न्यूनतम मजदूरी पर विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट मोदी सरकार का मजदूरों की मेहनत पर डाका

मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा नियुक्त न्यूनतम मजदूरी पर विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट मजदूरों की मेहनत पर डाका है, मजदूर वर्ग पर हमलों का जारी रूप है.

विशेषज्ञ कमेटी ने राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के नाम पर अकुशल मजदूर के लिये 8,892रू. से लेकर 11,622रू. प्रति माह की मजदूरी की सिफारिश की है जो कि 7वें वेतन आयोग की अनुशंसा और इसी आधार पर संयुक्त ट्रेड यूनियन आंदोलन द्वारा की गई 18,000रू. प्रतिमाह की मांग से कहीं नीचे है. यहां तक कि, वेतन आयोग द्वारा अनुशंसित न्यूनतम मजदूरी 1 जनवरी 2016 से लागू है, जबकि विशेषज्ञ कमेटी द्वारा अनुशंसित मजदूरी दो साल बाद यानी 1 जुलाई 2018 से लागू मानी जायेगी. यही नहीं, दिल्ली-एनसीआर जैसे उच्च आय वाले क्षेत्र में कमेटी ने न्यूनतम मजदूरी 11,622रू. तय की है, जबकि खुद दिल्ली सरकार ने राज्य के न्यूनतम मजदूरी बोर्ड की अनुशंसा पर न्यूनतम मजदूरी 14,000रू. से अधिक तय की है. अगर पहले से तय वैज्ञानिक पद्धति को आधार बनाया जाए तो एक परिवार की तीन इकाई पर भी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आज यह न्यूनतम मजदूरी 23,000रू. से अधिक होती है, जबकि कमेटी का कहना है कि उसने 3.6 इकाई को आधार बनाया है. ऐसे में कमेटी की सिफारिश समझ से परे है और मजदूरों के श्रम के साथ धोखाधड़ी है.

साफ है, ट्रेड यूनियन आंदोलन विशेषज्ञ कमेटी की न्यूनतम मजदूरी से संबंधित सिफारिशों को नकारता है.