भारत को विनाशकारी मोदीशाही के चुंगल से मुक्त करें!

26 नवंबर की अखिल भारतीय आम हड़ताल को सफल बनाएं!

मोदी सरकार द्वारा बिना किसी योजना के, रातों-रात थोपे गये देशव्यापी लॅाकडाउन की मार से मजदूर आज तक उबर नहीं पाये हैं. करोड़ों प्रवासी मजदूरों को अपमान और बदहाली की हालत में सड़ने, रेल की पटरियों और सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया, और सैकड़ों मारे गये. जैसा झूठ आम जनता से मोदी सरकार पिछले 6 सालों से बोल रही है- 2 करोड़ नौकरियां हर साल, अच्छे दिन, आदि- वही झूठ ‘लॉकडाउन वेतन’ देने का वादा भी निकला. कोई कारगर राहत तो दी नहीं, रोजी-रोटी भी छीन ली. अपनी जान जोखिम में डाल कर महामारी से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मी और खासकर सबसे निचले स्तर के फ्रंट लाइन कर्मी जैसे आशा, आंगनबाड़ी और मिड-डे मील कर्मी, सफाई कर्मी आदि सरकार की घोर, आपराधिक अनदेखी का शिकार बने, सिवाय ताली और थाली बजाने के नाटक के. छंटनी, बेरोजगारी, बदहाली, मौत - देश के करोड़ों मजदूरों, आम लोगों को ही कोरोना महामारी और क्रूर लॉकडाउन की कीमत चुकानी पड़ रही है. देश आज रिकॉर्ड-तोड़ बेरोजगारी (20 करोड़ बेरोजगार) व कमरतोड़ महंगाई (प्याज की कीमत 80-100रू. किलो) के नीचे कराह रहा है. लेकिन वहीं, मुट्ठी भर अमीर, अंबानी-अडानी सरीखे पूंजीपति इस दौर में भी अमीर होते गये. अंबानी प्रति घंटे के 90 करोड़ रूपये कमा रहा है. विकास के नाम पर पूंजीपतियों की तिजोरियां भरने वाली मोदी सरकार की इन नीतियों ने देश की अर्थव्यवस्था को डुबो कर पाताल में पहुंचा दिया है, नोटबंदी से शुरू कर लॉकडाउन तक रोजगार का भारी पैमाने पर विनाश कर दिया है.

जब जरूरत लॉकडाउन पीड़ित जनता को राहत देने की थी, तब इन्हीं पूंजीपतियों के हित में मोदी सरकार ने बेशर्मी से ‘महामारी के संकट को अवसर मे बदलने’ की राह पकड़ी, और लॉकडाउन की मार से कराह रहे मजदूरों को मालिकों की गुलामी में धकेल दिया. सभी श्रम कानूनों को खत्म करके गुलामी के चार श्रम कोड कानून बना दिये. साथ ही, किसानों को बर्बाद करने वाले 3 कानून बना दिये हैं. मजदूरी में कटौती और छंटनी नियम बना दिये गये हैं. डीए रोक दिया गया है. पुरानी पेंशन योजनाओं को बेरहमी से खत्म कर दिया जा रहा है. कर्मचारियों को समय से पहले घर बैठने के लिए मजबूर किया जा रहा है. स्थायी श्रमिकों की मजदूरी और सेवा शर्तों को गिराकर ठेका और अनियमित श्रमिकों के स्तर पर लाया जा रहा है, बजाये ठेका श्रमिकों के स्तर को उठाने के. आधुनिक गुलामी ‘नई सामान्य’ स्थिति बना दी गई है. और ऊपर से, जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिये मोदी ने संकट को अवसर मे बदलने के अपने कॉरपोरेट-परस्त पैकेज को ‘आत्मनिर्भर भारत निर्माण’ का चोला पहना दिया.

