औद्योगिक संबंधों पर श्रम कोड विधेयक, 2015 

औद्योगिक संबंधों पर श्रम कोड विधेयक, 2015 औद्योगिक संबंधों से संबन्धित ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, और औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 मे शामिल विधियों को संहिताबद्ध करना चाहता है.

छूट देने की शक्तिः सबसे पहले, यह कोड सरकार को कोड के प्रावधानों से किसी भी प्रतिष्ठान या प्रतिष्ठानों के समूह को बिना शर्त छूट देने की शक्ति प्रदान करता है, यदि वह संतुष्ट है कि वहां नियोजित श्रमिकों के संबंध में औद्योगिक विवादों की जांच और निपटारे के लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं. यह निरकुंश शक्ति सरकार को श्रमिकों को बिना किसी सुरक्षा के कोड के दायरे से बाहर रखने की अनुमति देती है.

मनमाने ढंग से काम से निकालनाः औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में प्रावधान है कि 100 या उससे अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को किसी भी छंटनी, या कारखाना बंद करने से पहले सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है. कोड इस संख्या को 300 तक बढ़ाती है, जिससे बड़ी संख्या में श्रमिकों पर मनमाने ढ़ंग से काम से निकालने, प्रतिष्ठानों के बंद होने की तलवार लटकी रहेगी.

यूनियनों और संगठित होने की आजादी पर हमलाः ट्रेड यूनियन अधिनियम बाहरी लोगों को ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारी होने की अनुमति देता है. नियोक्ता के साथ बातचीत करते समय श्रमिकों की संकटपूर्ण स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक भी है. लेकिन, इस कोड की आवश्यकता है कि पंजीकृत ट्रेड यूनियन के सभी पदाधिकारी वास्तव में उस प्रतिष्ठान/उद्योग में लगे हुए हों या नियोजित हों जिसके साथ ट्रेड यूनियन का संबंध है. असंगठित क्षेत्र में ट्रेड यूनियन के संबंध में, यह दो व्यक्तियों तक ही सीमित है. अपने पदाधिकारियों को निर्धारित करने की श्रमिकों की स्वतंत्रता और पसंद को सीमित करने के लिए इस तरह के प्रतिबंध यूनियन बनाने की आजादी और संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा से संबंधित आईएलओ कन्वेंशन (सी. 87) का स्पष्ट उल्लंघन है. इसके अलावा कोड 10 से अधिक संघों में पद रखने पर भी व्यक्ति को प्रतिबंधित करता है, जो यूनियन बनाने की आजादी के सिद्धांतों के विपरीत है. 

स कोड उन शर्तों को बढ़ाकर भी यूनियनों पर हमला करती है जिन पर ट्रेड यूनियन का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है, जिसमें द्वि-वार्षिक चुनाव आयोजित करने में विफलता और वार्षिक रिटर्न जमा करने में विफलता शामिल है. यह यूनियनों के आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप करने का प्रत्यक्ष प्रयास है.

स कोड ट्रेड यूनियनों की नियोक्ताओं से मान्यता प्राप्त करने की दीर्घकालिक मांग को संबोधित करने में विफल रहा है, जैसा ‘‘महाराष्ट्र ट्रेड यूनियनों की मान्यता और अनुचित श्रम प्रथाओं की रोकथाम अधिनियम’’, 1971 में प्रावधान है. 

हड़ताल का अधिकार और सीमाएं

स कोड मजदूरों को दो सप्ताह का हड़ताल का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर जाने से रोकता है. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के लिए सिर्फ ऐसा प्रतिबंध था, लेकिन कोड सभी प्रतिष्ठानों के लिए इस तरह के प्रतिबंध का प्रावधान करता है. कोड आगे यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर किसी भी अवैध हड़ताल या लॉक-आउट के समर्थन में कुछ भी धन खर्च करता है, वह जुर्माने के साथ दंडनीय अपराध का भागीदारी होगा जो पच्चीस हजार रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जिसे पचास हजार रुपये या एक महीने तक के कारावास के साथ, या दोनों के साथ बढ़ाया जा सकता है. इस तरह के दमनकारी प्रावधान का उद्देश्य हड़तालों के संबंध में भय का वातावरण बनाना है.

स कोड ट्रेड यूनियनों पर यह प्रावधान बनाकर हमला करता है कि अगर किसी भी पंजीकृत ट्रेड यूनियन द्वारा इस कोड के किसी भी प्रावधान के तहत आवश्यक कोई भी नोटिस नहीं दिया गया या कोई पत्र या अन्य दस्तावेज नहीं भेजा गया, तो उस प्रत्येक पदाधिकारी या अन्य व्यक्ति जो ट्रेड यूनियन के नियमों से बंधा है, पर न्यूनतम जुर्माना 10,000 रुपये लगाया और इसे 50,000 रूपये तक बढ़ाया जा सकता है.