मजदूरों और रैयतों की एकता के सामने झुका डीवीसी प्रबंधन

बांझेडीह पावर प्लांट कोडरमा (झारखंड) के लिए अधिगृहीत भूमि के बदले रैयतों को मेंटेनेंस में नौकरी देने के मामले में डीवीसी प्रबंधन हमेशा किसी ना किसी बहाने मामले को टालते रही है. रैयातों को कागजी खानापूरी की जाल में और प्लांट में कार्यरत मजदूरों को विभिन्न तरीकों से उलझा रखने की साजिश करती रही है. स्थानीय सांसद और विधायक मजदूरों और रैयतों के बजाय प्रबंधन के पक्ष में हमेशा तरफदारी करते रहे हैं. इस बार यह पहला मौका था जब स्थानीय विधायक-सांसद की चुप्पी और असहयोग के बावजूद मजदूर यूनियन और रैयतों की बेमिसाल एकता के सामने डीवीसी प्रबंधन को झुकना पड़ा. 

बाझेडीह पावर प्लांट के लिए 32 गांवों की जमीन अधिग्रहीत की गई है, जिसमें 1586 परिवार किसान विस्थापन से प्रभावित हुए हैं. प्लांट निर्माण के लिए सभी रैयतों की जमीन वर्ष 2006-2007 में अधिग्रहीत की गई थी. वर्ष 2008 में इस पावर प्लांट का शिलान्यास किया गया जिसका विधिवत उद्घाटन वर्ष 2012 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री के द्वारा की गई. उद्घाटन के शुरुआती दौर में लगभग एक सौ रैयतों को काम में लगाया गया, सभी मजदूर फोर्थ ग्रेड में काम में लगे. इसके बाद अबतक लैंड लूजर (जमीन खोने वाले) सूची सीरियल नंबर 1 से 250 के बीच छूटे मजदूरों को काम पर लगाने की प्रक्रिया जारी है! हाल के दिनों में डीवीसी प्रबंधन ने बांझेडीह पावर प्लांट में प्रदूषण कंट्रोल के लिए एक प्लांट बनाने की योजना बनाई थी. जिसमें ढाई सौ से 300 मजदूर जो काम से वंचित रह गए थे उन्हें ही काम में लगाने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई. डीवीसी प्रबंधन ने एक ऐसे चक्रव्यूह की साजिश रची कि मजदूर काम पर लग भी जाएं और झटके से एक समय के बाद वे स्वतः काम से बाहर भी हो जाएंगे. इसके लिए प्रबंधन ने रोजगार के लिए एक ऐसी सेवा शर्त नियमावली तैयार की जिसमें साफ तौर पर आवेदन में उल्लेखित था कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाए जा रहे प्लांट में चयनित कंपनी के अंतर्गत सब-कॉंटेªक्टरों के अधीनस्थ ही विस्थापित परिवारों के मजदूरों को काम करना होगा. सभी परिवारों को यह लिखित समझौता करना था कि जब ठेकेदारों का काम खत्म हो जाए तो आगे काम के लिए मजदूर दावा नहीं कर सकते हैं. आवेदन में अपनी जमीन का कागजी दस्तावेज जमा करने के समय यह भी लिखकर देने का दबाव बनाया गया कि सब ठेकेदारो के अधीन ही काम करेंगे और लोग एएमसी और एआरसी के मेंटेनेंस जॉब के लिए दावा नहीं करेंगे. साथ ही यह भी एग्रीमेंट कराया जा रहा था की लैंड लूजर सूची में शामिल विस्थापित परिवारों के सदस्य या मजदूर उनके विरुद्ध दावा या शिकायत करेंगे तो उन्हें काम से बाहर कर दिया जाएगा. काम में लापरवाही या गलती पाए जाने पर बिना किसी सूचना के काम से हटा दिए जाएंगे. 

इस बात की भनक जब ऐक्टू से जुड़े झारखंड जनरल मजदूर यूनियन के नेताओं को लगी तो विस्थापित परिवारों को इस तरह का गलत समझौता करने से मना किया. विस्थापित परिवारों ने यूनियन नेताओं पर पूर्ण भरोसा जताते हुए आंदोलन का नेतृत्व करने को कहा. ऐक्टू जिला संयोजक सह झारखंड जनरल मजदूर यूनियन के सचिव विजय पासवान, यूनियन अध्यक्ष राजेंद्र यादव, आदि के नेतृत्व में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया गया. विस्थापित परिवारों के बीच जागरूकता और मजदूरों को संभावित खतरे की साजिश के खिलाफ अभियान चलाते हुए प्रबंधन को एक मांग पत्र दिया गया. झारखंड जनरल मजदूर यूनियन के नेताओं ने साफ लहजे में कहा कि प्रबंधन के मसौदे से रैयत और मजदूर कोई भी सहमत नहीं है. यूनियन ने प्रबंधन को चेतावनी दी कि एक सप्ताह के भीतर यह प्रस्ताव वापस नहीं लिया गया तो मजदूर बड़े आंदोलन में जाएंगे. मजदूरों का मूड भांपकर प्रबंधन फिलहाल कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती और गत 9 सितंबर 2020 को प्रबंधन, यूनियन और विस्थापितों के बीच एक सफल वार्ता हुई, जिसमें मजदूरों और रैयतों की बेमिसाल एकता के सामने प्रबंधन को अंततः झुकना पड़ा. सर्वसम्मति से निर्णय हुआ की प्रबंधन अब ऐसे कोई समझौता पत्र में हस्ताक्षर नहीं कराएगा. जो बांड भरकर पूर्व में जमा कराया गया था उसे भी निरस्त कर दिया गया. वार्ता में यह भी तय हुआ कि अब नए सिरे से काम में लगाए जा रहे मजदूर भी एएमसी और एआरसी के मेंटेनेंस काम में लगेंगे और ये स्थाई तौर पर कार्यरत रहेंगे. इस समझौते से आसपास के विस्थापित गांवों में अच्छा प्रभाव पड़ा है और दलालों और बिचैलियों को एक बार फिर झटका लगा है.