श्रम कानूनों का कोडीकरण

केंद्रीय श्रम मंत्रालय 44 श्रम कानूनों को 4 प्रमुख कानूनों (कोड) में सीमित कर रहा है. ये हैं - वेतन कोड, औद्योगिक संबंध कोड, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण कोड और पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां कोड. वेतन कोड संसद में पास कर दिया गया है और 8 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई है.

वेतन पर श्रम कोड, 2019  

वेतन (मजदूरी) पर श्रम कोड विधेयक, 2019 (लेबर कोड ऑन वेजेस्) यूनियनों और श्रम अधिकार समूहों के विरोध के बावजूद संसद में पास कर दिया गया है और कानून बना दिया गया है. यह नया कानून/कोड वेतन संबंधी पहले से चल रहे चार श्रम कानूनों को खत्म कर देता हैः मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976. वेतन कोड, 2019 को लोकसभा द्वारा 30 जुलाई, 2019 और राज्यसभा द्वारा 2 अगस्त, 2019 को पारित किया गया और 8 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई. यह कानून सभी कर्मचारियों पर लागू है और केंद्र व राज्य सरकारों को भिन्न-भिन्न रोजगारों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिये अधिकृत करता है. इसके तहत केंद्र सरकार का काम फ्लोर वेतन निर्धारित करने का होगा और न्यूनतम वेतन राज्य सरकारें तय करेंगी जो फ्लोर वेतन से कम नहीं होगा.  

कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार हैंः

  • कर्मचारी की परिभाषाः ‘कर्मचारी’ और साथ ही ‘मजदूर’ की परिभाषा में संगति का अभाव है. इस कोड द्वारा ‘कर्मचारी’ शब्द प्रबंधकीय कर्मियों, खासकर मध्य स्तर वालों को नये कानून के तहत लाने के लिये शामिल किया गया है. इस पर संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने आपत्ति की थी, लेकिन सरकार ने उसे नकार दिया. अप्रेंटिस को कर्मचारी की परिभाषा से बाहर रखा गया है, जबकि वे खत्म किये गये कानूनों - मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत शामिल थे. 
  • ठेका मजदूर की परिभाषाः ठेका मजदूर को एस. 2(जी) के तहत परिभाषित किया गया है (पार्ट टाइम मजदूर को छोड़कर) उस मजदूर को परिभाषा के दायरे से बाहर किया गया है जो - 1. ठेकेदार द्वारा अपने प्रतिष्ठान की किसी भी गतिविधि के लिये नियमित तौर पर नियोजित किया गया है और उसका नियोजन दोनों पक्षों द्वारा आपस में मंजूर नियोजन की शर्तों द्वारा शासित होता है (स्थाई आधार पर लगाये जाने समेत), और 2. जिसे ऐसे रोजगार में उस समय लागू कानूनी प्रावधानों के तहत वेतन में आवधिक (पिरियोडिक) इंक्रीमेंट, सामाजिक सुरक्षा कवरेज और अन्य कल्याणकारी लाभ प्राप्त हो रहे हैं.
  • निरीक्षकों को हटाने और “निरीक्षक-सह-फेसिलिटेटर्स“ को लाने के बारे मेंः  नये कानून द्वारा किए गए बड़े बदलावों में से एक निरीक्षकों के पदों को खत्म करना और उनकी जगह ‘‘निरीक्षक-सह-फेसिलिटेटर्स’’ (मददकर्ताओं) को लाने के बारे में है. 
  • हल्के दंडः न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 दंड के रूप में जुर्माना और/या कारावास का प्रावधान करते हैं. पर, नये कानून/कोड के तहत, उल्लंघन के पहले मामले में कारावास के दंड का कोई प्रावधान नहीं है. इसके अलावा, नया कानून/कोड किसी भी न्यूनतम जुर्माने का प्रस्ताव नहीं देता है, और अधिकतम जुर्माना केवल 50,000 रुपये का है. नया कानून/कोड केवल दूसरे अपराध पर कारावास की सजा देता है. 
  • अपराध का शमनः कानून में एक नया सेक्शन जोड़ा गया है जिसके तहत अपराध के शमन (समझौता) को अनिवार्य बना दिया गया है, अगर मालिक मात्र एक अर्जी दे दे और संबंधित सरकार को दंड की निर्धारित राशि अदा कर दे. यह एक खतरनाक प्रावधान है जो उल्लंघन करने वाले नियोजक को, बिना कानून के अनुपालन के, केवल सरकार को दंड की निर्धारित राशि अदा कर देने पर ही खुला छोड़ देता है. ‘‘56(1) कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 (2/1974) में शामिल कोई भी प्रावधान के बावजूद, संबंधित नियोजक की अर्जी पर और उसके द्वारा संबंधित सरकार को दंड की निर्धारित राशि अदा कर देने पर, संबंधित सरकार के राजपत्रित अधिकारी द्वारा इस कोड के तहत कोई भी अपराध का शमन कर दिया जायेगा और अगर नियोजक निर्धारित राशि अदा करने के लिये तैयार नहीं है, तो कानून के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी. 
  • अभियोजन कार्रवाई शुरू होने से पहले नियोजक को अवसर प्रदान करनाः नया कानून/कोड निरीक्षक-सह-फेसिलिटेटर को इस बात के लिये बाध्य करता है वो एक लिखित आदेश के माध्यम से इस कोड के प्रावधानों का अनुपालन करने के लिए नियोक्ता को अवसर प्रदान करे. यदि नियोक्ता दी गई अवधि के भीतर आदेश का अनुपालन करता है, तो निरीक्षक-सह-फेसिलिटेटर अभियोजन कार्यवाही शुरू नहीं करेगा. यह नियोजक को रंगे हाथ पकड़े जाने तक उल्लंघन करने की छूट देता है, और फिर लिखित आदेश के आधार पर अनुपालन करने, और इस तरह हर बार उत्तरदायित्व से बचने की छूट देता है. 
  • भर्ती और पदोन्नति में भेदभावः भर्ती, पदोन्नति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्थानांतरण जैसी सेवा शर्तों में भेदभाव को रोकने के लिये नये कानून/कोड में कोई प्रावधान नहीं है जिनके लिए समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत प्रावधान थे. 
  • कोई सलाहकार समिति नहींः नया कानून/कोड सलाहकार समिति के लिए प्रावधान नहीं करता है जो कि समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत मौजूद था.    
  • मजदूरी तय करने के लिए मानदंडः नया कानून/कोड न्यूनतम मजदूरी निर्धारण के लिये दो और कारक जोड़ता है - मजदूर का आवश्यक कार्यकौशल और उसे दिये गये काम की कठिनता. अब कोई शेड्यूल रोजगार नहीं होंगे जिन पर न्यूनतम वेतन लागू होगा. और अधिक, यह कानून संबंधित सरकारों को न्यूनतम वेतन के रेटों को अधिकतम संभव न्यूनतम रखने का अधिकार देता है. 
  • बोनस की अदायगी पर सीमाः 1. बोनस अदायगी अधिनियम कर्मचारी को बोनस अदायगी के लिये उसके वेतन की सीमा 10000रू. निर्धारित करता है. लेकिन नया कानून इस सीमा से संबंधित राशि की अधिसूचना देने के लिये केंद्र सरकार को छूट देता है. 2. साथ ही, बोनस अदायगी अधिनियम कर्मचारी को मिलने वाले बोनस की न्यूनतम सीमा 7000रू. अथवा संबंधित राज्य का न्यूनतम वेतन, जो अधिक हो, निर्धारित करता है. लेकिन नया कानून इस मामले को केंद्र सरकार की मर्जी पर छोड़ देता है. 
  • सबूत देने की जिम्मेवारीः सेक्शन 59 के अनुसार ‘‘कर्मचारी को पारिश्रमिक या बोनस की गैर-अदायगी या वेतन या बोनस की कम अदायगी या इस कोड द्वारा अनधिकृत कटौती करने के मामलों में किये गये दावे पर यह सबूत देने की जिम्मेवारी नियोजक पर होगी कि उसने फलां देय राशि अदा कर दी है. 
  • मजदूरी का पुनरीक्षणः सेक्शन 8(4) के तहत सामान्यतः मजदूरी का पुनरीक्षण अधिकतम पांच साल के भीतर होगा. 

सेक्शन 9 के तहत केंद्र सरकार फ्लोर वेज तय करेगी. यह वेतन कैसे तय किया जायेगा इस बारे में कोई प्रावधान नहीं हैं, न ही केंद्र सरकार के लिये यह जरूरी है कि वह केंद्रीय सलाहकार बोर्ड से सुझाव मांगे या राज्य सरकारों से विचार-विमर्श करे, हालांकि वह चाहे तो ऐसा कर सकती है. नया कानून/कोड न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिये 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन के मानदंड और सुप्रीम कोर्ट के रप्टाकोस मामले में आदेश को नकारता है. 

विभिन्न कटौतियों की छूट देने के अलावा, सेक्शन 18 यह भी प्रावधान करता है कि किसी भी सही और पर्याप्त कारण के चलते कर्मचारी के वेतन में हुये नुकसान को वेतन में से कटौती के बतौर नहीं माना जाएगा. जैसे - इंक्रीमेंट या पदोन्नति पर रोक लगाना, इंक्रीमेंट बंद कर देने समेत; या पद या टाइम स्केल में अवन्नति; या सस्पेंशन. 

सेक्शन 23 में अग्रिम राशि की रिकवरी करने के लिये कटौतियों, और न कमाये गये वेतन पर अग्रिम देने और रिकवर करने के प्रावधान शामिल हैं.