बजट 2021 - मजदूर, किसान और जन विरोधी  ट्रेड यूनियनों का 3 फरवरी को देशव्यापी विरोध् 

(2 फरवरी को पेश हुए बजट के जवाब में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और क्षेत्रवार फेडरेशनों/एसोसिएशनों के साझा मंच का बयान)

वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया बजट लफ्फाजी से भरा हुआ और जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है. यह पूरी तरह छलावे से भरा और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी है, साथ ही मेहनतकश अवाम की पीड़ाओं के प्रति क्रूर ढंग से संवेदनहीन है. वित्त मंत्री ने सरकार के आर्थिक सर्वे के उस दावे को दोहराया है कि श्रम कोड मजदूरों के लिए अच्छे हैं, और ठीक इसी तरह कृषि कानूनों की भी तारीफ की गई है. उन्होंने असल में मई 2020 को प्रस्तुत अपने छलावे भरे पैकेजों को ही आगे बढ़ाया है. 

यह बजट असल में भारतीय और विदेशी कॉरपोरेट घरानों के लिए दोस्ताना है जो उन्हें लगातार भारी रियायतें, टैक्सों में छूट दे रहा है, और आम आदमी पर सेस को बढ़ा रहा है. आम जनता पर और बोझा लाद दिया गया है जबकि इस वक्त उनकी आजीविका पर ही संकट छाया हुआ है. बजट आम आदमी की क्रय शक्ति को बढ़ाने और इस तरह अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के लिये कोई कदम नहीं उठाता है. 

इस बजट में हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बेचने, एलआईसी में 74 प्रतिशत तक के विदेशी निवेश और साथ ही विनिवेश, और मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में निजीकरण की नीति को ही आगे बढ़ाया गया है जबकि घाटे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की बंदी की घोषणा की गई है, जिनमें कोर एवं रणनीतिक सेक्टर दोनों ही शामिल हैं. मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में विनिवेश के द्वारा 1.75 लाख करोड़ उगाहने के घोषित लक्ष्य से सरकार के विनाशकारी उद्देश्य और दिवालियापन साफ उजागर हो जाता है. 

मनरेगा के लिए आबंटित फंड में पिछले साल की तुलना में जबरदस्त कटौती की गई है, बावजूद इसके कि महामारी के चलते अपने रोजगार गवांने वाले बहुत से लोगों को इस योजना ने बड़ी राहत दी थी और ग्रामीण रोजगार संकट आज भी जारी है. इस बजट में कहीं रोजगार सृजन के लिये सुझाव नहीं हैं जो कि अर्थव्यवस्था को जिंदा करने के लिये सबसे जरूरी हैं. बल्कि रोजगार और कौशल विकास के लिये आबंटन को 35 प्रतिशत घटा दिया गया है. बस कुछ खोखले दावे किए गए हैं कि लक्षित निवेश के ज़रिए रोजगार का सृजन होगा, और अगर हम इस सरकार और विशाल रियायतें पाने वाले कॉरपोरेट घरानों का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है. कोविड-19 के दौरान शहरी संकट और उच्च बेरोजगारी दर के मद्देनजर एक शहरी रोजगार योजना की सख्त जरूरत है. यहां तक कि आईसीडीएस और मिड-डे मील योजनाओं के लिये आबंटन में भी बजट में भारी कटौती की गई है.

इस बजट में कर ना चुकाने वालों को माफ किया जा रहा है ताकि वो जनता के पैसों की अपनी लूट को जारी रखें, और इसके लिए यह घोषणा की गई है कि इन्कम टैक्स चोरी करने वालों की तीन साल से ज्यादा पुरानी फाइलों को नहीं खोला जाएगा. स्टार्ट-अप परियोजनाओं को भी एक और साल की टैक्स पर छूट दी गई है. जबकि सेवा क्षेत्र और सत्कार से जुड़े (हॉस्पिटैलिटी) क्षेत्र को जिन्हें इस लॉकडाउन के दौरान भारी नुकसान हुआ है, सरकार की कोई तवज्जो नहीं मिली. यहां भी वही खोखले दावे किए जा रहे हैं कि विकास के साथ-साथ ही अपने आप रोजगार सृजन हो जाएगा. प्रवासी मजदूरों की बात की जाए तो, उनके किसी भी बड़े मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया है, सिर्फ एक वक्तव्य दिया गया है कि मकान के लिए गए कर्ज में राहत के लिए एक साल बढ़ा दिया जाएगा. 

इंफ्रास्ट्रक्चर में होने वाले खर्च की सारी घोषणाएं बिल्कुल पहले जैसी हैं और इनसें किसी भी चीज के लागू होने की गारंटी नहीं होती, और इसके लिये जिन पांच राज्यों को खासतौर पर लक्षित किया गया है, वे हैं जिनमें आने वाल समय में चुनाव होने वाले हैं. 

स्वास्थ्य के लिए आबंटित बजट भी अपेक्षा से बहुत ही ज्यादा कम है और इसमें भी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की जमीनी सच्चाई को अनदेखा किया गया है, जबकि इसमें हर स्तर पर फौरन गंभीर ध्यान देने की जरूरत है. बजट में कोविड योद्धाओं जैसे, स्वास्थ्य व सफाई कर्मियों और असंगठित मजदूरों की पूरे तौर पर अनदेखी की गई है.  

शिक्षा को भी अनदेखा किया गया है और एनजीओ के ज़रिए 100 आर्मी स्कूल खोलने की बात से तो सरकार की मंशा पर ही बहुत सारे सवाल उठ खड़े होते हैं.

सूक्ष्म, छोटे व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई सेक्टर) जो आपदा की वजह से पहले ही बुरी तरह प्रभावित है, जिसमें करोड़ों लोगों का रोजगार छिन गया है, इसके पुनरुद्धार की तरफ भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है. 

किसानों को भी कोई राहत नहीं दी गई है बल्कि सरकार ने सिर्फ कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने की घोषणा की है. ये कृषक समुदाय के साथ घिनौना मजाक ही है जो पहले ही कर्ज के चंगुल में फंसा है और बुरी तरह छटपटा रहा है. किसानों की मांगों को पूरी तरह नज़रअंदाज किया गया है बल्कि कृषि कानूनों की जम कर तारीफ की गई है, जबकि किसान इन्हें वापस करने की मांग पर तमाम तकलीफें झेलते हुए डटे हैं. 

बजट में ग़रीब जनता और उसकी ज़रूरतों की पूरी तरह अनदेखी की गई है. सरकार ने सिर्फ कॉरपोरेट का ध्यान रखा है और आम जनता को दरकिनार कर भारतीय अर्थव्यवस्था को पतन की गर्त में ढ़केल दिया है. 

इस पृष्ठभूमि में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र क्षेत्रवार फेडरेशनों और एसोसिएशनों का साझा मंच मजदूर वर्ग और यूनियनों से केन्द्रीय बजट में प्रदर्शित जन विरोधी नीतियों के खिलाफ 3 फरवरी को राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद करने का आहृान करता है, और मांग करता हैः 

  • श्रम कोडों और बिजली बिल 2020 को रद्द किया जाए.
  • निजीकरण बंद किया जाए.
  • सभी ग़रीब मजदूर परिवारों को आय और भोजन की गारंटी की जाए. ु