पश्चिम बंगाल में चाय बागान मजदूरों की हड़ताल

पश्चिम बंगाल हो या असम, चाय बागान के दिहाड़ी मजदूर भूखों मर रहे हैं. भारतीय रेल के बाद चाय-बागान देश की दूसरे नंबर का सबसे ज्यादा श्रम-शक्ति का इस्तेमाल करने वाला उद्योग है, जहां लाखों मजदूरों को गुज़ारे लायक वेतन तक से वंचित किया जा रहा है, जिसका नतीजा है भुखमरी से मौत, और ये भयावह हालत सिर्फ बंद चाय-बागानों तक ही सीमित नहीं है.

चाय बागान मालिकों के लिए घाटे का सौदा है जैसी कोरी बकवास और संरचित न्यूनतम वेतन लागू करने की मजदूरों की मांग तक के खिलाफ मालिकों के लगातार हमलों को धता बताने के लिए, पश्चिम बंगाल में चाय बागान क्षेत्र में कार्यरत 29 ट्रेड यूनियनों ने एक साथ मिलकर 2014 में उत्तरी बंगाल के दोआर इलाके के चालसा में एक मजदूर सम्मेलन के जरिए एक ”संयुक्त फोरम” का गठन किया था.

जोशीले मजदूर एकताबद्ध आंदोलन के चलते ममता सरकार ने यूनियनों को यह आश्वासन दिया कि वो बंगाल के चाय उद्योग के 150 साल के इतिहास में पहली बार न्यूनतम वेतन लागू करेगी और 20 फरवरी 2015 को इस पर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसी तरह का विक्षोभ असम के बागानों में भी देखा गया.

पिछले साढ़े तीन सालों में, संयुक्त फोरम ने अपने संयुक्त जन आंदोलनों से बंगाल के साढ़े चार लाख मजदूरों का विश्वास और सम्मान कमाया है. लेकिन न्यूनतम वेतन, पूर्व में उन्हें वेतन के हिस्से के तौर पर मिलने वाले कानूनी राशन की नगद कीमत को लागू करने, स्थाई मजदूरों के लिए रिहायशी भूभाग, बंद पड़े बागानों को खोलने और स्थाई मजदूरों की वर्तमान 58 साल की रिटायरमेंट आयु को बढ़ाकर 60 साल करने जैसी उनकी मांगें राज्य सरकार और बागान मालिकों के बीच पर्दे के पीछे होने वाले सौदों की वजह से बस सपना बनी रह गईं.

राज्य के श्रम निदेशालय ने आखिरकार 6 अगस्त को 172 रु. की राशि को न्यूनतम वेतन के तौर पर प्रस्तावित किया, लेकिन न्यूनतम वेतन की बुनियादी गणनाओं को दरकिनार कर दिया गया. उन्होंने औद्योगिक मजदूरों के मूल्य सूचकांक पर विचार ही नहीं किया, संतुलित खाद्य तालिका के मूल्य, ईंधन और बिजली की नगदी के तौर पर मूल्य जिसका 20 प्रतिशत भार होता है और इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और बुढ़ापे का प्रावधान आदि जिनका भार 25 प्रतिशत होता है नहीं जोड़ा गया, ताकि मालिकों के अतिशय मुनाफे के अनुपात को बनाए रखा जा सके. संयुक्त फोरम की घटक यूनियनों ने श्रम सचिव के सामने अपनी सुविचारित गणनाओं को रखा ताकि बातचीत जारी रखी जा सके. लेकिन श्रम सचिव एकतरफा फैसला करके इस बातचीत से अलग हो गये और त्रिपक्षीय बातचीत को खत्म कर दिया.

संयुक्त फोरम (जिसका ऐक्टू से संबद्ध तराई संग्रामी चाय श्रमिक यूनियन एक घटक है) ने बंगाल के चाय उद्योग में 7-8-9 अगस्त 2018 को तीन दिन की हड़ताल, और पहाड़ और मैदान दोनों के ही चाय बागान के मजदूरों को सिलिगुड़ी में ममता के लघु सचिवालय (उत्तोरकन्या) तक लांग मार्च का आहृान किया.

