सीएमडब्लूयू ने कमर्शियल माइनिंग के सरकारी निर्णय के खिलाफ 16 अप्रैल को प्रतिवाद दिवस मनाया

1971 में कोकिंग कोल और 1972 में नॉन कोकिगं कोल का राष्ट्रीयकरण हुआ था. उस समय कोयला उत्खनन और विक्रय पर कोल इंडिया का एकाघिकार था और उस समय कुछ कैप्टिव माइन्स भी थीं. कुछ खदानें जरूरत के हिसाब से कुछ कम्पनियों के पास थीं पर उन्हें कोयला बेचने का अधिकार नहीं था. उत्पादित कोल को वे अपने स्टील प्लांट व पावर प्लांट में उपयोग करत थे. यूपीए सरकार के समय से आउटसोर्सिंग की नीति लायी गयी जो सिर्फ उत्पादन में थी, लेकिन बेचने का काम कोल इंडिया करती थी. आउटसोर्सिंग कम्पनियां शुरुआती दौर में कोयला उत्पादन नहीं करती थीं, वो सिर्फ मिट्टी-पत्थर निकलती थी. उस समय से ही सीएमडब्लूयू का मानना था कि कोयला उद्योग का निजीकरण का मार्ग खोला जा रहा है. अब भाजपा सरकार की केन्द्रीय कैबिनेट ने कोयला बेचने और उत्पादन का अधिकार निजी मालिकों को देने का निर्णय कर कोल इंडिया को कमजोर करने और कोयला उद्योग का पूरी तरह निजीकरण का रास्ता खोल दिया गया है. कितनी कुर्बानियों के बाद कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ था, उन कुर्बानियों को जाया किया जा रहा है और देश की सम्पदा को कॉरपोरेटों की लूट के लिये खोला जा रहा है.

जिस समय केन्द्रीय कैबिनेट ने कमर्शियल माइनिंग का निर्णय किया था, उस समय ही सीएमडब्लूयू ने कोयला उद्योग में सरकार के निर्णय के खिलाफ कोयला मंत्री और प्रधान मंत्री का पुतला दहन सभी कोलियरियों में चलाया. उस समय जेबीसीसीआई (मान्यताप्राप्त) यूनियनों द्वारा जिस तीखे विरोध की उम्मीद कोयला मजदूरों ने की थी, वो विरोध का स्तर सामने नहीं आया. फिर कुछ दिन बाद इन यूनियनों ने 16 अप्रैल को एक दिवसीय हड़ताल की घोषणा की. तैयारियाँ भी जोर शोर से शुरू हुईं, मजदूरों में हड़ताल के प्रति उत्साह भी था. 12 अप्रैल को कोयला मंत्री के साथ वार्ता विफल हो गयी. इसके पहले दिल्ली में हुई 1 अप्रैल की वार्ता विफल हो चुकी थी. इसी बीच कोल इंडिया स्टेंडर्डाइजेशन कमिटी के गठन की घोषणा की गयी. बिना किसी पूर्व जानकारी के कोयला सचिव के साथ 13 अप्रैल को देर रात तक चली वार्ता के दौरान एक ड्राफ्ट बनाया गया और उस ड्राफ्ट पर बीएमएस और एचएमएस दोनों ने हस्ताक्षर कर दिये और हड़ताल वापस ले ली. एटक और सीटू ने साइन नहीं किया पर बाद में एटक और सीटू ने भी हड़ताल वापस लेने की घोषणा कर दी. इंटक ने भी कोयला सचिव को लिखित हड़ताल वापसी की सूचना दे दी. उस दिन इन तीनों यूनियनों ने कमर्शियल माईनिंग विरोध दिवस मनाने का निर्णय किया. तीनों यूनियनों ने तर्क दिया कि व्यापक मजदूर एकता का सवाल है, दो यूनियनों ने हड़ताल वापसी पर हस्ताक्षर कर दिया तो इस परिस्थिति मे व्यापक एकता को ध्यान में रख कर हड़ताल संभव नहीं है, इसलिये हड़ताल वापस ले रहे हैं. ऐक्टू से संबद्ध सीएमडब्लूयू का मानना है कि यही बात उन दोनों यूनियनों ने क्यों नहीं सोची. सीएमडब्लूयू इस तरह की हरकतों का खुल कर विरोध करती है और एक गैर जेबीसीसीआई संगठन बनाने की जरूरत महसूस करती है. कोयला उद्योग में लड़ाकू यूनियनों को लेकर ये संगठन बनाया जा सकता है.

सीएमडब्लयू ने हड़ताल वापसी को सरकार और प्रबन्धन के सामने यूनियनों का आत्म समर्पण और कोयला उद्योग के मजदूरों के साथ धोखा माना है और इसके खिलाफ 16 अप्रैल को सरकार के कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ प्रतिवाद दिवस और 17 को जेबीसीसीआई के निर्णय के खिलाफ धिक्कार दिवस मनाया जिसे ईसीएल मुगमा एरिया, बीसीसीएल और सीसीएल के तमाम एरिया और कोलियरियों में संगठित किया गया. वार्ता के इस पूरे प्रकरण मे जो मिला वो ये कि कोयला के संयुक्त सचित की अध्यक्षता मे त्रिपक्षीय कमिटी बनायी गयी जिसमें सरकार, प्रबन्धन और यूनियन प्रतिनिधि रहेंगे. ये कमिटी कमर्शियल माइनिंग के नफा नुकसान का विश्लेषण करेगी, उसके बाद ही अंतिम निर्णय किया जायेगा. नतीजा क्या होगा ये सभी जानते है. इसी तरह 10वाँ वेतन समझौता और जेबीसीसीआई गठन तथा अन्य माँगो को लेकर तीन दिवसीय हड़ताल की घोषणा कोयला उद्योग में 2017 में की गयी थी और बाद में इसी तरह उसे वापस ले लिया गया था. उसका नतीजा यह निकला कि आज भी 10वाँ वेतन समझौता असमंजस की स्थिति में पड़ा हुआ है. लड़ाई से भागने का और हड़ताल वापसी का एक खामियाजा अभी-अभी सामने आया कि सरकार पेंशन स्कीम में संशोधन की बात करने लगी है ओर सीएमपीएफआई बोर्ड का कहना है कि कोल कर्मियों की पेंशन में 60 फीसदी की कटौती करनी होगी तभी इसे जारी रखा जा सकेगा. इसके पहले ग्रेच्युटी की सीमा 20 लाख जनवरी 2016 से लागू करने की बात थी, उसे 29 मार्च 2018 से लागू करके कोयला मजदूरों के साथ सरकार एक धोखा कर चुकी है. आंदोलन से भागने का यही नतीजा होगा. वैसे यूनियनों ने सरकार की इन नीतियों का विरोध किया है. सीएमडब्लूयू का मानना है कि बिना एक निर्णायक लड़ाई के कोयला उद्योग में सरकार की ओर से होने वाली छेड़-छाड़ को रोका नहीं जा सकता.    

कृष्णा सिंह