट में इस अध्यादेश को चुनौती देने के बाद अब विधान सभा की ‘सेलेक्ट’ समिति के पास समीक्षा के लिए भेज दिया गया है.

देश में दूसरी जगहों पर अपनी सरकारों के प्रति उठनेवाली आलोचनाओं और सवालों का गला घोंटने के भाजपा के प्रयास लगातार जारी हैं. भाजपा एक लोकप्रिय तमिल फिल्म ‘मर्सल’ से एक डायलॉग को हटवाने की कोशिश कर रही है, जिसमें जीएसटी और सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत के बारे में कुछ आलोचनात्मक बातें हैं; और तमिलनाडु के भाजपा नेताओं ने अपने खास सांप्रदायिक कदम के साथ उस अभिनेता की इसाई पहचान को इंगित करते हुए उसे बदनाम करने का प्रयास चला रखा है.

झारखंड में कोयली देवी की 11 वर्ष की बेटी संतोषी की भूख से मौत हो गई, क्योंकि ‘आधार’ से राशन कार्ड जुड़ा न होने के चलते उसके परिवार को राशन देने से इनकार कर दिया गया. और कोयली देवी पर हमला कर उसे उसके गांव से खदेड़ दिया गया, क्योंकि उसने यह कहने का साहस किया था कि उसकी बेटी भोजन मांगते-मांगते मर गई. इतना ही नहीं, उस गांव में एक एएनएम को अपनी नौकरी खोनी पड़ी, क्योंकि उसने इस बात की पुष्टि की थी कि जांच में संतोषी को रोगग्रस्त नहीं पाया गया था, जबकि झारखंड सरकार यह दावा कर रही है कि वह बच्ची मलेरिया की वजह से मरी है.

आज जब भ्रष्टाचार, आर्थिक गति-मंदी, बेरोजगारी और भूख से मौत के कलंक की भयावह हकीकत के सामने मोदी निजाम और अनेक भाजपा सरकारों के ‘अच्छे दिन’ के वादे बेनकाब हो गए हैं, तो इसकी खबर देने वालों की आवाज घोंटने और जांच-पड़ताल से लोक सेवकों को पूरी तरह बचा लेने के भाजपा सरकार के प्रयासों का मुकाबला करना होगा और इसे शिकस्त देनी होगी.