श्रम कानूनों को खत्म करना 

असल में मोदी सरकार ने मजदूर वर्ग के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. देश और उसके इतिहास को 100 साल पीछे धकेल दिया गया है. भारतीय जनता और मजदूर वर्ग ने श्रम कानूनों को हासिल करने और लागू करवाने के लिए अपना खून बहाया था, जिससे कि उन्हें शोषण से कानूनी सुरक्षा मिल सके. इन्हें मोदी सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र में खत्म कर दिया है और इनकी जगह पूंजीपति - परस्त 4 श्रम कोड कानून बना दिये हैं जिन्हें अगले साल अप्रैल तक लागू करने की घोषणा हो चुकी है, और साथ ही राज्य सरकारों को अपने यहां मौजूद श्रम कानूनों को खत्म करने की छूट दे दी है. उत्तर प्रदेश और गुजरात की भाजपा सरकारों ने अपने राज्यों में सभी प्रमुख कानूनों को खत्म कर दिया है, और कई राज्यों में 12 घंटे का कार्य दिवस लागू कर दिया गया है. यह सब किया जा रहा है कि मजदूरों के श्रम के शोषण की खुली छूट मालिकों को मिल सके और वे अपार मुनाफे कमा सकें. साफ है कि देश में कंपनी राज स्थापित किया जा रहा है

न्यूनतम मजदूरी का खात्मा 

अब न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलेगी - ‘मजदूरी कोड कानून’ ने मालिकों द्वारा न्यूनतम मजदूरी की अदायगी की कानूनी बाध्यता को समाप्त कर दिया है. कल तक हम न्यूनतम मजदूरी लागू कराने की मांग उठाते थे, अब इसे ही खत्म कर दिया जा रहा है. जब देश का मजदूर प्रति माह 21,000रू. राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी की मांग कर रहा है, नया कानून न्यूनतम मजदूरी की जगह राष्ट्रीय फ्लोर वेज (यानी बमुश्किल पेट भरने वाली मजदूरी जो अभी मात्र 178रू. प्रति दिन है) की अवधारणा ले कर आया है. जबकि मजदूरी के भुगतान के उल्लंघन के लिए दंडात्मक शर्तों को मालिकों के हित में हटा दिया गया है और लेबर इंस्पेक्शन (निरीक्षण) की प्रणाली को खत्म कर दिया गया है, वहीं यूनियन नेताओं को दंडित करने के लिए दंडात्मक धाराएं लाई गई हैं.

हड़ताल करने और यूनियन बनाने के अधिकार छीन लिये गये हैं

मजदूर हड़ताल में ना जा सकें, इसका पूरा इंतजाम मोदी सरकार ने कर दिया है. ‘औद्योगिक संबंध (आईआर) कोड कानून’ ने प्रभावी रूप से हड़ताल का अधिकार छीन लिया है. सभी श्रेणियों के प्रतिष्ठानों के लिए 60 दिनों का स्ट्राइक नोटिस (पहले केवल सार्वजनिक उपयोग की सेवाओं/प्रतिष्ठानों के लिये 14 दिन के नोटिस का नियम था) अनिवार्य कर दिया गया है और विवाद के दौरान और इसके समापन के कुछ समय बाद तक के लिए भी हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया गया है. शांतिपूर्ण हड़ताल में भाग लेने वाले श्रमिकों पर 50,000रू. तक का जुर्माना लगाया जायेगा या जेल में डाल दिया जायेगा. ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण भी रद्द कर दिया जा सकता है. सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को मृगतृष्णा बना दिया गया है. ट्रेड यूनियनों को संगठित करने और बनाने का अधिकार भी केवल कागज पर ही रह गया है और कई शर्तो के साथ इसे सबसे अधिक कठिन बना दिया गया है.

