साम्प्रदायिक भीड़-हत्याएं मोदी राज की पहचान

‘गौ-हत्या’ की अफवाह पर उत्तर प्रदेश और झारखंड में साम्प्रदायिक हत्या-गिरोहों द्वारा हाल ही में की गई मुस्लिम पुरुषों की हत्याएं, आजकल जो इस किस्म की हत्याओं की बाढ़ सी आ गई है, उसकी ताजातरीन घटनाएं हैं. साम्प्रदायिक भीड़ हत्याओं की यह बाढ़ मोदी शासन की सबसे बढ़कर स्पष्ट दिखने वाली पहचान बन गई है.

उत्तर प्रदेश के हापुड़ में ‘गौ-रक्षा’ का बहाना बनाकर कासिम नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई. मरने से पहले पानी मांगते हुए कासिम का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें कासिम के इर्द गिर्द खड़ा गिरोह दावा कर रहा है कि वास्तव में उन्होंने एक बछड़े की हत्या को रोका है. एक अन्य वीडियो में उसी स्थान पर एक झुंड को वरिष्ठ नागरिक शमीउद्दीन पर हमला करते हुए दिखाया गया है, जिसमें उसको मजबूर किया जा रहा है कि वह गौ-हत्या की बात को स्वीकार करे. ये वीडियो उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बार-बार किए गये इस दावे की पोल खोल देते हैं कि यह घटना सड़क पर हुई आपस में तनातनी का नतीजा है, मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत से प्रेरित अपराध नहीं.

इन सबसे बढ़कर हिला देने वाले एक वीडियो में उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अधिकारी को वर्दी पहने हुए उस झुंड के साथ मजे से टहलते हुए दिखाया गया है जो कासिम के शव को इस तरह घसीट रहा है मानो कि वह कोई जानवर की मुर्दा देह हो. उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपने इस अधिकारी के ‘असंवेदनशील’ आचरण के लिये माफी मांगी है, मगर वह दावा कर रही है कि वहां कोई एम्बुलेन्स न होने की वजह से ही पुलिस ने भीड़ को लाश को घसीट कर ले जाने दिया, क्योंकि वे घायल व्यक्ति को तुरंत अस्पताल पहुंचा देना चाहते थे. इस किस्म की ‘क्षमा याचना’ हमारी अक्ल की खिल्ली उड़ाना है. पुलिसवालों को दी जाने वाली ट्रेनिंग का कौन सा शिष्टाचार पुलिस को यह सिखाता है कि गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को ले जाने का सही तरीका यही है कि उसके शरीर को जमीन पर घसीटते हुए ले जाया जाये?

हाल की एक और घटना योगी आदित्यनाथ सरकार के शासन में उत्तर प्रदेश पुलिस के साम्प्रदायिक चरित्र को दिखलाती है. बरेली में एक मांस विक्रेता सलीम कुरैशी (मुन्ना) को उत्तर प्रदेश पुलिस के दो कांस्टेबलों ने 14 जून 2018 को उसके घर में घुसकर पकड़ लिया और उस पर इल्जाम लगाया कि वह गौमांस बेचता है. पुलिसवाले सलीम को एक निजी शादीघर में ले गये और वहां उसकी बड़ी बेरहमी से पिटाई की. पिटाई में सलीम को जो घाव लगे थे उनकी वजह से 21 जून 2018 को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज (एम्स) में सलीम की मृत्यु हो गई. यह योगी की पुलिस द्वारा की गई हिरासत में हत्या के अलावा और कुछ नहीं है. यह घटना हमें याद दिला देती है कि कैसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्नाव में बलात्कार पीड़िता के पिता को गिरफ्तार करके उसकी हिरासत में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी.
इस बीच झारखंड के गोड्डा में दो मुस्लिम पुरुषों, सिराजुद्दीन अंसारी और मुर्तजा अंसारी को एक साम्प्रदायिक झुंड ने पीट-पीटकर मार डाला. यह झुंड दावा कर रहा था कि ये दोनों व्यक्ति एक ऐसे गिरोह के सदस्य थे जिसने भैंसें चुराई थीं. एक अन्य घटना में तौहीद अंसारी नामक एक अन्य मुस्लिम पुरुष को रामगढ़ में इस संदेह पर पीट-पीटकर मार डाला गया कि वह गोमांस ले जा रहा था. झारखंड पुलिस ने बदस्तूर इन तमाम मारे गये लोगों पर ही दोषारोप करते हुए उन पर गाय की तस्करी करने का इल्जाम लगाया है.