9 अगस्त को, थोरबू, तिंगलिंग और मिरिक पहाड़ी के आसपास के पांच अन्य बागानों में सैकड़ों चाय बागान मजदूरों ने हड़ताल कर दी और सिलीगुड़ी की तरफ लांग मार्च शुरु किया. जब वे सोनादा बाजार पहुंचे तो वहां स्थानीय ओ.सी. के अंतर्गत भारी पुलिस बल ने उनका रास्ता रोक लिया. मजदूर और ट्रेड यूनियन नेता सड़क पर ही बैठ गए और पुलिस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. बाद में पुलिस प्रशासन ने संयुक्त फोरम के 11 नेताओं पर गैर-जमानती धाराएं थोप दीं.

हड़ताल को बीच में ही रोक देने की कोशिश करते हुये इतने विशाल और अभूतपूर्व मजदूर मार्च को पुलिस और प्रशासन ने बड़ी मशक्कत से 48 विभिन्न जगहों पर रोका. लेकिन निडर और अविचलित हड़ताली आगे बढ़ते रहे. पर्वतीय बागानों में भी निर्मित चाय के डिस्पैच को रोक दिया गया.

इन बातों से गुस्साए राज्य के श्रम मंत्री ने 16 अगस्त को सिर्फ मालिकों और कुछ सत्ताधारी पार्टी की यूनियनों के नेताओं के साथ एक आपातकालीन बैठक बुलाई. इस बैठक में जिसमें कुछ मालिकों के नुमाइंदे थे और कुछ ऐसे यूनियन के नेता थे जो वैसे भी सरकारी बात को ही मानते हैं, श्रम मंत्री ने एकतरफा अंतरिम राहत की घोषणा कर दी, जिसमें सितम्बर के महीने से 10रु. की राशि थी और अक्तूबर 2018 के महीने से 7 रु. की अतिरिक्त राशि मिलने वाली थी, इससे चाय पत्ती चुनने वालों के वेतन में साल के अंत में सिर्फ 176 रु. की थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई.

अपनी 18 अगस्त को सिलीगुड़ी में हुई बैठक में संयुक्त फोरम ने हालात का जायजा लिया. नेतृत्व की इस बैठक में राज्य के चाय बागान मजदूरों को सलाम पेश किया गया जिन्होंने भारी संख्या में हड़ताल में हिस्सेदारी की थी, और न्यूनतम वेतन को फौरन निश्चित करने और उसे लागू कराए जाने की मांग की थी. संयुक्त फोरम की घटक यूनियनों ने एकमत से हड़ताली मजदूरों को धमकाने के लिए भारी पुलिस बल लगाने के कदम का जोरदार विरोध किया. उन्होंने जोरबंगला पुलिस द्वारा स्वतः संज्ञान से यूनियन नेताओं के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों की भी भर्त्सना की. उन्होंने एमआईसी, श्रम विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अंतरिम घोषणा का जायजा लिया, और सरकार के न्यूनतम वेतन लागू करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बचने के लिए इस कदम को चुनने का भी विरोध किया. इस तरह किसी अंतरिम घोषणा के करने से जाहिर है बहुत ही अव्यवस्था फैलेगी और राज्य विभिन्न बागानों में वेतन भी भिन्न होगा, जिससे औद्योगिक मुद्दे का कोई कानूनी समाधान नहीं निकलेगा. अगर राज्य सरकार 23 अगस्त को होने वाली न्यूनतम वेतन सलाहकार कमेटी के 11वें दौर की मीटिंग में बंगाल के संघर्षरत मजदूरों के लिए संशोधित न्यूनतम वेतन निश्चित नहीं करती है तो अगस्त के अंतिम हफ्ते में संयुक्त फोरम द्वारा इस आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा.

- अभिजीत मजुमदार