स्थाई व नियमित रोजगार का खात्मा मनमर्जी से छंटनी की खुली छूट

नियमितीकरण और स्थायित्व के सवालों को दफनाते हुये, एफटीआई (नियत समय के लिये रोजगार) लाया गया है जिसके जरिये केवल अनियमित रोजगार मिलेगा, और नौकरी से निकाले जाने पर कोई सुनवाई नहीं होगी. ‘हायर एंड फायर’ (मालिक द्वारा मनमर्जी से काम से निकालने) की प्रणाली को कानूनी बना दिया गया है. सामूहिक सौदेबाजी और सरकार के श्रम अधिकारियों की मौजूदगी में त्रिपक्षीय तंत्र के माध्यम से सामूहिक समझौतों की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के बजाय व्यक्तिगत तौर पर श्रमिकों के साथ व्यक्तिगत अनुबंध को कानूनी बना कर मालिकों का वर्चस्व स्थापित किया जा रहा है. 98 प्रतिशत प्रतिष्ठानों यानी बहुसंख्यक मजदूरों को श्रम कानूनों की सुरक्षा के दायरे से बाहर कर दिया गया है, और ऐसा किया गया है उद्योग की परिभाषा बदलकर. आईआर कोड कानून के अनुसार मजदूरों की छंटनी, उद्योग की बंदी, ले-ऑफ आदि के लिये 300 से कम मजदूरों (यह संख्या पहले 100 तक थी) वाले उद्योगों में पहले वाले कानून लागू नहीं होंगे, यानी प्रशासन की मंजूरी नहीं लेनी होगी. 

मजदूरों के लिये सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थितियों की शर्तों से मालिकों को मुक्ति ठेका मजदूरों को कानून की सुरक्षा के दायरे से बाहर किया गया

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थितियों से संबंधित प्रावधानों (ओएसएच) वाले नए श्रम कोड कानून - फैक्ट्री अधिनियम के तहत इन प्रावधानों को लागू करने के लिये (बिजली से चलने वाले उद्योगों में) मजदूरों की सीमा को 10 से बढ़ाकर 20 और (बिजली के बिना वाले उद्योगों में) 20 से बढ़ाकर 40 कर दिया गया है.

ठेका श्रमिकों को केवल तभी सुरक्षा हासिल होगी जब एक ही ठेकेदार के तहत 50 से अधिक श्रमिकों को भर्ती किया जाएगा (जो पहले 20 थी), साथ ही सभी प्रकार की श्रेणियों के लिए ठेका मजदूरों की भर्ती के लिए खुले लाइसेंस जारी किए जाएंगे और यह अंतहीन कार्यकाल (यानी कोई नवीकरण नहीं) के लिए जारी किए जायेंगे. समान मजदूरी और सेवा शर्तों और अन्य अनिवार्य लाभों को खत्म कर दिया गया है. और भी बदत्तर कि सफाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी, स्कीम कर्मी, आदि को गैर-कोर यानी साधारण कामों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसके चलते वे उन लाभों से वंचित कर दिये गये हैं जिनके वे हकदार थे. सामाजिक सुरक्षा और श्रमिकों के एक विशाल वर्ग के लिए नियमितीकरण के सवालों को साफ तौर पर नकार दिया गया है. ‘प्रधान नियोक्ता’ और ‘नियोक्ता’ की अवधारणा को अस्पष्ट रखा गया है और प्रधान नियोक्ता को ठेका श्रमिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है. ठेकेदारों (अब इन्हें मालिक का दर्जा दे दिया गया है) को अपनी मनमर्जी के अनुसार कार्य करने के लिए छूट दे दी गयी है. अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिये भी प्रधान नियोक्ता की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी, वे ठेकेदार के रहमोकरम पर रहेंगे. इस तरह प्रवासी श्रमिकों को, जिनकी बुरी स्थिति लॉकडाउन के समय सामने आई, अपने हाल पर छोड़ दिया गया है और यहां तक कि न्यूनतम कानूनी सुरक्षा को भी खत्म कर दिया गया है.  