शासक पार्टी भाजपा की इन मामलों में जो प्रतिक्रिया रही है, उससे मोदी के भारत में साम्प्रदायिक भीड़-हत्यारों के प्रति ऐसा राजनीतिक समर्थन जाहिर होता है जो इन हत्यारों को प्रोत्साहन देता है, और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने घोषणा की है कि वह गोड्डा भीड़-हत्याकांड के चार आरोपियों के मुकदमे का सारा खर्च खुद उठायेंगे! आरएसएस और भाजपा द्वारा साम्प्रदायिक हत्यारों को दिया गया इस किस्म का समर्थन कोई नई बात नहीं है: भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों एवं विधायकों ने मुजफ्फरनगर दंगा और बलात्कार के मामलों में आरोपियों के प्रति इसी प्रकार का खुल्लमखुल्ला समर्थन जाहिर किया था; मोदी का एक कैबिनेट मंत्री दादरी हत्याकांड के एक आरोपी के दाह-संस्कार में शरीक हुआ था, जहां उस व्यक्ति के शव को भारत के राष्ट्रीय झंडे में लपेटा गया था; उदयपुर में एक मुस्लिम व्यक्ति को आग में जिंदा जला देने वाले अपराधी के समर्थन में संघी संगठनों द्वारा हिंसात्मक बंद का आह्वान किया गया था (जिंदा जलाने के आतंकवादी कृत्य का वीडियोटेप भी बनाया गया था); और यकीनन, कठुआ बलात्कार हत्याकांड के आरोपियों के बचाव में भाजपा विधायकों ने मार्च तक निकाला था.

इन भीड़-हत्याकांडों के शिकारों की भारी बहुसंख्या मुस्लिम और दलित रही है. इस जहरीले वातावरण में, जहां न सिर्फ सोशल मीडिया में बल्कि प्रभावशाली टेलीविजन चैनलों पर और अखबारों में संगठित रूप से भड़काऊ साम्प्रदायिक झूठी खबरें और उकसावा देने वाली बातें नियम के बतौर प्रचारित की जा रही हैं, भीड़ हत्याओं का बढ़ते जाना अनिवार्य है. समूचे देश में लोगों को ‘बच्चा-चोरी’ की अफवाहें फैलाकर भीड़-हत्या का शिकार बनाया जा रहा है.

वर्ष 2016 में मोदी ने गौ-गुंडों द्वारा की जा रही हत्याओं के बारे में देरी से जबान खोलते हुए ‘असली’ और ‘नकली’ गौरक्षकों के बीच फर्क बताया था. यह फर्क बेमानी है क्योंकि भाजपा के निर्वाचित प्रतिनिधि खुलेआम तथाकथित ‘नकली’ गौ-गुंडों को जायज ठहरा रहे हैं और उनको कानूनी एवं नैतिक समर्थन मुहैया कर रहे हैं.

जब भारत 2019 में होने वाले चुनाव के नजदीक पहुंच रहा है तो मोदी सरकार और भाजपा की विभिन्न राज्य सरकारें तमाम मोर्चों पर चरम विफलता और वादाखिलाफी के चलते साख खो चुकी हैं, तब यह स्पष्ट है कि भाजपा और आरएसएस सत्ता पर येन-केन-प्रकारेण अपना शिकंजा बरकरार रखने के लिये अंतिम हताश प्रयास के बतौर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा को तीव्र करने का सहारा ले रहे हैं. जनता के विभिन्न तबकों - किसानों, मजदूरों, महिलाओं, छात्रों व युवाओं, दलितों - के हर आंदोलन के लिये, अपने अधिकारों एवं अपने हित के मुद्दों के बारे में सरकार को जवाबदेह ठहराने के साथ-साथ, यह भी अनिवार्य है कि इन चालों का पर्दाफाश किया जाय और जनता को इन चालों के खिलाफ सतर्क किया जाय. भारत के हर गांव और कस्बे में भारत के लोगों को इन हत्यारे गिरोहों के खिलाफ संगठित होना होगा, भड़काऊ अफवाहों के खिलाफ एक-दूसरे को सतर्क करना होगा और इस किस्म की नफरत और हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध करने के लिये युवाओं को प्रशिक्षित करना होगा.