ग्रामीण डाक सेवकों का विलक्षण संघर्ष बनाम सरकारी तंत्र की बाजीगरी

भारतीय ट्रेड यूनियन आंदोलन, विशेषकर डाक कर्मचारियों के संघर्ष के इतिहास में, ग्रामीण डाक सेवकों की 22 मई 2018 से प्रारम्भ हुई 16 दिवसीय हड़ताल कई मायनों में विलक्षण और अद्वितीय रही. यों तो इससे लम्बी हड़तालों का इतिहास है. 1945 में डाक विभाग के डाकियों की हड़ताल 45 दिनों तक चली थी लेकिन इस हड़ताल का कोई तात्कालिक प्रत्यक्ष लाभ कर्मचारियों को मिला नहीं था. पर इस 16 दिवसीय हड़ताल की विशेषता यह रही कि हड़ताल में सदस्यों की प्रायः शत प्रतिशत भागीदारी रही और 16 दिनों तक चलने के बाद भी सदस्यों के मनोबल में रत्ती भर भी कमजोरी नहीं आई. और इस हड़ताल की सफलता यह रही कि सरकार द्वारा मांग मान लेने पर ही हड़ताल की वापसी की घोषणा की गई.

ग्रामीण डाक सेवक डाक विभाग के वे कर्मचारी हैं जिनका सरकार, चाहे वे जितने समय तक कार्य कर रहे हों, कार्यकाल पाँच घंटे तक सीमित मानती है. और इस आधार पर उन्हें, उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद भी सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं देती और इस आधार पर उन्हें पेंशन, कार्यबद्ध प्रोन्नति, उचित अवकाश इत्यादि कई सुविधाओं से वंचित रखती है. उनकी सेवाशर्तों और वेतन निर्धारण के मामले भी केन्द्रीय वेतन आयोग को विचार के लिये नहीं सौंपे जाते.

अतः सरकारी कर्मचारियों के लिये सातवें वेतन आयोग के गठन के बाद इन ग्रामीण डाक सेवकों के लिये डाक सेवा बोर्ड के अवकाश प्राप्त सदस्य (कार्मिक) श्री कमलेश चन्द्र की अध्यक्षता में एक सदस्यी वेतन समिति का गठन किया गया था. इस समिति ने अपना प्रतिवेदन दिनांक 24-11-2016 को ही सरकार को समर्पित कर दिया था. इस समिति ने पूर्ण अध्ययन के बाद कई सकारात्मक अनुशंसाएं दी. समिति ने ग्रामीण डाक कर्मचारियों के लिये साल में 30 दिन के अर्जित अवकाश के साथ-साथ मातृत्व अवकाश, आकस्मिक अवकाश की सिफारिश की और यह भी कहा कि यदि कर्मचारी साल में 30 दिन अवकाश नहीं लेता तो बचा हुआ अवकाश संचित रखा जाय और सेवा निवृत्ति के समय अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह इसका नकद भुगतान किया जाय. समिति ने यह सिफारिश भी की कि ग्रामीण डाक सेवकों को अवकाश के समय सेवा के हर वर्ष के लिये आधे महीने का वेतन ग्रैच्यूटी के रूप में दिया जाय जिसकी सीमा 5 लाख तक रखी जाय. पेंशन के लिये समिति ने सुझाव दिया कि वेतन का 10 प्रतिशत कर्मचारी और इतनी ही रकम सरकार दे और पेंशन फंड बनाया जाय. प्रोन्नति के विषय में समिति ने ग्रामीण डाक सेवकों के लिये भी 12, 24 और 36 वर्ष की सेवा के बाद कालबद्ध प्रोन्नतियों की अनुशंसा की. वेतन शाखा डाकपाल के लिये 4 घंटे के कार्य पर 12,000-29,380 रुपये और पाँच घंटे के कार्य पर 14,500-35,480 रुपये वेतनमान और सहायक शाखा डाकपाल (डाकिया, डाक वाहक आदि) के लिये 4 घंटे के कार्य पर 10,000-24,470 रुपये और पाँच घंटे के कार्य पर 12,000-29,380 रुपये वेतनमान की अनुशंसा की. समिति ने कई अन्य सुझाव भी दिये. समिति ने वेतन निर्धारण का सूत्र 2015 के दिसंबर के वेतन को 2.57 गुणनफल, सप्तम वेतन आयोग की अनुशंसा के सूत्र के अनुसार ही निर्धारित किया. वेतन निर्धारण की तिथि में, समिति ने सुझाव दिया कि यह तिथि समिति के प्रतिवेदन देने के बाद की कोई तिथि हो. समिति का इशारा था कि यह तिथि 01.01.2017 हो सकती है. वार्षिक बढ़ोतरी की समिति ने वेतन के 3 प्रतिशत दर की सिफारिश की.

दिनांक 06.06.2018 को जब संचार राज्य मंत्री श्री मनोज सिन्हा ने दोपहर के अपने प्रेस सम्मेलन में कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए घोषणा की कि दिनांक 01-01-2016 के बाद के समय के बकाये का नकद भुगतान किया जायेगा, तो ग्रामीण डाक सेवकों के बीच इस जीत से खुशी की लहर दौड़ गई, और साथ ही आम जनता ने भी खुशी जताई कि सरकार ने प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया. सरकार की इस घोषणा के बाद ही हड़ताल वापस हुई.