सामाजिक सुरक्षाः मालिकों या सरकार की नहीं, श्रमिकों की अपनी जिम्मेदारी

‘सामाजिक सुरक्षा कोड कानून’ ने नियोक्ता को अपने कर्मचारियों के कल्याण की जिम्मेदारी से मुक्ति दे दी है. कानून के पालन के लिये श्रमिकों की संख्या की सीमा में वृद्धि ने कानून के दायरे से अधिकांश श्रमिकों को बाहर कर दिया है. अधिक से अधिक असंगठित श्रमिकों को सुरक्षा के दायरे में लाने की लंबी चर्चा एक बार-बार बोले जाने वाले झूठ के अलावा कुछ नहीं है. अब, ईएसआई, पीएफ, ग्रेच्युटी, इत्यादि सहित सामाजिक सुरक्षा, स्वयं श्रमिकों की जिम्मेदारी के अलावा और कुछ नहीं है. न तो नियोक्ता और न ही सरकार को जवाबदेह ठहराया जाएगा. यहां तक कि प्रस्तावित पेंशन योजना एनपीएस (नयी पेंशन स्कीम) से भी बदत्तर है, जिसका ट्रेड यूनियन आंदोलन विरोध कर रहा है. पुरानी पेंशन योजना किसी के लिए भी लागू नहीं रहेगी. पेंशन, इसकी मात्रा, आदि उतनी ही होगी जितना आप अपनी खून-पसीने की कमाई त्यागने को तैयार होंगे. यहां भी, सरकार और नियोक्ता अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं.

महिला श्रमिकों के लिए कोई सुरक्षा और हिफाजत नहीं

महिला श्रमिकों को बिना किसी सुरक्षा के खतरनाक उद्योगों में काम करने की अनुमति दी जा रही है और उनकी हिफाजत और कल्याण के मामले को दरकिनार कर दिया गया है. यहां तक कि मातृत्व लाभ भी छीना जा रहा है. महिला श्रमिकों को गर्भावस्था और प्रसव की स्थिति में छंटनी का जोखिम उठाना पड़ रहा है. बड़ी संख्या में महिला श्रमिकों को ‘श्रमिक’ के दर्जे से वंचित किया जा रहा है, उनके वेतन और लाभों को तो छोड़ ही दीजिये. वर्तमान परिवर्तन केवल महिला श्रम को अधिक से अधिक शोषणकारी व असुरक्षित ही बनायेंगे, उन्हें वापस घर की चार दीवारी में ही धकेलने का काम करेंगे. 

देश बेचवा सरकार

प्रधानमंत्री मोदी के ऊंचे बोल ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ की पोल खुल चुकी है - इसका असल मतलब है ‘‘कोई सरकार नहीं, केवल अंबानी-अडानी का शासन’’. मोदी सरकार कॉरपोरेट घरानों की, कॉरपोरेट घरानों के लिए और कॉरपोरेट घरानों के द्वारा सरकार बन गई है. देश की सम्पूर्ण सम्पदा, लोगों का धन कॉरपोरेट घरानों को एकमुश्त सौंप दिया जा रहा है. मजदूर वर्ग एक-एक पैसे का मोहताज बन गया है. जल्द ही, हम अडानी की पटरियों पर चलने वाली अंबानी ट्रेनों को देखेंगे. यात्री टाटा स्टेशनों पर उतरेंगे. देश में गरीबों को सस्ती रेल परिवहन से वंचित किया जा रहा है. बैंक, बीमा, डिफेंस, तेल, यात्रा के सभी माध्यम, कोयला व अन्य खनिज, स्टील, अंतरिक्ष, भूमि, जल, पर्यावरण सब कुछ देसी-विदेशी कंपनियों को बेचा जा रहा है, समूचा देश बेचा जा रहा है. केवल लगातार प्रदूषित हो रही हवा बची हुई है. 

