मोदी शासन-2 के हमलों का पुरजोर विरोध करें-ऐक्टू द्वारा आहूत 9 अगस्त से 15 दिनों के अभियान को मजदूरों के व्यापक हिस्सों तक ले जायें

पांच साल तक विनाशकारी बने रहे और व्यवस्थित एवं निर्मम रूप में संघ ब्रिगेड के फासीवादी एजेन्डा को थोपने वाले मोदी राज ने और भी अधिक बढ़ी हुई ताकत के साथ सत्ता में वापसी के बाद, बिना समय बर्बाद किए, अपने कॉरपोरेट-परस्त एजेंडा को जारी रखते हुए मजदूर वर्ग पर हमले तेज कर दिए हैं. मोदी शासन अपने कॉरपोरेट-परस्त एजेंडा को आगे बढ़ाने की इतनी जल्दी में है कि उसने संसद के पहले सत्र में ही श्रम कानूनों के कोडीकरण संबंधी बिलों को संसद में लाना एवं पास कराना शुरू कर दिया है. शुरू करने के लिये, उसने वेतन संबंधी चार कानूनों को खत्म कर वेतन कोड बिल संसद के दोनों सदनों में पास करवा दिया है और 13 कानूनों को खत्म कर पेशागत (कार्यस्थल) सुरक्षा, स्वास्थ्य कोड बिल संसद में पेश कर दिया है. साथ ही, कुख्यात मोटर वाहन बिल को भी संसद में पारित करा दिया है.

10 जुलाई 2019 को अपने प्रेस सम्मेलन में श्रम मंत्री ने राष्ट्रीय फ्लोर लेवल न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये प्रति दिन (4628 रुपये प्रति माह 26 दिनों के लिए) की घोषणा की, जो यहां तक कि तथाकथित न्यूनतम वेतन विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों (जिनका ट्रेड यूनियन आंदोलन द्वारा विरोध किया गया है) से भी बहुत कम है जो 375 रुपये से लेकर 447 रुपये प्रति दिन (9750 से 11,622 रुपये प्रति माह) तय किया गया था. 

दूसरी तरफ, 72 सार्वजनिक उपक्रमों को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिये गये हैं (तत्काल प्रभाव से 42 के लिए) और इस तरह अंततः सार्वजनिक उपक्रमों को उनकी जमीन सहित कॉरपोरेटों के हवाले करने का रास्ता साफ कर दिया है. कॉरपोरेटीकरण के माध्यम से रेलवे के पूर्ण निजीकरण और उसे बेचने के लिए 100-दिवसीय ऐक्शन प्लान की घोषणा की जा चुकी है, और साथ ही आर्डनेंस फैक्टरियों के भी कॉरपोरेटीकरण का फरमान जारी कर दिया गया है.

इसी सत्र में मोदी सरकार ने आरटीआई, यूएपीए और एनआईए कानूनों में संशोधनों को भी संसद से मंजूरी दिला दी है. जहां, जनता को सूचना का अधिकार देने वाले और लाखों लोगों द्वारा हर वर्ष इस अधिकार का इस्तेमाल किये जाने वाले आरटीआई कानून को नष्ट  करने वाले संशोधन पास करवा दिये गये, वहीं जनता के असहमति व विरोध जताने के अधिकारों का दमन करने वाले यूआईपीए और एनआईए में संशोधनों को पास करवा कर उन्हें और अधिक दमनकारी बना दिया गया है. इस तरह, अपनी नई और विराट ताकत के बलबूते अपने पहले संसद सत्र में ही मोदी सरकार ने अपने इच्छित, आगे बढ़ाये जा रहे तमाम कदमों को पास करा दिया है, और इसमें कांग्रेस ने सीधे या फिर छिपे तौर पर मदद की. 

दूसरी तरफ, मोदी शासन-2, सांप्रदायिक विभाजन, नफरत और भीड़-हत्या के अपने एजेंडा के साथ और अधिक आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहा है जिसका सीधा मकसद संघर्षरत मेहनतकश अवाम, मजदूर वर्ग की वर्गीय चेतना व वर्गीय एकता में सांप्रदायिक आधार पर दरार डालना है. कुल मिलाकर देश में एक हिंदुत्ववादी-फासीवादी राज कायम करने के अपने एजेंडा पर मोदी शासन-2 और भी तेजी से आगे बढ़ रहा है.

लेकिन, मोदी के दुबारा सत्ता में आये दो महीने पूरे होते-होते मजदूरों का प्रतिरोध शुरू हो गया है. रेलवे के पूर्ण निजीकरण के लिए 100-दिवसीय ऐक्शन प्लान की घोषणा होते ही रेलवे कर्मचारियों खासकर उत्पादन इकाइयों के कर्मचारियों के जबरदस्त आंदोलन शुरू हो गये हैं, और स्थानीय जनता के समर्थन ने उन्हें और अधिक मजबूती दे दी है. आर्डनेंस फैक्टरियों के कॉरपोरेटीकरण के फैसले के खिलाफ इस सेक्टर के कर्मचारियों ने 20 अगस्त 2019 से 30 दिनों की हड़ताल का आह्वान किया है. मोदी सरकार के मौजूदा मजदूर-विरोधी कदमों के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 2 अगस्त को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस संगठित किया गया. प्रतिरोध की शुरूआत हो चुकी है, अब इसे और अधिक तेज करने की जरूरत समय की मांग है. इसी क्रम में ऐक्टू ने 100-दिवसीय ऐक्शन प्लान के खिलाफ 25 जुलाई 2019 को अखिल भारतीय विरोध दिवस संगठित किया. और अब ऐक्टू ने मोदी शासन-2 के कॉरपोरेट-परस्त व मजदूर-विरोधी, सांप्रदायिक और तानाशाही थोपने वाले एजेंडा का पर्दाफाश करने और उसके खिलाफ प्रतिरोध मजबूत करने के लिये 9 अगस्त (भारत छोड़ो दिवस) से 25 अगस्त तक का 15 दिनों का देशव्यापी अभियान का आह्वान किया है. आईए, इस अभियान को मजदूरों के व्यापकतम हिस्सों तक ले जा कर प्रतिरोध की लहर को मजबूत बनायें.