लेकिन जब दिनांक 25.06.2018, कैबिनेट के फैसले के 20 दिन बाद आदेश जारी हुए तो सरकारी तंत्र की बाजीगरी का पर्दाफाश हो गया कि कैसे यह तंत्र अपने निम्नवेतन भोगी कर्मचारियों के छोटे वेतन से भी पैसे खींच लेता है. आदेश कहता है कि ये फैसले दिनांक 01-07-2018 से लागू होंगे. कर्मचारियों के मुंह में लॉलीपॉप रखने के लिये कहा गया कि जनवरी 2016 से जून 2018 के बीच का बकाया 2016 की जनवरी के वेतन के 2.57 के गुणनफल और उस समय लिये गये वेतन का अन्तर में दिया जायेगा. इससे हर ग्रामीण डाकसेवक हकाबका रह गया क्योंकि इस तरह उनका वेतन क्योंकि इस तरह उनका वेतन समिति द्वारा तिथि प्रतिवेदन के करीब 19 महीने बाद का है, और कर्मचारियों  का वेतन काफी कम हो जाएगा. इसका प्रभाव सार्वकालिक (क्यूम्यूलेटिव) होगा. दिनांक 01.01.2017 को वेतन निर्धारण की तिथि और सरकार द्वारा वेतन निर्धारण की तिथि के बीच जी.डी.एस कर्मचारियों को कितनी हानि होगी, यह उदाहरण - 1 में दर्शाया गया है.

उदाहरण - 1

वेतन निर्धारण में बाजीगरी

डाक सेवक डाक वाहक/ मेल पिउन आदि. नया नामकरण - सहायक शाखा डाकपाल

पुराना वेतनमान- 2295-45-3645 नया वेतनमान- 10,000-24,470

मान लिया कि दिनांक 01.01.2017 को वेतन था 2835 और 01.01.2018 को 2880

कालम 9 में दिखाई गई राशि इस कर्मचारी की प्रतिमाह हानि होगी. अगले 10 वर्षों में यह राशि कितनी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

इस तरह के उदाहरण डाक वितरक या शाखा डाकपाल के वेतन निर्धारण में लिये जा सकते हैं. स्थानाभाव के कारण हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.

दूसरे उदाहरण में यह प्रदर्शित करने का प्रयास करेंगे कि बकाये की रकम के निर्धारण में कैसे हाथ की सफाई सरकारी तंत्र ने अपने निम्नतम वेतन भोगी कर्मचारी के साथ आजमाई है.

समिति ने 1 जनवरी 2017 और वेतन निर्धारण की तिथि के बीच की अवधि के बकाये के लिये कहा कि इस अवधि में समिति द्वारा अनुशंसित वेतन को कार्य समय के अनुपात पर मान कर बकाये का भुगतान किया जाए. उदाहरण के लिये यदि चार घंटे के कार्य के लिये अनुशंसित वेतन और कर्मचारी 3 घंटे 45 मिनट कार्य करता है तो उसके बकाया के भुगतान के लिये न्यूनतम वेतन 9375रू. होगा. और कार्य यदि अधिकतम 5 घंटे हो तो वेतन 14500रू. होगा. यदि पुराने वेतन का 2.57 से गुणनफल इस राशि से अधिक होता है तो वार्षिक वेतन की वृद्धि 3 प्रतिशत देकर वेतन की राशि का निर्धारण कर बकाये की राशि का भुगतान किया जायेगा. समिति ने कई उदाहरण दिये हैं जिनमें से एक उदाहरण हमने इस आदेशानुसार की गई राशि दिखाते हुए प्रतिमाह हानि की रकम दिखाने का प्रयास किया है. जुलाई ओर जनवरी में महंगाई भत्ता बढ़ने के साथ बकाया राशि घटती गई. किंतु सरकार ने बाजीगरी दिखाते हुए पुराने वेतन के 2.57 से गुणनफल से पहले प्राप्त कुल वेतन (डीए सहित) को घटाकर बकाये के भुगतान के आदेश जारी किये जिससे बकाये की राशि में ग्रामीण डाक सेवकों को काफी हानि उठानी पड़ी. देखें उदाहरण -2

समिति ने अनुशंसा की थी कि अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को सेवा के हर वर्ष के लिये आधे महीने का वेतन ग्रेच्युटी के रूप में दिया जायेगा जिसकी सीमा 5 लाख होगी. सरकार ने अधिकतम राशि काटकर 1.5 लाख कर दी.

लेकिन हद तब हो गई जब सरकार ने कमलेश चन्द्र जी.डी.एस.एस. समिति की मौलिक अनुशंसाओं पर चुप्पी साध ली. इस मामले में अवकाश, कालबद्ध प्रोन्नतियां के मुद्दे विशेष रूप से उद्धृत किये जा सकते हैं. कर्मचारी सोचते हैं कि समिति की अनुशंसाओं पर सरकार आदेश जारी करेगी और सरकार है कि इन मुद्दों पर चुपचाप बैठी हुई है.

समिति ने अनुशंसा की कि पेंशन निधि के लिये कर्मचारी अपने वेतन का 10 प्रतिशत देगा और उतनी ही राशि सरकार दे जिससे समुचित पेंशन की व्यवस्था हो सके. सरकार ने इसे अमूल रूप से संशोधित कर जारी किया कि कर्मचारी के वेतन से 300 रूपये लिये जायें और सरकार उतनी ही रकम देगी. समझना कठिन नहीं है कि इस राशि पर कितना पेंशन मिल सकेगी. क्या यह इन कर्मचारियों के साथ क्रूर मजाक नहीं है?

शायद ग्रामीण डाक सेवक ऐसे कर्मचारी हैं जिन पर वेतन समिति की सारी अनुशंसाओं में या तो कर्मचारियों के खिलाफ संशोधन किये गये हैं या फिर उनपर गौर ही नहीं किया गया. यह इस सरकार की कर्मचारी विरोधी नीति का जीता जागता नमूना है!

- आर.ए.पी. सिंह