प्रतिरोध संघर्ष जारी है

कोरोना और लॉकडाउन की कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी मोदी सरकार के हमलों के खिलाफ मजदूर वर्ग, किसानों, युवाओं समेत आम अवाम का प्रतिरोध जारी है. इस प्रतिरोध के माहौल के चलते मोदी सरकार के कई कदमों को चुनौती देते हुए पीछे धकेला जा सका है. इस क्रम में गुजरात सरकार के मजदूर-विरोधी अध्यादेशों (जैसे 12 घंटों का कार्य दिवस) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य था क्योंकि यह श्रमिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की ओर इंगित करता है. यह मजदूर-विरोधी, कॉरपोरेट-परस्त कोडों को भी चुनौती देने की गुंजाइश पैदा करता है. कर्नाटक में भी, विधान सभा द्वारा पारित मजदूर-विरोधी अध्यादेश को विपक्षी दलों द्वारा विधान परिषद (उच्च सदन) में पराजित कर दिया गया. कुछ राज्य सरकारों ने 12 घंटे के कार्यदिवस के अध्यादेश को वापस लिया है. अतः, चौतरफा दबाव में यह भी संभावना बन सकती है कि विपक्षी राज्य सरकारों द्वारा कोड कानून लागू करने या नियमों के साथ छेड़छाड़ से इनकार कर दिया जाय क्योंकि श्रम कानून राज्य के अधिकार क्षेत्र में भी आते हैं. 

लेकिन, वह एक शक्तिशाली, देशव्यापी मजदूर वर्ग आंदोलन ही है जो असल में इन नये, गुलामी के श्रम कानूनों को पूरी तरह निरस्त करवा सकता है. देश के पूंजीपति वर्ग और उसके केंद्र में बैठे आरएसएस और भाजपा रूपी एजेंटों द्वारा चलाये जा रहे क्रूर कॉरपोरेट हमले के खिलाफ उठ खड़े होने और श्रम कोड कानूनों को नकार कर कूड़ेदान में फेंक देने की सबसे अहम जिम्मेदारी आज देश के मजदूर वर्ग और उसके आंदोलन के कंधों पर है.

26-27 नवंबर को किसानों के ‘दिल्ली चलो’ आहृान के साथ एकताबद्ध हों

मोदी सरकार द्वारा लाये गये 3 कृषि कानूनों ने देश के किसानों और खेती पर जबरदस्त हमला बोला है, ये कानून खेती को नष्ट करने और किसानों से छीन कर इसे कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने वाला कदम है. किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से वंचित किया जा रहा है. इन नए कृषि कानूनों के कारण वंचित किसान तनाव में अपने उत्पादों की जबरन बिक्री के लिए मजबूर हैं. एक मजबूत मजदूर-किसान एकता के बल पर ही केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ लड़ा जा सकता है. ऐक्टू देश के किसानों के 26-27 नवंबर के ‘दिल्ली चलो’ आहृान के साथ मजबूती से खड़ा है.

26 नवंबर को देश का चक्का जाम कर दें

ऐक्टू मजदूर वर्ग का 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच द्वारा आहूत 26 नवंबर की अखिल भारतीय आम हड़ताल को जबरदस्त ढंग से सफल बनाने का आहृान करता है. यह एक दिवसीय हड़ताल आने वाले समय के लंबे युद्ध की शुरुआत भर है. मोदी सरकार ने सभी श्रम कानूनों को खत्म कर मजदूर वर्ग पर युद्ध की घोषणा कर दी है. अब मोदी सरकार के खिलाफ जवाबी युद्ध छेड़ने की बारी देश के मजदूर वर्ग की है. केवल तभी मजदूर-विरोधी श्रम कोड कानूनों को परास्त किया जा सकता है, देश की संपत्ति को बेचने के मंसूबों को परास्त किया जा सकता है, अपने प्रिय देश के संविधान और संप्रभुता की हिफाजत की जा सकती है. ऐक्टू समस्त मेहनतकश अवाम, किसानों, छात्र-युवाओं, महिलाओं समेत मोदी सरकार के हमलों से पीड़ित हर तबके और साथ ही सभी विपक्षी दलों का इस हड़ताल को अपना पुरजोर समर्थन देने का आहृान करता है. 

आम अवाम का गुस्सा परिर्वतन की आकांक्षा में बदल रहा है, मोदी सरकार के प्रति तेजी से भ्रम टूट रहा है. आइए, सब मिलकर 26 नवंबर को देश का चक्का जाम कर दें और भारत को विनाशकारी मोदीशाही के चुंगल से मुक्त कराने के संघर्ष को तेज करें.